Monday 27 August 2018

प्रेयसी-पी!

मौत! बन ठन के
मीत मेरे मन के
सौगात मेरे तन के!
जनमते ही चला
मिलने को तुमसे।

'प्रेय' पथ की मेरी
प्रेयसी हो तुम।
आकुल आतुर
मिलने को तुमसे
पथिक हूँ तुम्हारा।

तिल तिल कर
हो रहा हूँ खर्च
इस पथ पर
पाथेय बन स्वयं।
छूटती जाती पीछे.....

छवियाँ अनगिन,
और बिम्ब बेपनाह।
गढ़े थे जिनको
'मैं' ने मेरे!
साथ साथ.....

बुनते गुनते रिश्ते,
उन बिम्बों से।
लीक पर
समय की अब।
प्रतिबिम्ब बन....

यदा-कदा यादों के
झलमलाते, फुसलाते
रीझाते, खिझाते।
भ्रम की भँवर में
तिरते उतराते।

खुल रहे हैं
अब शनैः शनैः,
बंधन भ्रम के
गतानुगतिक व्यतिक्रम से।
पथ यह 'प्रेय'.......

बनता अब 'श्रेय'!
मौत! बन ठन के
मीत मेरे मन के
सौगात मेरे तन के!
साध्य श्रेयसी सी
हैं हम प्रेयसी-पी!



1 comment:

  1. Renu's profile photo
    Renu
    आदरणीय कविवर ! मौत को प्रेयसी और श्रेयसी मान उसका आकुल , आतुर प्रेमी और पी बनने की कल्पना अत्यंत अनूठी और मर्मस्पर्शी है | सुंदर आलौकिक रचना हेतु हार्दिक बधाई | सपरिवार पावन जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार हो !!सादर
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    23w
    NITU THAKUR's profile photo
    NITU THAKUR
    Owner
    +1
    सुंदर रचना 👌👌👌
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    23w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +NITU THAKUR जी, अत्यंत आभार आपका!!!
    22w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Renu जी, कविता के मर्म की मीमांसा का अत्यंत आभार आपका!!!

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