मेरी छोटी पुत्री वीथिका स्मृति (भूतपूर्व सह-शोधार्थी, आई आई टी, दिल्ली और शोध छात्रा आईआईएम बंगलोर) की कविता
" ज़िंदगी या मैं! "
मैं कुछ मन से चाहूँ
ज़िन्दगी उसे मुझसे छीने,
मैं हार कर गिर जाऊं
और ज़िंदगी मुझपे हंसने लगे.
मैं फिर से खड़ी हो जाऊं
और ज़िंदगी पे हंसने लगूं.
ऐसा फिलहाल
दो तीन बार ही हुआ है
कि कुछ मन ने चाहा है
पर ज़िन्दगी ने
मना कर दिया है.
मज़ा आने लगा है
छीना-झपटी के
इस खेल में.
इस बार और मन से चाहूंगी ,
देखती हूँ
कौन जीतता है
ज़िंदगी या मैं !
_____ वीथिका स्मृति
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ReplyDeleteanchal pandey
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वाह बेहद खूबसूरत
भावपूर्ण हृदयस्पर्शी उत्क्रष्ट रचना
आपकी पुत्री को ढेरों शुभकामनाएँ
सादर नमन
शुभ संध्या
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Vishwa Mohan
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+anchal pandey बहुत आभार आपके आशीष का वीथिका को!!!!
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Indira Gupta
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वाह वाह ...चूहे के जाये बिल ही खौदेगे ...कहावत चरितार्थ कर दी वीथिका ने ...जैसा पिता वैसी पुत्री ....बेमिसाल ....👌👌👌👌👌👌👌
नन्ही कलम समझ गई
जिंदगी का खेल
और समझ कर पंगा करती
डरती नहीं लवलेश
जिंदगी की आँख मैं आँख डाल कर
जो रोज खेल रचाती है
ऐसी लेखनी स्वयं एक दिन
गरिमामय हो जाती है !
नमन विश्व मोहन जी
नमन वीथिका
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Vishwa Mohan
+Indira Gupta बहुत आभार आपके आशीष का वीथिका को!!!!
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Malti Mishra
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वाह सचमुच भावों की उत्कृष्टता, जीत को छीन लाने की जिद वाह👏👏👏👏
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Kusum Kothari
Moderator
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बहुत सुंदर!!
अप्रतिम भाव सुंदर काव्य।
सदैव मां शारदा की कृपा बनी रहे विथीका बिटिया पर, आसमान की बुलंदियों को छुती रहे सुकोमल सुमन से सजी रहे विथीका की "विथिकाऐं"।
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Vishwa Mohan
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+Malti Mishra बहुत आभार आपके आशीष का वीथिका को!!!!
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Vishwa Mohan
+Kusum Kothari बहुत आभार आपके आशीष का वीथिका को!!!!
बहुत खूब !!!!!! सकारात्मकता भरा सृजन !!! तुमने जो लिखा वो कर दिखाया !!! शाबास वीथिका | हार्दिक शुभकामनायें | यशस्वी भव !!!!!!!!!!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपके आशीष का!
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