मृण्मयी भू, आज अजर-अजिर!
चिन्मय चेतन घर आया है।
क्षिति जल पावक गगन समीर संग,
पुरुष तत्व भर आया है।
पुलकित तरु के पात-पात पर,
चिड़ियाँ चंचल चहक रही हैं।
पवन मचाए उधम दम भर,
कुंज लताएँ बहक रही हैं।
संग अनंग वसंत मधुरास रत,
आरक्त कानन का आनन है।
उलझी बेल द्रुम प्रेम खेल में,
ऋतु हाला में अवगाहन है।
शुक, सारिका, हारिल, श्यामा,
रति - राग और प्रीत की बात।
उपवन सघन सरस मद छात,
पात पात पर पखेरू गात।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी, बहुत आभार🙏
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 11 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी, बहुत आभार🙏
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteजी, बहुत आभार🙏
Deleteवाह! क्या बात है ,बहुत खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteजी, बहुत आभार🙏
Deleteअतिशय सुंदर सृजन
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार🌹
Deleteबहुत सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteNice video..
बहुत आभार।
Deleteब्लॉग और सुंदर हो गया आपका। बधाई
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार।
Deleteमैं कई वर्षों से जुड़ी हूँ आकाशवाणी से, आप भी वहीं से हैं जानकर अच्छा लगा।
ReplyDelete🙏🙏
Deleteहमेशा की तरह लाजवाब रचना! बधाई आदरणीय विश्वमोहन जी🙏
ReplyDeleteआपके आशीष का आभार🌹🙏
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मनोरम
शब्दों की जादूगरी विशेष !!!
जी, हार्दिक आभार आपके प्रोत्साहन का🙏🏼
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