बीच बीच में
उग आते हैं ,
द्वीप।
जड़वत।
हमारे
चिंतन प्रवाह की तरलता
में विचारो के
जड़ तत्व की तरह,
जिन पर छा जाता है
अरण्य अहंकार का।
चतुर्दिक फैली जलधि
प्रशांत मन की
करती प्रक्षालित
विचार द्वीपों को
चंचल बौद्धिक लहरियों से।
करती अठखेली
अहंकार की अमर वेलि।
लहरियों के लौटते ही
अपनी शुष्कता में सूख
ठूंठ सा होने लगता अहंकार।
किन्तु चंचल चाल है
मन से लहकी इन लहरों की
ढालती है
बुद्धि का हलाहल
अहंकार में
मनोरम मायावी ममत्व से!
मन, बुद्धि और अहंकार
यह स्पर्श छल जाल।
सागर, लहर और अरण्य
जीवन देते हैं टापू को,
एक पेड़ की जड़ में
पनपते हैं कई पौधे
छोटे छोटे अहंकार के।
गिरते ही,बड़े के, ठूंठ होकर
फिर तन के खड़ा हो जाता दूसरा!
फिर सुनामी महाकाल का।
धो -पोंछ देता है
इस रक्तबीज वंश अरण्य को।
शेष रहता है प्रशांत सागर, लीलते
हिलती-डुलती लीलावती लहरों को!
उग आते हैं ,
द्वीप।
जड़वत।
हमारे
चिंतन प्रवाह की तरलता
में विचारो के
जड़ तत्व की तरह,
जिन पर छा जाता है
अरण्य अहंकार का।
चतुर्दिक फैली जलधि
प्रशांत मन की
करती प्रक्षालित
विचार द्वीपों को
चंचल बौद्धिक लहरियों से।
करती अठखेली
अहंकार की अमर वेलि।
लहरियों के लौटते ही
अपनी शुष्कता में सूख
ठूंठ सा होने लगता अहंकार।
किन्तु चंचल चाल है
मन से लहकी इन लहरों की
ढालती है
बुद्धि का हलाहल
अहंकार में
मनोरम मायावी ममत्व से!
मन, बुद्धि और अहंकार
यह स्पर्श छल जाल।
सागर, लहर और अरण्य
जीवन देते हैं टापू को,
एक पेड़ की जड़ में
पनपते हैं कई पौधे
छोटे छोटे अहंकार के।
गिरते ही,बड़े के, ठूंठ होकर
फिर तन के खड़ा हो जाता दूसरा!
फिर सुनामी महाकाल का।
धो -पोंछ देता है
इस रक्तबीज वंश अरण्य को।
शेष रहता है प्रशांत सागर, लीलते
हिलती-डुलती लीलावती लहरों को!
वाह्ह्ह.. बेहद सराहनीय... शानदार सृजन...विश्वमोहन जी..👍👌👌
ReplyDeleteजी अत्यंत आभार आपका!!!
Deleteवाह अद्भुत रचना आदरणीय सर बेहद उम्दा 👌
ReplyDeleteसादर नमन सुप्रभात
जी अत्यंत आभार आपका!!!
Deleteअहंकार कब शाश्वत होता है। सार्थक अहसासों की खूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजी अत्यंत आभार आपका!!!
Deleteबेहद सराहनीय
ReplyDeleteजी अत्यंत आभार आपका!!!
Deleteद्वीप के बहाने समग्र मानव व्यवहार की विसंगतियों का विहंगावलोकन करती सार्थक चिंतन करती रचना। एक बौद्धिक सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏💐💐🙏🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपके सुंदर शब्दों का।
Deleteप्रेक्षणीय व्यवहार का अध्ययन...मन, बुद्धि और अहंकार
ReplyDeleteयह स्पर्श छल जाल।
सागर, लहर और अरण्य
जीवन देते हैं टापू को,....खूबसूरत अभिव्यक्ति।
अत्यंत आभार, आपकी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया का।
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