Thursday 7 September 2017

'पूरा सच'

शफ्फाक श्वेत साया,
एक कलपती काया.
सरकी सपने रात,
झकझोरा, जगाया.

कहा, सोये हो!
भाई, उठो जागो.
बांधो बैनर, मोमबती
जुलुस में भागो.

दाभोलकर, पानसेर, कलबुर्गी,
फट फ़टाफ़ट हैटट्रिक!
फिर कन्नड़काठी कलमकार,
गौरी लंकेश पैट्रिक!

कल मुझे सुलाने पर,
गर तुम न सोते!
फट फटा फट फिर,
विकेट यूँ न खोते!

'पंथी' नहीं था मैं,
लो, मान लिया भाई.
चलो, ये भी माना,
लोकल, छोटा पत्रकार कस्बाई.

पर घर की आबरू,
भाई, सब पर भारी.
या लूटना ललना को,
राम-रहीम की लाचारी!

मेरा क्रांतिकारी कद!
कसम से कसमसाया.
पर पुचकार के पूछा,
तुम कौन! किसने बुलाया?

साया सुगबुगाया, फुसफुसाया,
आवाज फुटती, बुझती......
......मै! 'पूरा सच'
रामचन्द्र छत्रपति!

11 comments:

  1. अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
    अमित जैन 'मौलिक'
    Owner
    +1
    दाभोलकर, पानसेर, कलबुर्गी,
    फट फ़टाफ़ट हैटट्रिक!
    फिर कन्नड़काठी कलमकार,
    गौरी लंकेश पैट्रिक!

    कल मुझे सुलाने पर,
    गर तुम न सोते!
    फट फटा फट फिर,
    विकेट यूँ न खोते!

    बहुत ही ख़ूब विश्व मोहन जी। आप हरफ़नमौला हैं। वाह क्या भाषा है। ये रूप आपका पहली बार देखा। व्यंग लिखना कतई आसान नहीं। और व्यंग्यात्मक भाषा, शाब्दिक चयन, रंचन तो और भी सहज नहीं। नमन आपकी प्रतिभा को।

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    Sep 9, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +अमित जैन 'मौलिक' आपके आशीर्वचनों का आभार!
    Sep 9, 2017
    vinod soni's profile photo
    vinod soni
    +1
    बहुत ख़ूब विश्व मोहन जी
    नमन आपकी लेखनी को 🙏🙏
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    Sep 12, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +vinod soni आपके आशीर्वचनों का आभार!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. वाह गज़ब .. पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या पर आपकी
    व्यंग्यात्मक प्रहार करती पैनी रचना।

    प्रणाम
    सादर।

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  4. उस समय की समसामयिक धारदार रचना ।

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  5. राम रहीम का पूरा सच लिखने वाले रामचंद्र छत्रपति की नृशंस हत्या और उस पर रोटी सेकने वालों के क्रिया कलापों पर बड़ी धारदार लेखनी चली है। एक लोकल पत्रकार से डरे राम रहीम को इतना खतरा हो गया था कि उसकी हत्या ही करवा डाली। एक सटीक व्यंगात्मक रचना जो सभ्य समाज के विद्रूप चेहरे से नक़ाब हटाती है🙏🌷

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  6. मेरा क्रांतिकारी कद!
    कसम से कसमसाया.
    पर पुचकार के पूछा,
    तुम कौन! किसने बुलाया?

    साया सुगबुगाया, फुसफुसाया,
    आवाज फुटती, बुझती......
    ......मै! 'पूरा सच'
    रामचन्द्र छत्रपति!
    रामचन्द्र छत्रपति की मौत और कारण का पूरा सच बस एक नाम रामचन्द्र छत्रपति!!!
    लाजवाब व्यंग।

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