सींच रैयत जब धरा रक्त से
बीज नील का बोता था।
तिनकठिया के ताल तिकड़म में
तार-तार तन धोता था।
आब-आबरू और इज़्ज़त की,
पाई-पाई चूक जाती थी।
ज़िल्लत भी ज़ालिम के ज़ुल्मों ,
शर्मशार झुक जाती थी।
बैठ बेगारी, बपही पुतही,
आबवाब गड़ जाता था।
चम्पारण के गंडक का,
पानी नीला पड़ जाता था।
तब बाँध कफ़न सर पर अपने,
पय-पान किया था हलाहल का।
माटी थी सतवरिया की,
और राजकुमार कोलाहल का।
कृषकों की करुणा-गाथा गा,
लखनऊ को लजवा-रुला दिया।
गांधी की काया-छाया बन,
अपना सब कुछ भुला दिया।
काठियावाड़ की काठी सुलगा,
चम्पारण में झोंक दिया।
निलहों के ताबूत पर साबुत
कील आखिरी ठोक दिया।
'सच सत्याग्रह का' सपना-सा,
भारत-भर ने अपना लिया।
राजकुमार न राजा बन सका,
गांधी को महात्मा बना दिया।
(शब्द-परिचय:-
राजकुमार - पंडित राजकुमार शुक्ल (१८७५-१९२९)
कोलाहल - श्री कोलाहल शुक्ल, राजकुमार शुक्ल के पिता
चम्पारण सत्याग्रह की नींव रखने वाले राजकुमार शुक्ल गांधी को
चम्पारण बुलाकर लाये और सबसे पहले सार्वजनिक तौर पर उन्हें 'महात्मा' संबोधित कर जनता द्वारा 'महात्मा गांधी की जय' के नारों से चम्पारण के गगन को गुंजित किया। आगे चल के महात्मा गांधी ही प्रचलित नाम बन गया।
तिनकठिया - एक व्यवस्था जिसमें किसानों को एक बीघे अर्थात बीस कट्ठे में से तीन कट्ठे में नील की खेती के लिए मजबूर होना।
आबवाब - जहांगीर के समय से वसूली जाने वाली मालगुजारी जो अंग्रेजो के समय में चम्पारण में पचास से अधिक टैक्सों में तब्दील हो गयी। जैसे:-
बैठबेगारी - टैक्स के रूप में किसानों से अंग्रेज ज़मींदारों द्वारा अपने खेत मे बेगार, बिना कोई पारिश्रमिक दिए, खटवाना,
बपही - बाप के मरने पर चूंकि बेटा घर का मालिक बन जाता थ, इसलिए अंग्रेजो को बपही टैक्स देना होता था।
पुतही- पुत्र के जन्म लेने पर अंग्रेज बाप से पुतही टैक्स लेते थे।
फगुआहि- होली में किसानों से वसूला जाने वाले टैक्स)
बीज नील का बोता था।
तिनकठिया के ताल तिकड़म में
तार-तार तन धोता था।
आब-आबरू और इज़्ज़त की,
पाई-पाई चूक जाती थी।
ज़िल्लत भी ज़ालिम के ज़ुल्मों ,
शर्मशार झुक जाती थी।
बैठ बेगारी, बपही पुतही,
आबवाब गड़ जाता था।
चम्पारण के गंडक का,
पानी नीला पड़ जाता था।
तब बाँध कफ़न सर पर अपने,
पय-पान किया था हलाहल का।
माटी थी सतवरिया की,
और राजकुमार कोलाहल का।
कृषकों की करुणा-गाथा गा,
लखनऊ को लजवा-रुला दिया।
गांधी की काया-छाया बन,
अपना सब कुछ भुला दिया।
काठियावाड़ की काठी सुलगा,
चम्पारण में झोंक दिया।
निलहों के ताबूत पर साबुत
कील आखिरी ठोक दिया।
'सच सत्याग्रह का' सपना-सा,
भारत-भर ने अपना लिया।
राजकुमार न राजा बन सका,
गांधी को महात्मा बना दिया।
(शब्द-परिचय:-
राजकुमार - पंडित राजकुमार शुक्ल (१८७५-१९२९)
कोलाहल - श्री कोलाहल शुक्ल, राजकुमार शुक्ल के पिता
चम्पारण सत्याग्रह की नींव रखने वाले राजकुमार शुक्ल गांधी को
चम्पारण बुलाकर लाये और सबसे पहले सार्वजनिक तौर पर उन्हें 'महात्मा' संबोधित कर जनता द्वारा 'महात्मा गांधी की जय' के नारों से चम्पारण के गगन को गुंजित किया। आगे चल के महात्मा गांधी ही प्रचलित नाम बन गया।
तिनकठिया - एक व्यवस्था जिसमें किसानों को एक बीघे अर्थात बीस कट्ठे में से तीन कट्ठे में नील की खेती के लिए मजबूर होना।
आबवाब - जहांगीर के समय से वसूली जाने वाली मालगुजारी जो अंग्रेजो के समय में चम्पारण में पचास से अधिक टैक्सों में तब्दील हो गयी। जैसे:-
बैठबेगारी - टैक्स के रूप में किसानों से अंग्रेज ज़मींदारों द्वारा अपने खेत मे बेगार, बिना कोई पारिश्रमिक दिए, खटवाना,
बपही - बाप के मरने पर चूंकि बेटा घर का मालिक बन जाता थ, इसलिए अंग्रेजो को बपही टैक्स देना होता था।
पुतही- पुत्र के जन्म लेने पर अंग्रेज बाप से पुतही टैक्स लेते थे।
फगुआहि- होली में किसानों से वसूला जाने वाले टैक्स)
सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteवाह। अदभुद।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteआदरणीय विश्वमोहन जी , वही कलम सार्थक है जो अपने जननायकों के प्रशस्तिगान रचती है |इस काव्य चित्र के माध्यम से आपने इतिहास की उस घटना को याद दिलाया है जिसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को खुली चुनौती दी थी | नील की खेती करने को विवश होते किसान और उनकी दुर्दशा से आहत राजकुमार शुक्ल का करमचंद गाँधी को निमंत्रण के उद्देश्य की पूर्ति की शायद उतनी आशा नहीं थी जितना गाँधी जी के चम्पारण आकर निष्कलुषता से किसानों के दुखदर्द दूर करने की उनकी विराट भावना ने इसे बना दिया था | अवैध कर वसूली और अंग्रेजों की बर्बरता से जूझते किसानों के लिए इन जननायकों ने जो किया , उसने इतिहास को स्वर्णिम बना दिया | चम्पारण की धरा पर गाँधी जी के सद्गुणों पर रीझे राजकुमार शुक्ल जी के ' महात्मा ' संबोधन ने गाँधी जी को ' महात्मा गाँधी ' बना दिया जिसके लिए इतिहास राजकुमार शुक्ल जी का ऋणी रहेगा जो सचमुच राजकुमार ' नाम ' के होते भी सत्ता सुख भोगने के लिए राजा ना बन सके पर दुनिया को गांधी नाम के महात्मा से जरुर परिचित करवा दिया साथ में सत्याग्रह को सफल कर दिखाया | | सार्थक रचना जिसके लिए कोई सराहना पर्याप्त नहीं बस मेरी शुभकामनायें | सादर
ReplyDeleteजी, वहुत आभार इस सप्रसंग विवेचना का।
Deleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई |
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण, राधे-राधे!!! आपको भी सपरिवार शुभकामनाएं।
Deleteइतिहास के एक प्रष्ट को सबके सामने रख दिया और वो भी एक लाजवाब रचना से ...
ReplyDeleteबहुत उत्तम लेखन ...
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 28 अगस्त 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी, अत्यंत आभार आपका!!!!
Deleteवाह!!विश्वमोहन जी ,बहुत खूब!आपनें तो पूरा इतिहास याद दिला दिया ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका!!
Deleteविश्वमोहन भाई,गांधी जी का महात्म्य बतलाती बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteअत्यंत आभार!!!!
Deleteपरिवर्तन की हवा बनकर जन्में सुंदर व्यक्तित्व के धनी धरती पुत्र शुक्ल जी के व्यक्तित्व और चंपारण प्रसंग को अपनी रचना में बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने। भारत के इतिहास में उनका एक अहम योगदान है इस बात का अहसास कराती सार्थक रचना हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसादर नमन
जी, बहुत आभार कि आपने तन्मयता से इस रचना को परखा।
Deleteइतिहास के प्रसंग आप के द्वारा रचित काव्य रूप में पढ़ने को मिलते तो शायद इतिहास मेरे लिए भी रूचिकर विषय रहता....ऐतिहासिक प्रसंग पर बहुत ही लाजवाब काव्यरचना के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं...।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार। कहीं आपके ये स्नेहिल आशीष हमें इतिहास-गीतकार न बना दे - अतीत का चारण!
Deleteवाह बेहद उत्कृष्ट लेखन ....
ReplyDelete..बहुत खूब !!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
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