नागिन-सी जुल्फों का जलवा,
चमके चाँद-सा चेहरा।
टँके नयन सितारों जैसे,
शुभ्र सुभग-सा सेहरा।
पंखुड़ी-सी होठों की लाली,
ग्रीवा ललित सुराही।
शाखों-सी बाहों की शोखी,
निरखे ठिठके राही।
अलमस्त कुलाँचे मारे,
हिरणी जैसी चाल।
शायर की मदमस्त मदिरा,
रूपसी का भ्रम जाल।
अक्षर आसव आप्लावित,
शब्द छंद मकरंद।
कलि कुसुम मन मालती,
मधु मिलिंद सुगंध।
पद पाजेब पखावज बाजे,
उझके अंग मृदंग।
कंचुकी कादम्बरी चुए,
भंगिमा भीगे भंग।
राजे वो ऋतुराज-सी,
अंग-अंग अनंग।
चारु-चंद्र-सी चपल-चमक,
देख दामिनी दंग।
माया की मूर्ति मृदिका की,
क्षणभंगुर श्रृंगार।
रूह रुखसत हो देह से,
जीव-जगत निस्सार।
ReplyDeleteतस्वीर लाज़वाब बनी है। अलग से बधाई नयी विधा की रचना के लिए।
जी विश्वमोहन जी
आपकी लिखी कविता स्वयंसिद्ध है हमेशा की तरह अद्भुत।
सादर प्रणाम।
अपने आशीष से सिक्त होने देने के लिए हार्दिक आभार!!!
Deleteतस्वीर पर आधारित अद्भुत काव्य कौशल युक्त अ अलंकृत अभिनवश्रृंगार रचना 👌👌👌👌अनुप्रास का जादू बरकरार। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको। 🙏🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपके इस अनुपम आशीष और प्रेरक संजीवनी शब्दों का।
Deleteपर,रूपसी का बखान भी और ज्ञान भी एक साथ !!🤗
ReplyDeleteनख- शिख निरखे
नयन सुख पावैं
बसावें हिय बीच
नव छंद बनावैं,
पर,वाह कवि!
देखी,अजब चतुराई
सब रस लेय
जग निस्सार बतावैं!!
😊🙏🙏
निरख! निहारे राही रूपसी,
Deleteकवि न कोविद, केवल द्रष्टा।
क्षणभंगुर निस्सार जगत का,
कर्ता-धर्ता शाश्वत स्रष्टा !'
😀😀🙏🙏
बहुत खूब आदरणीय कविराज !!!👌👌👌👌🙏🙏
Deleteजी, आभार!!!!
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-3-21) को "सीमित है संसार में, पानी का भण्डार" (चर्चा अंक 4014) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteमनोभावों की गहन अभिव्यक्ति।
अद्भुत चित्र बेमिसाल शब्द शिल्प।
ReplyDeleteजीव-जगत निस्सार
में अकुलाता सरगम है।
बधाइयाँ।
जी, आपके इस अनुपम आशीष का अत्यंत आभार!!!!
DeleteThat's fine poetry energing from a caricature of a woman.
ReplyDeleteThe point which nudges me to ponder here is, whether the roopsi is guilty of weaving the bhramjaal or is the web created from the imagination of the menfolk!!
Your 'whether...' and 'or..' are symbiotically interwined in the form of 'jeev' and 'maayaa' while the 'element' in your ponder is 'brahma' which rids you off the 'bhramjaal' what supposedly binds the 'menfolk' to the 'roopsi'.
DeleteThanks a lot for sending the 'caricature of roopsi' to me which led to the genesis of this poetry. I owe this 'roopsi kaa bhramjaal' to you.
अलमस्त कुलाँचे मारे,
ReplyDeleteहिरणी जैसी चाल।
शायर की मद मस्त शायरी
रूपसी का भ्रम जाल।
तस्वीर पर आधारित या फिर इन पंक्तियों पर आधारित तस्वीर
वाह!!!
रूपसी के अद्वितीय सौन्दर्य का अद्भुत शब्दचित्रण
लाजवाब...
माया की मूर्ति मृदिका की,
क्षणभंगुर श्रृंगार।
रूह रुखसत हो देह से,
जीव-जगत निस्सार।
इन पंक्तियों में विरक्ति भाव।
भावों का अप्रतिम संगम...
विभिन्न अलंकारों से अलंकृत कमाल का सृजन
वाह!!!
जी, अत्यंत आभार आपके सुंदर विश्लेषण और उससे भी सुंदर आपके प्रेरक शब्दों का!!!
Deleteउलझन में हूँ कि कविता को श्रृंगार रस की कहूँ या वैराग्य की...
ReplyDeleteअद्भुत ! अंत तो आँखें खोल देने वाला है।
माया महाठगिनी मैं जानी !
आप जैसी विदुषियों का दृष्टिपात हो जाना ही इन रचनाओं की सद्गति है। अत्यंत आभार!
Deleteलाजवाब रचना
ReplyDeleteअत्यंत आभार!!!
Deleteआदरणीय विश्वमोहन जी,हिंदी के आभूषणों एवम विभूषणों से सुशोभित आपकी रचना के लिए सभी रचनाकारों ने इतनी सुंदर परिचर्चा की व प्रतिक्रिया दी कि मैं सोच ही नहीं पा रही कि क्या लिखूं ? आपकी लेखनी ने मेरी लेखनी को किंकर्तव्यमूढ़ कर दिया, आपके शब्दचित्र सम्मोहित कर गए,आपकी लेखनी और आपको मेरा नमन ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपकी टिप्पणी की मीठास का!!!
Deleteसुंदर काव्य सृजन।
ReplyDeleteसादर
जी, आभार!!!
Deleteमुझे लग रहा है कि काव्य सृजन पहले हुआ और उसके उपरांत ये चित्र तैयार किया गया ...
ReplyDeleteजो भी है शायर के शब्द चित्र को यदि उकेरा जाए तो शायद इसी तरह के चित्र तैयार होंगे , लेकिन शायर की भावना देखें तो बस वो इस तरह उपमा देता है । अब मछली जैसी आँख की तुलना करते हुए चित्र में आँख की जगह मछली ही बना देंगे तो कैसे चलेगा ? आलंकारिक भाषा तो खत्म ही हो जाएगी न .
यूँ रचना खूबसूरत है ।
आपकी प्रतीति को मैं इस पद्यात्मक प्रस्तुति की प्रशंसा के रूप में स्वीकार करता हूँ, यद्यपि तथ्य उस प्रतीति के बिलकुल प्रतिकूल है। यह बात ऊपर डॉक्टर रश्मि की टिप्पणी (अंग्रेज़ी में) के प्रत्युत्तर में प्रतिभासित है की यह रचना उनके द्वारा ही भेजे गए रेखा चित्र, जो इस पोस्ट में संलग्न है, के उत्तर में लिखी गयी और सबसे पहले हमारे पटना सायन्स कॉलेज के सहपाठियों के WhatsApp ग्रुप में डाली गयी।
Deleteऐसे बाक़ी टिप्पणियाँ ग़ौर फ़रमाने लायक़ और क़ाबिले तारीफ़ हैं। अत्यंत आभार!!!
Madam, the sketch has been made in light hearted humour and is meant to be enjoyed in the same vein .
DeleteIn no way does it ridicule the rich imagination of poets and authors with their employment of similes and metaphors.
What is remarkable here is that Mr Vishwa Mohan has been able to extract something profound from a casual,crude,caricature !
Correct Rashmi! Imaginations bring the poetic similes and metaphors into play by virtue of lexical ornaments. So thought and action are indispensably interlinked. 'Action without thought is folly and thought without action is abortion'- I will remind you this famous quote from a Nehru essay in our class 12 text book. And this - your thought - is here which propels my action. I wish now you start your own blog and put up the display of your resplendence in Hindi Poetry too which you are well equipped with in addition to your high singing talent and laying beautiful scribbles.
Deleteविश्वमोहन जी और रश्मि जी ,
Deleteक्षमा सहित , यदि यह काव्य रचना इस तरह तैयार हुई है तो सच ही अद्भुत है और काबिले तारीफ है .
मैंने टिप्पणियां नहीं पढ़ीं थीं , इसीलिए जो मुझे लगा लिख दिया . आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे .
संगीता जी,
Deleteअन्यथा लेने वाली कोई बात ही नहीं है।इस कविता का सफर दिलचस्प रहा है, और आप जैसों की टिप्पणियों ने उसे और भी रोचक बना दिया।
सादर।
माटी की देह है यह, कितनी भी सुंदर हो मृत्यु उसे कुरूप बना ही देती है एक दिन, इस ज्ञान को यदि याद रखा जाए तो कवियों की कल्पना का आनंद लिया जा सकता है, अब तो वैज्ञानिक भी कहते हैं मानव के डीएनए में सभी जीवों के अंश छुपे हैं
ReplyDeleteजी आपकी रचनाएँ हमेशा से मेरे लिए आध्यात्म की गंगा का सतत प्रवाह रहीं है जिसमें डुबकी लगाने के उपरांत एक विलक्षण नैसर्गिक अहसास का सौभाग्य प्राप्त होता है। ऐसे में आपका आशीष पा लेना मेरे लिए तो मोती चुगने के ही समान है।
Deleteएक अलग मस्ती भरा अंदाज
ReplyDeleteठिठक कर सौंदर्य माधुर्य को बस निरखा जा रहा है । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपकी मृदुल दृष्टि का!!!
Deleteबेहद खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteमाया की मूर्ति मृदिका की,
ReplyDeleteक्षणभंगुर श्रृंगार।
रूह रुखसत हो देह से,
जीव-जगत निस्सार।
आखिरी सत्य तो यही है..जो कवि भी मान रहा है कि-"भ्रम जाल में उलझना व्यर्थ है" फिर भी उलझ ही जाते हैं सब....
इस अद्भुत रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं सादर नमन आपको
जी, अत्यंत आभार।
Deleteसौंदर्य बिखेरती रचना मुग्ध करती है।
ReplyDeleteमाया की मूर्ति मृदिका की,
ReplyDeleteक्षणभंगुर श्रृंगार।
रूह रुखसत हो देह से,
जीव-जगत निस्सार।
बहुत सुंदर
जी, बहुत आभार आपका!!!
Deleteनागिन-सी जुल्फों का जलवा,
ReplyDeleteचमके चाँद-सा चेहरा।
टँके नयन सितारों जैसे,
शुभ्र सुभग-सा सेहरा।,,,,,,,,, बहुत सुंदर रचना, आदरणीय शुभकामनाएँ ।
ईश्वर आपको स्वस्थ, प्रसन्न, दीर्घायु और खुशहाल रखें। आप हमेशा उल्लास और उमंग से भरे रहें ... चिन्तामुक्त रहें। इस होली आपका जीवन सच्चाई और अच्छाई के रंगों से सराबोर हो जाए। आपको सपरिवार शुभकामना। पूनम और विश्वमोहन।🌹🌹🌹😃😃🙏🙏
Deleteबहुत खूब ... एह अनोखी प्रेम और सौन्दर्य के रँगों में पगी रचना का सृजन भी ऐसे ही होता है ... कल्पना का कोई अंत नहीं ...
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपके अनिर्वच आशीष का।
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