Wednesday, 14 March 2018

विश्व विटप, प्राणी पाखी


अ परिचित उर्मी सी आ तू ,
जलधि वक्ष पर चढ़ आई.
ह्रदय गर्त में धंस धंसकर
तू धड़कन मेरी पढ़ आयी.
संग प्रीत-रंग, सारंग-तरंग
तू धरा कूल की ओर बही,
विरह विगलन  की व्यथा कथा
कहूँ कासे, अबतक नहीं कही.

पूनम को जब शुक्ल पक्ष का
चाँद गगन में बुलाता है.
विरह अगन में दग्ध विश्व का
सागर सा मन अकुलाता है.
नागिन सी फिर कृष्ण की रातें
धीरे धरा पर आती हैं.
आकुल व्याकुल शापित विश्व के
अंग अंग डस जाती है.

गड़े गाछ ठूंठे ठिठके से
घास पात सब सूखे से.
पतझड़ का हो पत्रपात तो
पञ्च प्राण सब रूखे से.
पुनि वसंत पंचम में कोयल,
रस यौवन भर जाता है
विकल-विश्व बीत विरह-व्यास
मिलन मधुर फिर आता है.

उत्स उषा है दुपहरी की
प्रत्युष गोधुल में खोती.
अंतरिक्ष के आँचल को
चंदा की किरणें धोती.
खिले धरा से, मिले धरा में
क्षितिज छोर खड़ा साखी है.
अमर कथा आने जाने की,
विश्व विटप, प्राणी पाखी है.

1 comment:

  1. Shubha Mehta's profile photo
    Shubha Mehta
    +1
    वाह!!!
    47w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    आभार!!!
    47w
    NITU THAKUR's profile photo
    NITU THAKUR
    Owner
    +1
    वाह !!! क्या खूब रचना
    Translate
    47w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Nitu Thakur
    अत्यंत आभार आपका!!!

    ReplyDelete