कल्पना की भीत में
शब्दों से परे
आज भी बाबूजी दिखते
बच्चों को बनाने की ज़िद में
वैसे ही अड़े खड़े।
शब्दों से परे
आज भी बाबूजी दिखते
बच्चों को बनाने की ज़िद में
वैसे ही अड़े खड़े।
धागों से बँधे चश्मे
दोनों कानों को
यूँ पकड़े जैसे
तक़दीर को खूँटों में
जकड़ रखा हो वक़्त ने
बुढ़ायी, सिकुची, केंचुआयी
ढ़िबरी सी टिमटिमाती
छोटी आँखें, ऐनक के पार
पाती विशाल विस्तार, यूँ
ज्यों, उनके सपने साकार!
कफ और बलगम नतमस्तक!
अरमान तक घोंटने में माहिर
जेब की छेद में अँगुली नचाते
पकता मोतियाबिन्द, और पकाते,
सपनो के धुँधले होने तक
पाई-पाई का हिसाब
टीन की पेटी को देते
उखड़े हैन्डिल को फ़ँसा
मोटे ताले को लटका
चाभी जनेऊ को पहनाते
मिरजई का पेबन्द
और ताकती फटी गंजी
अँगौछे के ओहार में
यूँ ढ़क जाती जैसे दीवाली की रात
मन का मौन ,बिरहा की तान में.
कफ, ताला, बलगम, जेब, अँगोछा
पेटी, ,जनेऊ, चाभी, मोतियाबिन्द
मिरजई, बिरहे की तान- सब संजोते
बाबूजी आँखों में, रोशन अरमान
बच्चों के बनने का सपना!
anchal pandey: भाव विभोर करती हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय सर
ReplyDeleteVishwa Mohan: अत्यन्त आभार!!
बेहद भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन..सराहनीय शब्द विन्यास बहुत सुंदर रचना विश्वमोहन जी👌👌
ReplyDeleteजी, बहुत आभार, श्वेता जी!
Deleteबहुत सुन्दर विश्वमोहन जी. मेरे दिल की बात आपने कह दी.
ReplyDeleteमाँ के प्यार, उसके त्याग और बलिदान के आगे पिता की तपस्या का, उसकी कर्त्तव्य-परायणता का और उसके जुझारूपन का, बहुत कम ज़िक्र होता है.
बच्चों के लिए माँ जो सपने देखती है, उनमें व्यावहारिकता कम होती है किन्तु पिता अपने बच्चों के लिए खुद सपने कम देखता है लेकिन वह अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने की हर संभव कोशिश करता है.
जी, अत्यंत आभार।
Deleteअद्धभुत लेखन
ReplyDeleteनमन पिता
जी, अत्यंत आभार।
Deleteवाह। नमन।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत सुंदर संवेदनाओं से भरपूर सत्य भाव पूर्ण सृजन ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबाबूजी के बहाने से हर उस संघर्षशील पिता का मर्मस्पर्शी काव्य चित्र जिन्होंने कम साधनों में भी ,अपनी संतान को सफलता के शिखर तक पहुँचाने के लिए , तन और मन से अपना अतुलनीय योगदान दिया है |अपनी दैहिक विसंगतियों को दरकिनार कर , सुघड़ आर्थिक प्रबंधन के साथ बच्चों की तरक्की की निस्वार्थ आकांक्षा संजोये ऐसे पिताओं को कोटि नमन | सादर
ReplyDeleteबाबू जिकी सच्ची तस्वीर उकेरी है।
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteसमस्त पितृ सत्ता को सादर नमन 🙏🙏
ReplyDeleteमिरजई का पेबन्द
ReplyDeleteऔर ताकती फटी गंजी
अँगौछे के ओहार में
यूँ ढ़क जाती जैसे दीवाली की रात
मन का मौन ,बिरहा की तान में.
बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन बाबू जी पर...तंगहाली और अपनी संतानों के सुन्दर भविष्य का सपना पालते जुझारू बाबू जी की छवि उकेरती बहुत ही लाजवाब कृति।
🙏🙏🙏🙏
जी, आपके अनुपम आशीष का आभार!!!
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