Tuesday, 24 July 2018

'मैं'


देह स्थूल जंगम नश्वर 'मैं',
रहा पसरता अहंकार में.
सूक्ष्म आत्मा तू प्रेयसी सी,
स्थावर थी, निर्विचार से.

तत्व पञ्च प्रपंच देह 'मैं',
रहा धड़कता साँसों में.
जीता मरता 'मैं' माया घट,
फँसा फंतासी फांसों में.

भरम-भ्रान्ति 'मैं' भूल-भुलैया,
मायावी, छल, जीवन-मेला
लिप्त लास में 'मैं' ललचाया
आँख मिचौली यूँ खेला !

त्यक्ता 'मैं', रीता प्रीता से,
मरणासन्न मरुस्थल में.
नि:सृत नीर नयन नम मेरे,
फलक पलक 'मैं' पल पल में.

सिंचित सैकत कर उर उर्वर,
प्रस्थित प्रीता, अपरा प्रियवर.
विरह विषण्ण विकल वेला 'मैं'!
महोच्छ्वास, निःशब्द, नि:स्वर!


1 comment:

  1. NITU THAKUR's profile photo
    NITU THAKUR
    Owner
    +1
    बहुत ही लाजवाब शब्द चयन
    गहरी सोच और गूढ शब्द 👌👌👌
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    28w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +NITU THAKUR आभार!!!
    28w
    Meena Gulyani's profile photo
    Meena Gulyani
    +1
    beautiful words and poem in deep sense
    27w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    आभार!!!
    27w
    Meena Gulyani's profile photo
    Meena Gulyani
    +1
    Welcome ji
    27w

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