अकेले ही जले दीए
मुंडेर पर इस बार।
न लौटे जो कुल के दीए
गांव, अबकी दिवाली पर।
भीड़ गाड़ी की
आरक्षण की मारामारी
सवारी पर गिरती सवारी
भगदड़ में भागदौड़।
और किराए की रकम,
लील जाती जो लछमी को!
उधर उम्मीदों के दीयों को
आंसूओं का तेल पिलाती
'व्हाट्सअप कॉल '
में खिलखिलाती
पोते- पोती सी आकृति
अपने पल्लुओं से
पोंछती, पोसती
बारबार बाती उकसाती!
पुलकित दीया लीलता रहा
अमावस को।
उबारता गुमनामी से
गांव - गंवई को ,
सनसनाती हवाओं की
शीतल लहरी पर,
तैरता सुदूर बिरहे का स्वर।
उधर गरजता, दहाड़ता
पूरनमासी - सी
सिहुराती रोशनी में,
दम दम दमकता
दंभी शहर!
मुंडेर पर इस बार।
न लौटे जो कुल के दीए
गांव, अबकी दिवाली पर।
भीड़ गाड़ी की
आरक्षण की मारामारी
सवारी पर गिरती सवारी
भगदड़ में भागदौड़।
और किराए की रकम,
लील जाती जो लछमी को!
उधर उम्मीदों के दीयों को
आंसूओं का तेल पिलाती
'व्हाट्सअप कॉल '
में खिलखिलाती
पोते- पोती सी आकृति
अपने पल्लुओं से
पोंछती, पोसती
बारबार बाती उकसाती!
पुलकित दीया लीलता रहा
अमावस को।
उबारता गुमनामी से
गांव - गंवई को ,
सनसनाती हवाओं की
शीतल लहरी पर,
तैरता सुदूर बिरहे का स्वर।
उधर गरजता, दहाड़ता
पूरनमासी - सी
सिहुराती रोशनी में,
दम दम दमकता
दंभी शहर!
वाह बेहतरीन रचना। वाहनो की भीड़ और आरक्षणो की लाचारी दर्शाती बेजोड़ प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार हृदय तल से!
Deleteवाह!! बहुत ही उम्दा भाव!!सही है अब फोन पर ही बच्चों को देख खुश होने की कोशिश की जाती है ......।
ReplyDeleteशुभकामनाएं। लाजवाब।
ReplyDeleteआभार हृदय तल से!
Deleteवर्तमान समय की परिस्थितियों पर सुंदर रचना
ReplyDeleteमेरी रचना दुआ पर पधारें
बहुत ही भावुक रचना। गाँव की याद आ गयी। आपने बहुत सुन्दर ढंग से गाँव और शहर के बीच भिन्नता प्रस्तुत किया है। गाँव में मनाया गया प्रत्येक त्योहार का अलग ही रंग होता है।
ReplyDeleteआभार हृदय तल से!
Deleteउधर उम्मीदों के दीयों को
ReplyDeleteआंसूओं का तेल पिलाती
'व्हाट्सअप कॉल '
में खिलखिलाती
पोते- पोती सी आकृति
अपने पल्लुओं से
पोंछती, पोसती
बारबार बाती उकसाती!
पुलकित दीया लीलता रहा
अमावस को।
सही कहा अब तो रिश्ते व्हाट्सएप पर ही निभाये जा रहे हैं
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
आभार हृदय तल से!
Deleteआभार हृदय तल से!
ReplyDeleteपुलकित दीया लीलता रहा
ReplyDeleteअमावस को।
बहुत ही सारगर्भित पंक्ति।
आपकी यह अभिव्यक्ति अपने गाँव से दूर रोजी रोटी की तलाशा में गए उन लाखों भारतीयों की पीड़ा को व्यक्त कर रही हैं जो किसी मजबूरीवश गाँव, परिवार के पास दीपावली पर नहीं पहुँच पाते। कल दीपावली के लिए घर की साफ सफाई और थोड़ी बहुत खरीददारी करते समय यही भाव मेरे मन में उन सैनिकों के लिए आ रहे थे जो सीमाओं पर पहरा देते हैं। बहुत अच्छी रचना।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteवाह बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteमन को झझकोरता बहुत ही मार्मिक सृजन आदरणीय विश्वमोहन जी जो ना जाने कितने लोगों के जीवन का कड़वा सच है.
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ. 🌹🌹💐💐🙏🙏🙏
ReplyDeleteशुभ दीपोत्सव!!!
Deleteउधर उम्मीदों के दीयों को
ReplyDeleteआंसूओं का तेल पिलाती
'व्हाट्सअप कॉल '
में खिलखिलाती
पोते- पोती सी आकृति
अपने पल्लुओं से
पोंछती, पोसती
बारबार बाती उकसाती!
पुलकित दीया लीलता रहा
अमावस को।
👌👌👌🙏🙏🙏
जी, बहुत आभार।
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