भटक गयी है गौरैया
रास्ता अपने चमन का
सूने तपते लहकते
कंक्रीट के जंगल में
आग से उसनाती
धीरे से झाँकती
किवाड़ के फाफड़ से
वातानुकुलित कक्ष
सहमी सतर्क
न चहचहाती न फुदकती
कोठरी की छत को
निहारती फद्गुदी
अपनी आँखों मे ढ़ोती
घनी अमरायी कानन की......
....टहनियों के झुंड मे
झूलते घोंसले
जहां चोंच फैलाये
बाट जोह रहे हैं
चिचियाते चूजे!
भटक गयी है गौरैया
रास्ता अपने चमन का !
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ReplyDeleteIndira Gupta
+1
मार्मिक ओर गहन सोच की रचना ।
👏👏👏👏👏👏
अल्फाजो के दरवाजों से
गोरैया चिल्लाती है
कंकरीट के उगते जंगल से
फड़फड़ाने की आवाज आती है ।
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Vishwa Mohan
हार्दिक आभार!!
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Meena Gulyani
+2
bahut sunder
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Vishwa Mohan
+Meena Gulyani आभार!
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NITU THAKUR
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बेहद शानदार रचना .....खूबसूरत
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अंतर को छूती रचना गौरैया बस गायब होने के कगार पर है।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर
जी, अत्यंत आभार।
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