कब तक जगता चाँद गगन में,
तनहा था, वह सो गया।
थक गई आंखे, अपलक तकती,
सूनेपन में खो गया।
किन्तु सपनों में भी उसकी,
प्रीता पल-पल पलती थी।
मन के सूनेपन में उसके,
धड़कन बन कर ढलती थी।
आएगी सुर ताल सजाकर,
राग प्यार का गायेगी।
अभिसार घनघोर घटा बन,
साजन पर छा जाएगी।
मन का आँगन इसी अहक में,
मह-मह महका जाता।
खिली कल्पना की कलियों में,
मन साजन इठलाता।
बाउर बयार भी बह-बह कर,
पत्तों में झूल जाती।
विस्फारित वनिता की अलकें,
हसरत में खुल जाती।
चूनर चाँदनी का चम-चम,
चकवा-चकई सब नाचे।
कुंज लता में कूके कोयल,
पपीहा पीहु-पीहू बांचे।
चंदन में लिपटी नागिन भी,
प्रीत सुधा फुफकारे।
अवनि से अम्बर तक प्राणी,
प्यार ही प्यार पुकारे।
सागर के मन में भी लहरें,
ले-ले कर हिलकोरे।
सूखे शून्य-से सैकत तट में,
भाव तरल झकझोरे।
देख प्रणय के पागलपन को,
बादल भी हुआ व्याला।
घटाटोप घनघोर जलद को,
अम्बर घट में डाला।
निविड़ तम के गहन गरल ने,
धरती पर डाला डेरा।
विरह वेदना की बदरी में,
चाँद का मुँह भी टेढ़ा।
उष्ण तमस का तिरता वारिद,
धाह अधर का धो गया।
कब तक जगता चाँद गगन में,
तनहा था, वह सो गया।
बहुत सुन्दर रचना♥️🌻
ReplyDeleteजी, बहुत आभार!!!
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteउष्ण तमस का तिरता वारिद,
ReplyDeleteधाह अधर का धो गया।
कब तक जगता चाँद गगन में,
तनहा था, वह सो गया।
वाह!!!
बदलता मौसम , घुमड़ती बदरी, और इसके पीछे छुपे चाँद का क्या समा बाँधा है आपने....।
अद्भुत सराहनीह एवं लाजवाब सृजन।
चाँद की अभिनव प्रणय गाथा का अलंकृत मोहकशैली में शब्दांकन आदरणीय विश्वमोहन जी। मानवीकरण और अनुप्रास के साथ, सुंदर बिम्ब विधान से सजी रचना मनभावन है। अभिसार की प्रबल आकांक्षा से लेकर बोझिल विफल प्रतीक्षा तक की भावयात्रा के माध्यम से सजीव अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको 🙏🙏
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
Deleteरचना प्रेरित कुछ शब्द------
ReplyDeleteसदियों से मौन ,एकाकी नभ में
जाने क्यों रहता बैठा चाँद ,
क्यों ना कहता पीड़ा मन की
ये किस जिद में ऐंठा चाँद!
बादल जब करते आँखमिचौली
लुक -छिप करते हँसी ठिठौली
अधर ना खुलते इसके तब भी
लगता रुठा- रूठा चाँद !
अभिशप्त -सा घटता -बढ़ता जाए
पर इसकी कला हर मन को भाए
धवल चांदनी संग सज धज कर
कौतूहल -सा लगे अनूठा चाँद !
मौन नहीं मन किंचित चाँद का,
Deleteजब निहारिका नभ में आये।
टिमटिम-नटखट तारिकाओं पर,
अभिसार-आसव बरसाए।
प्रीत-परायण चाँद गगन में,
चटक चाँदनी चंदवा ताने।
लुक-छिप आंख-मिचौली खेले,
लगे अम्बर जब वारिद छाने।
पूनम-ज्वार और अमा की भाटा,
नील गगन के नए अफसाने।
फिर अभिनय एकाकीपन का!
ये तो चंचल चाँद ही जाने!!!
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteचाँद के इर्द गिर्द सब कुछ समाहित हो गया, जीवन के हर संदर्भ को सुंदर चाँदनी से सजाती अनुपम रचना।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका!!
DeleteO guardian of the night!
ReplyDeleteWhat weariness makes you sleep?
Forget not the faraway twinkling lights,
In zillions they company keep.
Evocative and picturesque poem.
ग्रहण के आखेट हुए,
Deleteनिशाचर नभ अवनीश।
क्षितिज छुपे खद्योत सब,
सुप्त, क्लान्त रजनीश।😀🙏🙏
उष्ण तमस का तिरता वारिद,
ReplyDeleteधाह अधर का धो गया।
कब तक जगता चाँद गगन में,
तन्हा था, वह सो गया।
....बहुत ही सुंदर रचना का सृजन हुआ है आपकी कलम से। ।।।बधाई स्वीकारें। ।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteचाँद को केंद्र में रखकर बहुत कुछ कह डाला है आपने विश्वमोहन जी। इस रचना की सच्ची प्रशंसा यही है कि इसके भाव को भलीभांति समझा जाए।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteआह अत्यंत उत्तम और मोहक सबीना के मन तो कसका गया ❤️
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका !!!!
Delete