भनसा घर, कोना,
पीअरी माटी से लीपा
सेनुर से टीकी दीवार,
सजता संवरता
हर तीज त्यौहार.
सुहाग सुहागन
करते पूरी
रसम कोहबर का।
आज ऊँघता मिला!
छिटककर दूर पड़ा,
मुर्छाए दोने के पास
अच्छत वाले चाऊर के,
हल्दी का टुकड़ा ।
फुआजी के अँचरा से,
चाची के खोईंछा का।
सहेजता सोंधी यादों को
कालजयी और धूल-धूसरीत!
सूंघता मिला!
धुल की मोटी जाजीम पर लेटा,
करीने से बुने मकड़जाल.
चंदवे और चादर
आच्छादित चहुमुख.
सरीआ रहे थे अनाज
पुराने ढकने मे,
गण गणपति के.
और हो रहा था मटकोर
सामने अगिन कोन.
सूख चुका था
जल कलसा का.
छोड़कर
धब्बे, धूसरित
अतीत के,
मानो हो आँखें
बेपानी
आज की!
निःस्वाद!
ढब ढब,
दरिया से,
यादों के
लोर.
नयनो के कोर में,
बाबा की.
अब भी छलकता
ज़िंदा था.
भविष्य का भोर!
शब्दार्थ: भंसा घर- गाँव के घर का वह हिस्सा जहाँ रसोई बनती है और घर के कुल देवी/देवता का स्थान होता है.
पिअरी माटी- पीली मिटटी जिससे घर का फर्श लीपा जाता है.
सेनुर- सिंदूर, चाऊर - चावल, अच्छत - अक्षत, खोईंछा -विदायी के समय बेटी के आँचल में दिया जानेवाला सगुन।
कोहबर- विवाह के बाद वह स्थान (कुल देवी/देवता के पास) जहाँ नवविवाहित जोड़ा अपना पहला साथ बिताने की रस्म पूरी करता है.
जाजिम - बिछौना, ढकना - कलश का ढक्कन, कलसा - कलश . गण गणपति के - गणेश के वाहन चूहे ,
सरिआना - सजाना , जमा करना.
मटकोर- विवाह की पूर्व संध्या पर सत्यनारायण भगवान की पूजा करने और महिलाओं द्वारा माटी खोदने की परंपरा. यहाँ पर चूहों द्वारा घर के कोने में मिट्टी खोदने का अर्थ लिया गया है.
अगिन कोन- दक्षिण पूर्व कोना
लोर- आंसू,
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ReplyDeleteKusum Kothari
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+1
कुछ शब्दों के मायने समझ नही आये शायद आंचलिक भाषा के होने की वजह से। भाव
गहरे, मान्यताओं का बदलता स्वरुप विद्रूप सा होता जा रहा है, जैसे सिर्फ ढर्रे को निबाहना है।
आंतरिक क्षोभ प्रकट करती रचना।
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Vishwa Mohan
+Kusum Kothari
हार्दिक आभार आपका. सुविधा के लिए मैंने कुछ शब्दों के अर्थ लिख दिए हैं.
NITU THAKUR: वाह !!! बहुत अच्छा लिखा
ReplyDeleteVishwa Mohan: +Nitu Thakur आभार!!!