आज फिर थाम लिया है माँ ने,
छोटी सी सुपली में,
समूची प्रकृति को।
सृष्टि-थाल में दमकता पुरुष,
ऊंघता- सा, गिरने को,
तंद्रिल से क्षितिज पर पच्छिम के,
लोक लिया है लावण्यमयी ने,
अपने आँचल में।
हवा पर तैरती
उसकी लोरियों में उतरता,
अस्ताचल शिशु।
आतुर मूँदने को अपनी
लाल-लाल बुझी आँखें।
रात भर सोता रहेगा,
गोदी में उसके।
हाथी और कलशे से सजी
कोशी पर जलते दिए,
गन्ने के पत्तों के चंदवे,
और माँ के आंचल से झांकता,
रवि शिशु, ऊपर आसमान की ओर।
झलमलाते दीयों की रोशनी में,
आतुर उकेरने को अपनी किरणें।
तभी उषा की आहट में,
माँ के कंठों से फूटा स्वर,
'केलवा के पात पर'।
आकंठ जल में डूबी
उसने उतार दिया है,
हौले से छौने को
झिलमिल पानी में।
उसने अपने आँचल में बँधी
सृष्टि को खोला क्या!
पसर गया अपनी लालिमा में,
यह नटखट बालक पूर्ववत।
और जुट गया तैयारी में,
अपनी अस्ताचल यात्रा के।
सब एक जुट हो गए फिर
अर्घ्य की उस सुपली में
"क्षिति जल पावक गगन समीर।"
ज़िन्दगी की कथा बांचते बाँचते, फिर! सो जाता हूँ। अकेले। भटकने को योनि दर योनि, अकेले। एकांत की तलाश में!
Tuesday, 9 November 2021
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 10 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteवाह
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-11-2021) को चर्चा मंच "छठी मइया-कुटुंब का मंगल करिये" (चर्चा अंक-4244) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
छठी मइया पर्व कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteबहुत सुंदर ♥️
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteबहुत बहुत सुन्दर मन मोहक रचना
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteवाह बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteवाह! कितने सुंदर प्रतीकों के माध्यम से काव्य की सरिता बहायी है आपने, बधाई!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
DeleteFascinating imagery. The might and the brilliance of sun pales in comparison to a mother`s lap where it seeks solace and sanctuary.
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteअद्भुत
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteसुंदर...
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteछठ माता की महिमा से सज्जित, और प्रकृति के छवि का निरूपण करती सुंदर रचना । छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteहमारे प्रकृति प्रेमी ऋषि मुनियों ने सदैव ही अपने गहन विवेचन- चिन्तन से जनमानस को प्रकृति के सानिध्य में रहते हुए उसकी पूजा-आराधना के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने स्वयं भी उसी की छाया में जीवनयापन कर उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्हीं की प्रेरणा से सम्भवतः छठ पर्व सरीखे पर्व अस्तित्व में आए। उगते सूर्य के साथ डूबते दिवाकर को अर्घ्य देकर जीवन के विराट संस्कार की स्थापना की गईं है। आपकी रचना में प्रकृति की आराधना का भावपूर्ण चित्र समाहित है। अपनी संस्कृति को नवजीवन प्रदान करता ये त्यौहार प्रकृति के उल्लास का पर्व है। इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार। छठ पर्व पर आपको सपरिवार शुभकामनाएं और बधाई 🙏🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। छठ व्रत की शुभकामनाएं🌹🌹🌹
Deleteप्रकृति और सृजन ही जीवन में सतत है और दोनों में विशिष्ट या अगर सत्य कहूँ तो केवल और केवल माँ ही है ... अनूठे शब्दों को गहरा विस्तार देता कवि भी तो एक माँ का रूप ही होता है ... पर्व, त्यौहार, प्राकृति सब इसी से हैं ...
ReplyDeleteबहुत कमाल के भाव ... लाजवाब रचना ...
जी, अत्यंत आभार!!!
Deletebest online cakes order
ReplyDeleteआभार!!
Delete