Friday 12 July 2019

चाचा की जुबानी : परदादी माँ से सुनी एक कहानी




पिछले दिनों विक्रम सक्सेना का बाल उपन्यास 'चाचा की जुबानी : परदादी माँ से सुनी एक कहानी' अमेज़न पर लोकार्पित हुआ। 137 पृष्ठों के इस उपन्यास को पढ़ने में लगभग सवा तीन घंटे लगते हैं। इस पुस्तक का आमुख मेरे द्वारा लिखा गया।
आमुख
साहित्य के अभाव में समाज हिंसक हो जाता है. भावों में सृजन के बीज का बपन बचपन में ही होता है. जलतल की हलचल उसकी तरंगों में संचरित हो सागर के तीर को छूती है. वैसे ही चतुर्दिक घटित घटनाओं से हिलता डुलता मन संवेदना की नवीन उर्मियों को अनवरत उर के अंतस से उद्भूत करते रहता है. बाह्य बिम्ब और अंतस में उपजे तज्जन्य संवेदना के तंतु बाल मन में सृजन के संगीत की धुन बनाते हैं. उसी धुन में कल्पना के सुर, चेतना का ताल और अभिव्यंजना के साज सजकर नवजीवन के अनुभव का गीत बन जाते हैं. फिर धीरे-धीरे अक्षर और शब्दों के संसार से साक्षात्कार के साथ ज्ञान का अनुभव से समागम होता है और बाल मन रचनात्मकता के पर पर सवार होकर सत्य के अनंत के अन्वेषण की यात्रा पर निकलने को तत्पर हो जाता है.
आदि-काल से ही श्रुति और स्मृति की सुधा-धारा ने अपनी सरल, सरस और सुबोध शैली में हमारी ज्ञान परम्परा को समृद्ध किया है. माँ की गोद में सुस्ताता और उसके आँचल के स्पर्श से अघाता बालक उसकी लोरियों में अपने मन के तराने सुनते-सुनते सो जाता है. मन को गुदगुदाते इन तरानों में वह अपनी आगामी ज़िन्दगी के हसीन नगमों के राग और जीवन के रस से रास रचाता है. दादी-नानी की कहानियां उसके बाल-मन में कल्पना तत्व का विस्तृत वितान बुनती हैं. इन कहानियों से ही उसका रचनात्मक मन अतीत की गोद में सदियों से संचित बिम्बों, परम्पराओं, मूल्यों और प्रतिमानों के मुक्तक चुनता है. इन्ही मोतियों के हार में गुंथी फंतासी और सपनों की सतरंगी दुनिया उसे कल्पना का एक स्फटिक-फलक प्रस्तुत करती है. प्रसिद्द रसायन-वैज्ञानिक केकुल ने सपने में एक सांप को अपने मुंह में पूंछ दबाये देखा और इस स्वप्न चित्र ने कार्बनिक रसायन की दुनिया को बेंजीन की चक्रीय संरचना दी. कहने का तात्पर्य यह है कि सपनों के सतरंगे कल्पना-लोक की कोख से विचारों की नवीनता, शोध की कुशाग्रता, अनुसंधान की अनुवांशिकता और जिज्ञासा की जिजीविषा का जन्म होता है.
बालकों की कल्पना-शक्ति के उद्भव, विकास और संवर्द्धन में बाल-साहित्य का अप्रतिम योगदान रहा है. पंचतंत्र, रामायण, महाभारत, जातक-कथाएं, दादी-नानी की कहानियों में उड़ने वाली परियों की गाथा, भूत-प्रेत-चुड़ैलों की चटपटी कहानियां, चन्द्रकान्ता जैसी फंतास और तिलस्म के मकड़जाल का वृत्तांत और स्थानीय लोक कथाओं के रंग में रंगी रचनाएँ सर्वदा से बाल मन को कल्पना के कल्पतरु की सुखद छाया की शीतलता से सराबोर कराती रही हैं. किन्तु, दुर्भाग्य से इधर विगत कुछ वर्षों से साहित्य की यह धारा इन्टरनेट और सूचना क्रांति की चिलचिलाती धुप में सुखती जा रही है. न केवल संयुक्त परिवार का विखंडन प्रत्युत, एकल परिवारों में भी भावनात्मक प्रगाढ़ता और संबंधों की संयुक्तता के अभाव ने बालपन को असमय ही कवलित करना शुरू कर दिया है. बालपन की कोमल कल्पनाओं के कोंपल का असमय ही मुरझा जाना नागरिक जीवन में अनेक विकृतियों का कारण बनता जा रहा है. मूल्य सिकुड़ते जा रहे हैं, परम्पराएं तिरोहित हो रही हैं, आत्महीनता के भाव का उदय हो रहा है, मानव व्यक्तित्व अवसाद के गाद में सनता जा रहा है, जीवन की अमराई से कल्पना की कोयल की आह्लादक कूक की मीठास लुप्त होती जा रही है और जीवन निःस्वाद हो चला है.
ऐसे संक्रांति काल में विक्रम सक्सेना का यह बाल-उपन्यास ' चाचा की जुबानी : परदादी माँ से सुनी एक कहानी' शैशव की शुष्क मरुभूमि में मरीचिका के भ्रम में मचलते मृगछौने के लिए शीतल जल के बहते सोते से कम नहीं. उपन्यास का नाम ही इस देश की उस महान संयुक्त-परिवार व्यवस्था का भान कराता है जहाँ परम्परा से प्राप्त परदादी की कहानी को चाचा अपने भतीजे-भतीजी को सुना रहा है. इस नाम से उपन्यास की कथा का वाचन मानों गीता में भगवान कृष्ण के उस भाव को इंगित करता है:
" हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा से प्राप्त इस विज्ञान सहित ज्ञान को राज-ऋषियों ने विधिपूर्वक समझा, किन्तु समय के प्रभाव से वह परम-श्रेष्ठ विज्ञान इस संसार से प्रायः छिन्न-भिन्न होकर नष्ट हो गया. आज मेरे द्वारा वही यह प्राचीन योग तुझसे कहा जा रहा है....."
इस उपन्यास की कथावस्तु में इस तथ्य के योगदान को भी नहीं नकारा जा सकता कि उपन्यासकार, विक्रम, ने बाल-मन की कल्पना-धरा पर वैज्ञानिकता के बीज बोने का अद्भुत पराक्रम दिखाया है. आईआईटी रुड़की से धातु-कर्म अभियांत्रिकी में स्नातक इस कथाकार ने अपनी रचना में सोद्देश्यता के पक्ष का पालन तो किया ही है , साथ-साथ रचना की प्रासंगिकता के तत्व को भी बनाए रखा है जो बड़े आश्चर्यजनक रूप में रचना के अंत में प्रकट होता है. कहानी में जहाँ-तहां लेखक पीछे से छुपकर अजीबो-गरीब घटनाओं के प्रकारांतर से प्रमुख वैज्ञानिक अवधारणाओं और ज्ञानप्रद सूचनाओं की घुट्टी भी डाल देता है. बात-बात में वह सांप के एनाकोंडा प्रजाति की सूचना  देता है. छोटू-मोटू द्वारा तलवार से दो भाग करने के उपरांत कटा पूंछवाला खंड अनेक फनों वाले स्वतंत्र सांप में बदल जाता है. इस घटना द्वारा मानों लेखक अपने बाल-पाठकों को जीव विज्ञान में कोशिका विभाजन 'मिओसिस' और 'माईटोसिस' की सम्मिलित प्रक्रिया का भान करा रहा है. फिर उस तलवार की विशेषता भी जान लीजिये. 'ये कोई साधारण तलवार नहीं है. ये एक विशेष धार वाली तलवार है. इसको गर्म कोयले की आंच पर तपाया हुआ है. अति सूक्ष्म कार्बन के कण इसकी सतह पर हैं.'
सर से आग के गोला के उछालने का एक अन्य प्रसंग भी ध्यातव्य है, 'तब वो प्राणी बोला, मुर्ख! न तो ऊर्जा का नाश हो सकता है और न ऊर्जा उत्पन्न ही हो सकती है. ऊर्जा सिर्फ रूप बदलती है.' कितनी सहजता से ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांत को इस तिलस्मी घटना में पिरो दिया गया है! प्रकाश के परावर्तन के सिद्धांत को ये पंक्तियाँ बखूबी व्याख्यायित कराती हैं, 'आग का गोला दर्पण के सीसे से टकराकर वापस डायनासोर की ओर परावर्तित हो जाता है.' कथा धारा अपने अविरल प्रवाह में किसिम-किसिम के किरदारों के साथ फंतास और तिलस्म के जाल को बुनते और सुलझाते चल रही है. राजा कड़क सिंह द्वारा अपने उचित उत्तराधिकारी चुनने की अग्नि परीक्षा में अपने सभी भाइयों में अपेक्षाकृत सबसे निर्बल छोटू-मोटू उपन्यासकार की तिलस्मी योजना के तीर पर सवार होकर सांप, परी, चुड़ैल, भालू, डायनासोर, कछुआ, हाथी, कौआ, दरियाई घोड़ा और बन्दर सहित अन्य चरित्रों से रूबरू होता रोमांच के कई तालो को लांघता एक जादुई छड़ी के विलक्षण टाइम-सूट पर सवार हो जाता है, जहाँ से अब वह अप्रत्याशित रूप से समय के पीछे की ओर जा सकता है. आज के विज्ञान के लिए भी 'स्पेस-टाइम-स्लाइस' में समय को पीछे की ओर काटना सबसे बड़ी चुनौती है जिसमें प्रवेश कर वह अतीत की यात्रा पर निकल सकता है.
कथा की मजेदार इति-श्री रवि के मस्तिष्क की उन हलचलों के रहस्योद्घाटन से होती है जिसे बीजगणित के अध्याय 'परमुटेशन और कम्बीनेशन' की उलझाऊ समस्यायों ने मचा रखा है. व्यवस्था के संभावित समस्त क्रम और व्यतिक्रम के भ्रम और विभ्रम का जंजाल है यह अध्याय जिसमें जकड़ा है रवि का मन. लोमड़ी की उठी और गिरी पूंछ की संभावनाओं के सवाल ने उसे सपनों के उस लोक में धकेल दिया जहाँ वह स्वयं 'छोटू-मोटू' बनकर कुँए के एक तल से दुसरे तल में अपने जीवन के समतल की तलाश कर रहा है. यह उलझनों में भटकते बाल-मनोविज्ञान का मनोहारी आख्यान है.
                                                              विश्वमोहन
                                    साहित्यकार, कवि एवं ब्लॉगर
                                        पटना     





   
पुस्तक का अमेज़न लिंक :-     https://www.amazon.in/dp/B07T8ZYYTZ/ref=cm_sw_r_wa_awdb_t1_Z8KdDbC0DS7Y6?fbclid=IwAR3-uhmZhqA_W2zH8AnsA71673jvqVLeQIZWPsp0p4wyYtTLWXYhuAleZ4I 




https://youtu.be/LHKBZXHkLKE ये कहानी छोटे छोटे वीडियो में विभजित करकर ऊपर फिये लिंक पर उपलब्ध की है. अभी तक 10 भाग बने है. कृपया अपने विचार क्वालिटी के बारे मे बताएं.

28 comments:

  1. जी, बहुत आभार आपका।

    ReplyDelete
  2. आपका लेखन सदा संग्रहनीय होता है
    उम्दा सृजन के लिए बधाई

    ReplyDelete
  3. विश्वमोहन , मैं आपका अभारी हूँ ,आपने मुझे गये तीन साल तक बाल उपन्यास को पूरा करने के लिये प्रोत्साहित किया.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप ढेर सारे अच्छे बाल-उपन्यास लिखें और बाल्य-जीवन में सृजनात्मकता का सुधा-रस प्रवाहित करें। आभार, बधाई और शुभकामनाएं!

      Delete
  4. दिल से
    This story is about a boy who conquers all odds to fulfil his cherished dream. I believe that there is a Chota-Mota lost within all of us. The idea of penning a children’s story struck me when I met a young man who recollected that I had once weaved for him a colourful world which fuelled his imagination. When I was narrating this to Vidushi and Arushi, my daughters, they persisted that I should write a story for a bigger audience. I have chosen Hindi as the medium of expression as I found dearth of stories in Hindi for young minds. I was brought up listing stories from my grandmother Mohini Kuwar, she weaved stories that fuelled my imagination; her stories were endless and intriguing. I remember all of us kids sitting around waiting impatiently for dusk to dawn upon us and our beloved Dadi to complete her never ending story. I am extremely thankful to my mother, Madhavi Saxena, my wife, Amrita Saxena and my colleague, Amrit Varsha for devoting their time and energy to edit this story for all those children waiting to explore the wonderful world of Dadimaa's tales. I would also like to extend my thanks to my very supportive friend Vishwamohan who encouraged me to finish what he likes to call a "Bhishm pratigya" Last but not the least I am thankful to countless children who have patiently heard my stories over decades and helped me sharpen my skills of storytelling. Vikram Saxena

    ReplyDelete
  5. रोचक और ज्ञानवर्धक कहानी होगी इस बाल उपन्यास की ..आमुख पढ़कर ऐसा ही लगता है

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, बिल्कुल। बाल-पाठकों को बड़ा आनंद आएगा। यहां तक कि बड़ों के अंदर छुपा बालपन भी प्रमुदित होगा इसे पढ़कर।

      Delete
  6. बालउपन्यास की कहानी को विज्ञान से जोड़ती हुई रोचक समीक्षा। यह समीक्षा समाचारपत्रों में भी प्रकाशित हो तो बहुत से स्कूल अपने ग्रंथालयों में इस उपन्यास को लाने के लिए उत्सुक होंगे और बच्चों को भी इस सुंदर,मनोरंजक और ज्ञानवर्धक उपन्यास का फायदा मिल सकेगा। लेखक की ओर से उचित विज्ञापन की भी दरकार है। हिंदी में सचमुच अब नए बाल साहित्य की जरूरत है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सही आकलन और सटीक सुझाव। इस पर अमल किया जाएगा। बहुत आभार आपके इस सार्थक सुझाव का।

      Delete
  7. बहुत ही रोचक.. बेहतरीन और ज्ञानवर्धक कहानी

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

      Delete
  8. तारीफ के लिए आपका शुक्रिया।

    ReplyDelete
  9. वाह ... आपने इकह आमुख तो अच्छा होगा उपन्यास भी ...
    बहुत बधाई विक्रम सक्सेना जी को ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बधाई के लिए शुक्रिया , मुझे असली ख़ुशी तब मिलेगी जब आप कहानी को पढ़ कर अपनी राय मुझे देंगें।

      Delete
  10. आदरणीय विश्वमोहन जी , बालउपन्यास की सुंदर प्रस्तावना इस बात की परिचायक है. कि ये बाल कथा और , कथानक कितना रोचक होगा ! विज्ञान और तकनीक के छात्र रहे लेखक और उनकी कथा को अपने प्रबुद्ध दृष्टिकोण से परखने वाले दूसरे साहित्य मर्मज्ञ की सूक्ष्म समीक्षक दृष्टि से कथा वस्तु को परख लिखा आमुख , पाठकों में इस रोचक औपन्यासिक कृति के प्रति रूचि जगाने में पूर्णत सक्षम है | आज तकनीक की प्रचंडता के बीच ,बालसाहित्य पूर्णतः उपेक्षित सा है | बच्चों में साहित्य के प्रति रूचि पैदा करना आज असम्भव सा हो चला है | आशा है तिलस्म भरा कथानक बाल मन को आकर्षित करने में पूर्णतः सफल रहेगा, क्योंकि बच्चों को सदैव ही कल्पना से परे रोमाचंक विषय लुभाते रहे हैं | यदि ये विषय विज्ञान से जुड़े हों तो सोने पर सुहागा हो जाता है | ये बाल उपन्यास बच्चों के बीच लोकप्रियता के नये कीर्तिमान स्थापित करे यही कामना है , जिससे भविष्य में भी बाल साहित्य के नए मार्ग प्रशस्त हों | आदरणीय विक्रम जी को उनके इस स्तुत्य प्रयास के लिए साधुवाद और उपन्यास की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनायें | आमुख के जरिये पुस्तक का सार्थक परिचय करवाने के लिए आपका अत्यंत आभार |सादर --

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके शब्दों का शुक्रिया। कृपया कहानी को एक बार पढ़ कर , , अपने सुझाव मुझे दें।

      Delete
    2. रेणुजी, आपके आशीष का अत्यंत आभार।

      Delete
  11. जी जरूर मैं पुस्तक जरूर मंगवाऊँगी। सादर आभार 🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको ये कहानी अपने फ़ोन या टेबलेट पर पढ़ना होगा क्योंकि ये सिर्फ e book के रूप में ऑनलाइन उपलब्ध है । आप अमेज़न पर किताब खरीदने के बाद, Kindle app डाउनलोड कर कर उसमे कहानी को पढ़ियेगा।

      Delete
    2. जरुर आदरणीय सर !

      Delete
  12. आत्मकेंद्रित होते जा रहे और एक सीमित दायरे में सिकुड़ते
    हिंदी बाल साहित्य के आधुनिक दौर में आदरणीय विक्रम सर की यह पुस्तक एक सराहनीय प्रयास है। बच्चों की मासूमियत तो जैसे खो ही गयी है और कल्पनाशक्ति मेंं परियों दादी नानी की प्रेरक कहानियों की जगह मोबाइल और यंत्रचालित खेलों ने लिया है। ऐसे में ऐसे बाल-साहित्यिक पुस्तक का हृदय से स्वागत किया जाना चाहिये। ज्यादा से ज्यादा पाठक तक पहुँचाने का प्रयास करना चाहिए। हिंदी साहित्य के उज्जवल भविष्य के लिए बाल साहित्य का बीजारोपण अति आवश्यक है। विक्रम सर आपको शुभकामनाएँ मेरी पुस्तक ज्यादा से ज्यादा बच्चे पढ़े और सीखों को आत्मसात करें।

    विश्वमोहन जी आप की पुस्तक के संबंध में लिखी समीक्षा सटीक एवं प्रभावशाली है। ऐसी उत्साहवर्धक समीक्षा को समाचार पत्रों में या साहित्यिक पत्रिकाओं में अग्रलेख की तरह प्रकाशित करना चाहिए ताकि अधिक से अधिक पाठक लाभान्वित हो सके।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपकी दृष्टि का!

      Delete
    2. आपके शब्द मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं. मैं चाहता हूँ की आप इस उपन्यास को पढें और पसंद आने पर आप पुस्तक का Digital माध्यम से प्रचार करेंं. इस उपन्यास की बिक्री से प्राप्त होने वाली राशि का 30% , मैं उपन्यास की hard copy छ्पवाने में खर्च करूंगा , जिसको उन स्कूलोंं मे मुफ्त बांटा जायेगा जहाँ बच्चे kindle
      पर पुस्तक नहीं पढ़ सकते . जिससे बच्चोंं में हिंन्दी पढ़ने में रुची बढ़ेगी.

      Delete
  13. संग्रहणीय समीक्षा.. प्रस्तावना से ही ज्ञानवर्धक बाल कथा का आभास हो रहा।आपकी लेखनी टिप्पणी से परे है.
    शुभकामनाएँँ विक्रम जी को।
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार आपके इस अवलोकन का।

      Delete
  14. https://youtu.be/LHKBZXHkLKE ये कहानी छोटे छोटे वीडियो में विभजित करकर ऊपर फिये लिंक पर उपलब्ध की है. अभी तक 10 भाग बने है. कृपया अपने विचार क्वालिटी के बारे मे बताएं.

    ReplyDelete