सपनों की सतरंगी सिंदूरी,
सुघड़ नयन घट घोले .
छन-छन छाया छवि की,
क्षण-क्षण, मन-पनघट में डोले.
अभिसार-आँचल-अनुराग,
आरोह-अनंत अवनि का,
अंग-अनंग , अम्बर-सतरंग
अनावृत यवनिका.
छाये क्षितिज अवनि और अम्बर,
अनहद आनंद आलिंगन.
सनन सनन कण पवन मदन बन,
चटक चाँदनी चन्दन .
सुघड़ नयन घट घोले .
छन-छन छाया छवि की,
क्षण-क्षण, मन-पनघट में डोले.
अभिसार-आँचल-अनुराग,
आरोह-अनंत अवनि का,
अंग-अनंग , अम्बर-सतरंग
अनावृत यवनिका.
छाये क्षितिज अवनि और अम्बर,
अनहद आनंद आलिंगन.
सनन सनन कण पवन मदन बन,
चटक चाँदनी चन्दन .
दुग्ध-धवल अंतरिक्ष
समंदर,
चारु चंद्र चिर चंचल चहके.
चपल चकोरी चातक चितवन,
प्रीत परायण पूनम महके .
नवनिहारिका नशा नयन मद,
प्रेम अगन सघन वन दहके .
सुभग सुहागन अवनि अम्बर,
बिहँस विवश बस विश्व भी बहके.
चारु चंद्र चिर चंचल चहके.
चपल चकोरी चातक चितवन,
प्रीत परायण पूनम महके .
नवनिहारिका नशा नयन मद,
प्रेम अगन सघन वन दहके .
सुभग सुहागन अवनि अम्बर,
बिहँस विवश बस विश्व भी बहके.
क्रीड़ा-कंदर्प कण-कण-प्रतिकम्पन,
उदान अपान समान .
व्यान परम पुरुष प्रकृति भाषे,
ब्रह्म योग चिर प्राण .
आदरणीय विश्वमोहन जी ----- भले ही मैं सरल हिन्दी की पक्षधर हूँ पर आपकी अलंकारों के प्रयोग की अनुपम शैली की प्रशंसक भी हूँ | आज जहाँ लोग जिनमे मैं भी हूँ -- इस हुनर से अनजान हैं वही आप बड़ी सरलता से अलंकारों से सजा रचना को मनमोहक रूप देने का हुनर रखते है | अनुप्रास सदैव से ही साहित्यकरों और कवियों की आँख का तारा रहा है | हिन्दी साहित्य का कोई भी विद्यार्थी ''' चारू चन्द्र की चंचल किरनें खेल रही थी जल थल में '' से नावाकिफ नहीं है | इसी अनुप्रास को यदा -- कदा अपनी रचनाओं में सम्मिलित कर आपने इसके अस्तित्व को नया जीवन दिया है | आपकी रचना में भाव तो हैसुंदर हैं ही -- ये अलंकृत शैली मन को भाव विभोर कर देती है | कलिष्ट शब्दावली होने के बावजूद रचना बहुत ही मोहक और सरस है | माँ सरस्वती आपके लेखन की प्रांजलता बनाये रखे |
ReplyDeleteअत्यंत आभार आपकी स्नेहिल सरस प्रतिक्रिया का!!!
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteअलंकृत,परिष्कृत,मधुर अनुप्रासों से समृद्ध भाषाशैली में गूँथी गयी अत्यंत भावपूर्ण हृदयग्राही सृजन।
ReplyDeleteबधाई सुंदर कृति के लिए।
प्रणाम
सादर
बहुत सुंदर शब्द - संयोजन । अलंकारों की छटा निराली है ।
ReplyDeleteअनुप्रास अलंकार के साथ ही पुरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग देखते ही बनता है ।
काव्य का एक बहुमूल्य मोती है ये रचना ।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteदुग्ध-धवल अंतरिक्ष समंदर,
ReplyDeleteचारु चंद्र चिर चंचल चहके.
चपल चकोरी चातक चितवन,
प्रीत परायण पूनम महके .
नवनिहारिका नशा नयन मद,
प्रेम अगन सघन वन दहके .
सुभग सुहागन अवनि अम्बर,
बिहँस विवश बस विश्व भी बहके.////
अच्छा लगा फिर से पढ़कर!!!!!
हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🙏🙏
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteअभिसार-आँचल-अनुराग,
ReplyDeleteआरोह-अनंत अवनि का,
अंग-अनंग , अम्बर-सतरंग
अनावृत यवनिका.
छाये क्षितिज अवनि और अम्बर,
अनहद आनंद आलिंगन.
सनन सनन कण पवन मदन बन,
चटक चाँदनी चन्दन .
वाह!!!
अद्भुत शब्द संयोजन एवं अनुप्रास आदि अलंकारों से अलंकृत लाजवाब सृजन
जी, अत्यंत आभार।
Deleteवाह!बहुत ही खूबसूरत ,अलंकारिक रचना ने मन मोह लिया ।
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार।🙏
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