Sunday 20 August 2017

उत्सर्ग उत्सव

तारसप्तक  मन्द्र सा
चिर प्रीत पूनम चन्द्र सा
सरित स्मित धार सा
तू शब्द मै ॐकार सा

मै मार्तंड तू ताप सा
मै मृदंग तू थाप सा
मै नींद तू नीरव निशा
तू जीवन मै जिजीविषा

ये प्रीत पथ अनंत का,
अदृश्य दिग दिगंत सा .
विश्व मै तू जीव सा,
बस ढाई आखर पीव का.

है न दैहिक और न भौतिक,
परा, अपार, पारलौकिक.
अश्रु के प्रवाह में,
भाव तरल अथाह ये.

डूबते यूँ जाएँ हम,
न तू-तू मै-मै और ख़ुशी गम.
दूर क्यों होना है गुम,
आ, हो समाहित हममें तुम

हो आहुति मेरे ' मैं ' की,
और तुम्हारे ' तू ' का क्षय.
आत्म का उत्सर्ग उत्सव,
चिर समाधि अमिय अक्षय. 

2 comments:

  1. Kavita Naveen Parashar: अति सार्थक व सुंदर
    Vishwa Mohan: +Kavita Naveen Parashar जी , धन्यवाद!!!!

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  2. Kusum Kothari's profile photo
    Kusum Kothari
    +1


    स्व मे स्व का लीन होने का उत्सर्ग, उत्सव रूप, आलोकिक अनुभूति, अद्वितीय भाव सुंदर शब्द सौष्ठव उच्चतम दर्जे का काव्य भावों का उर्धमुखी सोपान। नमन आपको।

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    Aug 20, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Kusum Kothari आपके अलंकृत आशीर्वचनो का आभार एवं नमन!!!
    Aug 20, 2017
    अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
    अमित जैन 'मौलिक'
    Owner
    +1
    तारसप्तक मन्द्र सा
    चिर प्रीत पूनम चन्द्र सा
    सरित स्मित धार सा
    तू शब्द मै ॐकार सा

    अद्भुत अद्भुत अद्भुत कविवर। नमन आपकी लेखनी को। रूहानी इश्क़ तो अहम की आहुति देने पर ही हो सकता है। चाहे वो ईश्वरीय हो चाहे वो सांसारिक हो।

    भव्यतम रचनात्मकता। शुभ रात्रि

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    Aug 21, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +अमित जैन 'मौलिक' आशीष के अमित आनंद का आभार!!
    Aug 21, 2017

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