रंग-रोगन में
'सैंतालीस की आज़ादी' के।
काले धब्बों को,
झुलसी दीवारों के
नालंदा की।
घुला दोगे!
इसमें बसी
शैतानी रूह
काली रेख
बर्बर बख्तियार की
खालिस खिलजी स्याह आह।
झुठला दोगे!
मत भूलो
हे दुर्घर्ष, संघर्षशील!
मोड़ दे जो काल को,
वह गति हो तुम!
सनातन संस्कृति की
शाश्वत संतति हो तुम!
निष्ठुर स्मृति का
कर्कश कुकृत्यों की
अश्लील अतीत के
जश्न नहीं मनाना।
एक नया नालंदा बनाना।
अपने अख्तियार की!
'सैंतालीस की आज़ादी' के।
काले धब्बों को,
झुलसी दीवारों के
नालंदा की।
घुला दोगे!
इसमें बसी
शैतानी रूह
काली रेख
बर्बर बख्तियार की
खालिस खिलजी स्याह आह।
झुठला दोगे!
मत भूलो
हे दुर्घर्ष, संघर्षशील!
मोड़ दे जो काल को,
वह गति हो तुम!
सनातन संस्कृति की
शाश्वत संतति हो तुम!
निष्ठुर स्मृति का
कर्कश कुकृत्यों की
अश्लील अतीत के
जश्न नहीं मनाना।
एक नया नालंदा बनाना।
अपने अख्तियार की!
अब तो न नालंदा बनेगा,नहीं गुरुकुल
ReplyDeleteबस गूगल बाबा को मनाना है और
दिन भर मोबाइल से चिपके रहना है
सोशल मीडिया को गुरुदेव बनाना है
कुछ ऐसा ही जमाना है....
सादर।
सही बात। अत्यंत आभार।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 05 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार इस मौन के मुखरित होने का।
Deleteलाजवाब।
ReplyDeleteजी, आभार।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ फरवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी, बहुत आभार।
Deleteनिष्ठुर स्मृति का
ReplyDeleteकर्कश कुकृत्यों की
अश्लील अतीत के
जश्न नहीं मनाना।
एक नया नालंदा बनाना।
अपने अख्तियार की!
वाह!!!!
क्या बात....
बहुत ही लाजवाब सृजन।
नालंदा और तक्षशिला जैसे महाविद्यालयों की वजह से ही हम विश्व गुरु कहलाये। भारत शिक्षा केन्द्र रहा है, ये भुलाने योग्य नहीं है।
ReplyDeleteलाजवाब लेखन
जी, हार्दिक आभार।
Deleteबहुत सुंदर व्यथा मुखरित हो रही हैैं पुराने जख्मों की ।
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति।
जी, बहुत आभार आपका!
Deleteमत भूलो
ReplyDeleteहे दुर्घर्ष, संघर्षशील!
मोड़ दे जो काल को,
वह गति हो तुम!
सनातन संस्कृति की
शाश्वत संतति हो तुम
संस्कृति के पतन की व्यथा कहती , बहुत ही सुंदर और सटीक,सादर नमन
जी,बहुत आभार।
Deleteबेहद शानदार सृजन
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteहमेशा की तरह सार्थक सृजन आदरणीय विश्वमोहन जी ,|
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार।
Deleteमत भूलो
ReplyDeleteहे दुर्घर्ष, संघर्षशील!
मोड़ दे जो काल को,
वह गति हो तुम!
सनातन संस्कृति की
शाश्वत संतति हो तुम!
बेहतरीन और लाजवाब सृजन ।
जी, हार्दिक आभार।
DeleteIf you're trying to lose weight then you need to jump on this totally brand new custom keto diet.
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इंसान चाहे तो सम्भव है बहुत कुछ ...
ReplyDeleteहाँ सांस्कृतिक ओर मान होना ... दिल में जज़्बा होना ज़रूरी है ...
प्रभावी रचना ...
जी, बहुत आभार आपके सुंदर प्रभावी शब्दों का।
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