आज फिर थाम लिया है माँ ने,
छोटी सी सुपली में,
समूची प्रकृति को।
सृष्टि-थाल में दमकता पुरुष,
ऊंघता- सा, गिरने को,
तंद्रिल से क्षितिज पर पच्छिम के,
लोक लिया है लावण्यमयी ने,
अपने आँचल में।
हवा पर तैरती
उसकी लोरियों में उतरता,
अस्ताचल शिशु।
आतुर मूँदने को अपनी
लाल-लाल बुझी आँखें।
रात भर सोता रहेगा,
गोदी में उसके।
हाथी और कलशे से सजी
कोशी पर जलते दिए,
गन्ने के पत्तों के चंदवे,
और माँ के आंचल से झांकता,
रवि शिशु, ऊपर आसमान की ओर।
झलमलाते दीयों की रोशनी में,
आतुर उकेरने को अपनी किरणें।
तभी उषा की आहट में,
माँ के कंठों से फूटा स्वर,
'केलवा के पात पर'।
आकंठ जल में डूबी
उसने उतार दिया है,
हौले से छौने को
झिलमिल पानी में।
उसने अपने आँचल में बँधी
सृष्टि को खोला क्या!
पसर गया अपनी लालिमा में,
यह नटखट बालक पूर्ववत।
और जुट गया तैयारी में,
अपनी अस्ताचल यात्रा के।
सब एक जुट हो गए फिर
अर्घ्य की उस सुपली में
"क्षिति जल पावक गगन समीर।"
ज़िन्दगी की कथा बांचते बाँचते, फिर! सो जाता हूँ। अकेले। भटकने को योनि दर योनि, अकेले। एकांत की तलाश में!
Sunday, 30 October 2022
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर
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वाह
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
ReplyDeleteबहुत सुंदर ♥️
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteबहुत बहुत सुन्दर मन मोहक रचना
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteवाह बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteवाह! कितने सुंदर प्रतीकों के माध्यम से काव्य की सरिता बहायी है आपने, बधाई!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
DeleteFascinating imagery. The might and the brilliance of sun pales in comparison to a mother`s lap where it seeks solace and sanctuary.
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteअद्भुत
ReplyDeleteसुंदर...
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteछठ माता की महिमा से सज्जित, और प्रकृति के छवि का निरूपण करती सुंदर रचना । छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteहमारे प्रकृति प्रेमी ऋषि मुनियों ने सदैव ही अपने गहन विवेचन- चिन्तन से जनमानस को प्रकृति के सानिध्य में रहते हुए उसकी पूजा-आराधना के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने स्वयं भी उसी की छाया में जीवनयापन कर उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्हीं की प्रेरणा से सम्भवतः छठ पर्व सरीखे पर्व अस्तित्व में आए। उगते सूर्य के साथ डूबते दिवाकर को अर्घ्य देकर जीवन के विराट संस्कार की स्थापना की गईं है। आपकी रचना में प्रकृति की आराधना का भावपूर्ण चित्र समाहित है। अपनी संस्कृति को नवजीवन प्रदान करता ये त्यौहार प्रकृति के उल्लास का पर्व है। इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार। छठ पर्व पर आपको सपरिवार शुभकामनाएं और बधाई 🙏🙏
ReplyDeleteप्रकृति और सृजन ही जीवन में सतत है और दोनों में विशिष्ट या अगर सत्य कहूँ तो केवल और केवल माँ ही है ... अनूठे शब्दों को गहरा विस्तार देता कवि भी तो एक माँ का रूप ही होता है ... पर्व, त्यौहार, प्राकृति सब इसी से हैं ...
ReplyDeleteबहुत कमाल के भाव ... लाजवाब रचना ...
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteआभार!!
ReplyDeleteशुभकामनाओं के संग बधाई
ReplyDeleteउम्दा लेखन
जी, बहुत आभार!!!
Deleteबहुत सुंदर सृजन । छठ की शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार!!!
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteछठ पर्व पर असीम शुभकामनाएं
की, बहुत आभार!!!
Deleteप्रकृति से जुड़े हुए छठ पर्व की महिमा का सुन्दर और मनोहारी वर्णन !
ReplyDeleteछठ पर्व की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई !
जी, बहुत आभार।
Deleteआज फिर थाम लिया है माँ ने,
ReplyDeleteछोटी सी सुपली में,
समूची प्रकृति को।
माँ की सुपली में समूची प्रकृति
वाह!!!
निशब्द करती पहली ही पंक्तियाँ !!
बहुत ही सारगर्भित मनोहारी छट की छटा सी अप्रतिम कृति🙏🙏
जी, बहुत आभार।
Deleteछठ महापर्व में पहले डूबते फिर उगते सूर्य को और साथ ही नदी किनारे का परिदृश्य देख लेखक की लेखनी मचल उठती है कुछ लिखने को। उसी को आपने बड़े ही सुंदर शब्दों में पिरोया है!!
ReplyDeleteलाजवाब!!
जी, बहुत आभार!!!
Deleteआदरणीय सर, सादर चरण-स्पर्श । आपके इस ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ । मेरी रचनाओं को आपका आशीष नियमित रूप से मिलता रहा है परंतु मैं सद्य नहीं आ पाती । अब पुनः नियमित होने का प्रयास कर रही हूँ । आपकी इस अति सुंदर रचना के लिए क्या कहूँ, शब्द नहीं सूझ रहे । आपकी कोई भी नई कविता पढ़ती हूँ तो वो मेरी प्रिय कविताओं की सूची में शामिल हो जाती है । सच, छठ पर्व की सुंदरता और पवित्रता को समेटी यह रचना मन आनंदित कर रही है । छठ जितना माँ प्रकृति को समर्पित एक आध्यात्मिक पर्व है, उतना ही मातृशक्ति को भी समर्पित है । छठ का कठिन व्रत को कर के अपने भीतर सभी पंच-तत्वों को समाने की क्षमता एक माँ ही रख सकती है । पुनः प्रणाम आपको और अत्यंत आभार । एक अनुरोध भी है, मैं ने एक नया ब्लॉग आरंभ किया है, चल मेरी डायरी, उसपर दो लेख लिखे हैं। कृपया उन्हें आ कर पढ़ें और अपना आशीष दें । यह ब्लॉग मेरी कृतज्ञता डायरी का हिस्सा है ।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार। घूम कर आ गया, आपके ब्लॉग से, अनंता। बहुत सुंदर।🌹🌹🌹
Deleteभावपूर्ण अप्रतिम सृजन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteछट माँ को समर्पित भाव ... जैसे एक शांत मुद्रा में स्वयं को भ्रम में लीन होते भाव ...
ReplyDeleteनमन है आपकी कलम को ...
ली, अत्यंत आभार।
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