Monday, 25 July 2016

नर नपुंसक



दलित छलित मदमर्दित होती
दर-दर मारे फिरती नारी
कैसा कुल कैसी मर्यादा
लोक लाज ललना लाचारी

लंका का कंचन कानन ये
देख दशानन दम भरता है
छली बली नर बाघ भिखारी
अबला का यह अपहरता है

छल कपट खल दुराचार से
सती सुहागन हर जाती हो
देवी देती अगिन परीछा, 
पुरुषोत्तम का घर पाती हो


पतिबरता परित्यक्ता लांछित
कुल कलंकिनी घोषित होती
राम-राज का रजक और राजा
दोनों की लज्जा शोषित होती

राजनीति या राजधरम यह
कायर नर की आराजकता है
सरयू का पानी भी सूखा
अवध न्याय का स्वांग रचता है



हबस सभा ये हस्तिनापुर में
निरवस्त्र फिर हुई नारी है
अन्धा राजा, नर नपुंसक
निरलज ढीठ रीत जारी है !


1 comment:

  1. Indira Gupta's profile photo
    Indira Gupta
    Moderator
    +1
    वाह विश्व मोहन जी .....बेहतरीन लेखन
    ज्वलंत समस्या पर आपके कटाक्ष ...तीक्ष्ण
    प्रहार करती हुई
    आपकी रचना !आईना दिखाती हुई !
    👏👏👏👏


    .शंख नाद सा गूँज रहा स्वर
    आज भी अबला नारी है
    भ्रूण से यौवन उम्र तक
    पुरुष मानसिकता भारी है !
    अँधेरे नगरी चौपट राजा
    देखो कैसी लाचारी है
    त्रेता ,द्वापर अब कलयुग मै भी
    निर्लज्ज रीत ये जारी है !
    good day


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    Jul 22, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Indira Gupta वाह! बेनज़ीर! आभार एवं शुक्रिया!!!
    Jul 22, 2017
    अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
    अमित जैन 'मौलिक'
    Owner
    +Vishwa Mohan जी। बहुत ही सुंदर। नमन
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    Jul 24, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +1
    +Indira Gupta अप्रतिम , अद्वितीय , जिसका कोई अन्य नजीर(उदाहरण) न हो.

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