नयन नील अम्बर पनघट सा
श्याम हीन कालिंदी तट सा .
पथ अनंत आशा अनुराग का
पलक पुलक पल प्रेम पराग का.
पथ अनंत आशा अनुराग का
पलक पुलक पल प्रेम पराग का.
"ऊपर
से हो नारिकेल सा
अंतस नवनीत सा बहता है.
प्रीत पंथ का अथक पथिक
गुह्यात गुह्यतम गहता है"..
अंतस नवनीत सा बहता है.
प्रीत पंथ का अथक पथिक
गुह्यात गुह्यतम गहता है"..
है ऐसी कौन बात प्रिये
जो मन विचलित कर जाती है।
वो टीस वेदना की कैसी
जो मन मे नित भर जाती है।
जो मन विचलित कर जाती है।
वो टीस वेदना की कैसी
जो मन मे नित भर जाती है।
अनायास ये दर्द कैसा ?
कर जाता जो पलको को नम !
करूँ श्रृंगार खुशियों से तेरा
पीकर मैं सारा वो गम।
अपने अधरों को मीठा कर ले
ले सारे मुस्कान मेरे।
अब कर ले आतुर जगने को
खोये उमड़े गीत तेरे।
स्पंदन उर का तेरा,
सपनों का चतुर चितेरा ।
छुप छुपकर छवि तुम्हारी,
हृदय में हमने उकेरा।
सपनों का चतुर चितेरा ।
छुप छुपकर छवि तुम्हारी,
हृदय में हमने उकेरा।
स्वपन सजन बन नयनो के ,
चिलमन में आ जाना ।
प्रीत की पाती की बतियों पे ,
सहमी क्यों, मुसका ना !
चिलमन में आ जाना ।
प्रीत की पाती की बतियों पे ,
सहमी क्यों, मुसका ना !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-02-2019) को "फीका पड़ा बसन्त" (चर्चा अंक-3245) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर। शब्दों और भावों का खूबसूरत संयोजन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
मंगलवार 12 फरवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1306 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
जी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteमधुर शब्द संयोजन ... हर छंद मन की प्यास को बढ़ा जाता है ...
ReplyDeleteप्रेम का भाव स्फुटित होता है जो सादे मधुर प्रेम के एहसास को दूना कर जाता है ... लाजवाब रचन ...
जी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteलाजवाब रचना..
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteवाह!!बहुत ही सुंदर !!शब्दों का अद्भुत संयोजन !!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लाजवाब रचना...
ReplyDeleteअद्भुत शब्दविन्यास!!!
जी, अत्यंत आभार आपके आशीष का!
Deleteअप्रतिम .....👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteसदा की तरह आपका लेखन काव्य ग्रंथ जैसा
शब्दो का आरोह अवरोह कवि एक सरगम जैसा !
आपके आशीष सर्वदा हमें अभिभूत करते हैं. आभार.
Deleteआदरणीय विश्वमोहन जी -- आकंठ अनुरागरत मन की अप्रितम सांत्वना जो विकल मन की वेदना को शीतलता प्रदान करती मन को छू जाती है | इस सुंदर आत्मीयता भरी रचना के लिए जितनी प्रशंसा करूं कम है | आपकी लेखनी से निकले एक औरअनूठे प्रणय गान के सृजन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनायें और बधाई |
ReplyDeleteआपके आशीष सर्वदा हमें अभिभूत करते हैं. आभार
Deleteअद्भुत सृजन.... शब्द शिल्प, शब्द चयन, भावों का समन्वय, पूर्णतः उत्तम कविता
ReplyDeleteआपके आशीष सर्वदा हमें अभिभूत करते हैं।
Deletehttps://nkutkarsh.blogspot.com/2019/02/badla.html
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं से भरा ब्लॉग.
Deleteमनभावनी, हृदयस्पर्शी अत्यंत मनमोहक सृजन विश्वमोहन जी..जितनी बार पढ़े और एक बार पढ़ लें यही इच्छा हो रही..बहुत सुंदर रचना के बधाई और अति आभार आपका।
ReplyDeleteआपके आशीष सर्वदा हमें अभिभूत करते हैं।
Deleteस्वपन सजन बन नयनो के ,
ReplyDeleteचिलमन में आ जाना ।
प्रीत की पाती की बतियों पे ,
सहमी क्यों, मुसका ना !.... वाह, बहुत सुंदर रचना
आपके आशीष सर्वदा हमें अभिभूत करते हैं।
Delete