फैले अम्बर के नीचे
प्यासी आकुल अवनि।
किया कपूतों ने माता के
दिल को छल से छलनी।
सूनी माँ की आंखों में
सपने सूखे-सूखे-से।
पड़े लाले प्राणों के प्राणी
तड़पे प्यासे-भूखे से।
उधर निगोड़ा सूरज भी
बस झोंके तुम पर आगी।
और कपट प्रचंड पवन का
रेत में ज्वाला जागी।
ताप पाप से दहक-दहक
धिप-धिप धँस गयी धरती।
परत-परत बे पर्दा करके
सुजला सुफला भई परती।
मत रो माँ ! मरुस्थल में हम
अजर, अमर और जीवट।
जाल, खेजड़ी, रोहिड़ा
कैर, बैर और कुमट।
लाजवाब
ReplyDeleteजी, आभार।
Deleteआदरणीय विश्वमोहन जी , | इस रचना के माध्यम से धरती माँ की मानवजनित वेदना और उस वेदना पर मरहम रखते मरुधरा के जीवट वृक्षों [ जाल , खेज़डी रोहिडा , खैर,कुमट बैर आदि ] के कथन का जो आपने शब्दांकन किया -- वह सराहना से कहीं परे है | स्वार्थी मानव के हाथों विराट वनसंपदा के समापन के पश्चात क्या पता जननी धरा के ये उपेक्षित सुत ही उसका अस्तित्व थाम लें , जो जल की कमी में भी हरियाली से मरुभूमि का श्रृंगार करते हैं | जो इस तपती जीवट धरा को फल , फूल औषधियों के साथ दुर्लभ छाँव भी देते है | आपकी विद्वतापूर्ण रचनाओं में एक और रचना | | हार्दिक शुभकामनाए|
ReplyDeleteआभार आपके सुंदर शब्दों का।
Deleteबैर अथवा बेर????
ReplyDeleteपेड़ का नाम बैर। उसमें फलने वाले फल का नाम, बेर।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 22 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, आभार।
Deleteवाह ...
ReplyDeleteजो स्वतः है वही तो सदा है ...
धरती का साथ तो सदा ऐसे जीविट ही देते आए हैं ...
बहुत गहरे भाव ...
जी, नमन आपकी भावनाओं को और अत्यंत आभार।
Deleteघने वन,नग,झर-झर झरने
ReplyDeleteवन पंखी,पशुओं के कोलाहल
क्या स्मृतियों में रह जायेंगे?
पूछे धरती डर-डर पल-पल
आने वाली पीढ़ी ख़ातिर
क्या प्रकृति उपहार रह जायेंगे ?
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बहुत सुंदर सृजन।
प्रकृति तो हम मानवों के कृतित्वों को क्षमा कर भी दे परंतु जो विनाश के बीज मनुष्य रोप रहे उसका फल तो उसे ही खाना होगा।
बहुत सुन्दर और भावप्रवण रचना।
ReplyDeleteजी, आभार।
Deleteमत रो माँ ! मरुस्थल में हम
ReplyDeleteअजर, अमर और जीवट।
जाल, खेजड़ी, रोहिड़ा
कैर, बैर और कुमट।
विषम परिस्थितियाँ, मौसम की मार, अभावग्रस्त जीवन जीने के आदि हो चुके अपने देश के पौधे भी और गरीब जनता भी। होंगे अन्य अमीर देशों में और अपने देश के अमीरों के पास भी असंख्य सुख सुविधाएं... पर आज की विकट परिस्थितियों से जूझकर भी जीत ही जायेंगे हम गरीब जाल, खेजड़ी, रोहिड़ा कैर, बैर और कुमट की तरह....
वाह!!!
शानदार सृजन
आपकी तीक्ष्ण समीक्षा-दृष्टि का अत्यंत आभार हृदय तल से।
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