भाव तरल तर,
अक्षर झर-झर,
शब्द-शब्द मैं,
बन जाता हूँ.
धँस अंतस में,
सुधा सरस-सा,
नस-नस में मैं,
बस जाता हूँ.
पुतली में पलकों की पल-पल,
कनक कामना कमल-सा कोमल.
अहक हिया की अकुलाहट,
मिचले मूंदे मनमोर मैं चंचल.
शीत तमस तू,
सन्नाटे में,
झींगुर की,
झंकार-सी बजती.
चाँदनी में चमचम,
चकोर के,
दूध धवल,
चन्दा-सी सजती.
धमक धरा धारा तू धम-धम,
छमक छमक छलिया तू छमछम.
रसे रास यूँ महारास-सा,
चुए चाँदनी, भींगे पूनम.
छवि अगणित,
कंदर्प का,
शतदल सरसिज,
सर्प-सा.
काढ़े कुंडली,
अधिकार का,
अभिशप्त मैं
अभिसार का.
मैं छद्म बुद्धि विलास वैभव
मनस तत्व, तू वेदना.
मैं प्रकृति का पञ्च-तत्व,
और पुरुष की तू चेतना.
हमेशा की तरह बेहद शानदार,गूढ़ भावपूर्ण अभिव्यक्ति विश्वमोहन जी। बेहद खूबसूरत रचना...वाह्ह्ह👌
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका!!!!!
Deleteआपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 09 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका!!!!!
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-02-2019) को "यादों का झरोखा" (चर्चा अंक-3241) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी, अत्यंत आभार आपका!!!!!
Deleteलाजवाब रचना
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका!!!!!
Deleteशीत तमस तू,
ReplyDeleteसन्नाटे में,
झींगुर की,
झंकार सी बजती....खूबसूरत रचना विश्वमोहन जी
जी, अत्यंत आभार आपका!!!!!
Deleteबेहतरीन और लाजवाब सृजन ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका!!!
Deleteखूबसूरत रचना।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteबहुत सुंदर रचना,विश्वमोहन जी।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका
Deletebahut hi shandar
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका
Deleteधमक धरा धारा तू धम धम,
ReplyDeleteछमक छमक छलिया तू छम छम.
रसे रास यूँ महारास सा,
चुए चाँदनी, भींगे पूनम.!!!!!!
बहुत ही सुंदर !!! आदरणीय विश्वमोहन जी -- अनुप्रास की अनुपम छटा और शब्द -शब्द झरता अनुराग भाव ! मनमोहक काव्य सृजन में पिरोई गई -सम्मोहित सी करती प्रकृति और पुरुष की अमरकथा के लिए सराहना के सब शब्द निरर्थक हैं | अपनी पहचान आप आपकी सुपरिचित शैली में भावों और शब्दों का तालमेल बहुत ही मनभावन है | हार्दिक शुभकामनायें और कामना कि माँ शारदे इस सृजन शक्ति में चार चाँद लगाती रहे |सादर --
जी, अत्यंत आभार आपका!!!
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय
ReplyDeleteसादर
जी, अत्यंत आभार आपका।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteआपकी दार्शनिक अंदाज़ की इस रचना को बार-बार पढ़ा, हर बार नया अर्थ निकला। संस्कृतनिष्ठ हिंदी में आपका रचनाकर्म रसिकता और रोचकता बनाये हुए है।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएँ। लिखते रहिये।
अत्यंत आभार आपका विशेष रूप से आपके सुझाए संशोधनों का.
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 09 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपके स्नेहाशीष का हृदयतल से आभार।
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteअत्यंत आभार।
Deleteरसे रास यूँ महारास-सा,
ReplyDeleteचुए चाँदनी, भींगे पूनम.
कमाल का सृजन हमेशा की तरह...अनुप्रास आदि अलंकारों से अलंकृत...
वाह!!!!
आपके आशीष का आभार।
Deleteभाव तरल तर,
ReplyDeleteअक्षर झर-झर,
शब्द-शब्द मैं,
बन जाता हूँ.
धँस अंतस में,
सुधा सरस-सा,
नस-नस में मैं,
बस जाता हूँ.
अत्यंत मनभावन , सरस काव्य👌👌👌🙏🙏
आभार, आपके आशीष का।
Deleteअलंकारों का बेहतरीन प्रयोग।
ReplyDeleteउपमा का प्रयोग क्या बात है...वाह।
शानदार रचना।
नई पोस्ट - कविता २
आपके आशीष का आभार।
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