Saturday, 11 May 2019

फूल और कांटा

सूख रहा हूँ मैं अब
या सूख कर
हो गया हूँ कांटा।
उसी की तरह
साथ छोड़ गया जो मेरा।
गड़ता था
सहोदर शूल वह,
आंखों में जो सबकी।
सच कहूं तो,
होने लगा है अहसास।
अलग अलग बिल्कुल नही!
वजूद 'वह' और 'मैं ' का।
कल अतीत का  खिला
फूल था मैं,
और आज सूखा कांटा
वक़्त का!
फूल और काँटे
महज क्षणभंगुर आस्तित्व हैं
पलों के अल्पविराम की तरह।
मगर चुभन और गंधों की मिठास!
मानो चिरंजीवी
समेटे सारी आयु
मन और बुद्धि के संघर्ष का।

30 comments:


  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-05-2019) को

    "मातृ दिवस"(चर्चा अंक- 3333)
    पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

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  2. मन की तड़प और समय की चुभन का सुंदर चित्रण । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय विश्वमोहन जी।

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  3. मन का चित्रण
    मन से..
    एक बार और
    पढ़ना पड़ेगा
    मन से...
    सादर...

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  4. सुन्दर प्रस्तुति

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  5. अति सुंदर चिंतन,विश्लेषण
    फूल और काँटा..।
    सार्थक सृजन विश्वमोहन जी।

    जीवन प्रति क्षण फूल है फिर काँटा
    मनोभावों को समय की रेती ने बाँटा।

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  6. कल अतीत का खिला
    फूल था मैं,
    और आज सूखा कांटा
    वक़्त का!
    फूल और काँटे
    महज क्षणभंगुर आस्तित्व हैं
    पलों के अल्पविराम की तरह।
    मगर चुभन और गंधों की मिठास!....बेहतरीन सृजन आदरणीय
    निशब्द
    सादर

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  7. लाज़बाब ,हमेशा की तरह ,सादर नमन

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  8. बहुत सुन्दर !
    काहे को मनवा इतना उदास?

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    1. टीस-टीसकर कांटे जो चुभे
      और फूलों की शिथिल सुवास.
      चित चंचल हो डगमग डोले,
      तो भी मनवा हो न उदास!!!

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  9. फूल और काँटे
    महज क्षणभंगुर आस्तित्व हैं
    पलों के अल्पविराम की तरह।
    मगर चुभन और गंधों की मिठास!
    मानो चिरंजीवी
    समेटे सारी आयु
    मन और बुद्धि के संघर्ष का।
    फूल और कांटे के माध्यम से सार्थक चिंतन आदरणीय विश्वमोहन जी | सादर शुभकामनायें |

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  10. तत्वबोध बिम्बों और प्रतीकों के ज़रिये। जीवन में अनेक पहलू हैं जो अभिव्यक्ति का मार्ग तलाशते रहते हैं।

    सुन्दर सृजन।


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  11. इतनी उदासी क्यूँ । खिलते रहें सर्वदा।

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    1. हा हा, कोई उदासी नहीं.अत्यंत आभार।

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  12. बहुत अच्छी कविता

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका!!!!

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  13. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 23 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  14. वजूद 'वह' और 'मैं ' का।
    कल अतीत का खिला
    फूल था मैं,
    और आज सूखा कांटा
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर, चिन्तनपरक, लाजवाब रचना...

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    1. बहुत आभार आपके आशीष का।

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  15. Replies
    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  16. महज क्षणभंगुर आस्तित्व हैं
    पलों के अल्पविराम की तरह।
    मगर चुभन और गंधों की मिठास!....बेहतरीन

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके आशीष का!!!

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