Saturday, 22 January 2022

मन में माँ और माँ में मन (पुण्यस्मृति नमन)

अब भला,  क्या सूखेंगे?

भीगे  थे, जो कोर नयन के!

ये आँखें भी तभी जगी थीं,

प्रहर तेरे महाशयन के।


काश! जो उस दिन भरपेट रोता!

आज शून्य में यूँ न खोता।

दृग-कोष में आँसू बँध गए,

और कंठ के स्वर भी रुँध गए।


तब से हर रोज का सूरज,

तमस शीत पिंड लगता है।

इससे भला तो चंदा मामा,

याद में तेरी जगता है।


लिए कटोरा दूध हाथ में,

हमको रोज बुलाता है।

'बउआ के मुँह में घुटुक'

लोरी की याद दिलाता है।


यादें कण-कण घुली हुई हैं,

रुधिर जो बहता मेरी नस-नस।

मन में माँ और माँ में मन!

चाहे राका, या अमावस।




37 comments:

  1. मित्र, जब दिल को छू लेने वाली रचना पढ़ो तो गला रुंध जाता है और उँगलियाँ कांपने लगती हैं.
    तुम्हारी तारीफ़ या तुम्हारी कविता की प्रशंसा करने से पहले उस माँ को नमन जिसने हमको ऐसा संवेदनशील इंसान और ऐसा बहुमुखी प्रतिभा का कवि-लेखक दिया.

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  2. दिवंगता विलक्षणा विभूति मां के महाशयन की मर्मांतक स्मृति और बचपन की वात्सल्य से परिपूर्ण स्मृतियों को संजोती अत्यन्त हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय विश्वमोहन जी। उनके विराट व्यक्तित्व का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि उनके सनिग्ध और प्रगाढ़ वात्सल्य के अनुपम सानिध्य ने अपने सुपुत्र को अत्यन्त संवेदनशील और उदारमना बनाया। जब मां सदा के लिए बिछुड़ती होगी क्या उस पीड़ा को कोई शब्दों में बांध सकता है? वह वेदना तो ह्वदयकोष की अनमोल पूंजी होती है। सबसे कीमती चीज खोने की अनुभूति इन्सान को इन्सान बनाए रखती है। मातृशक्ति की अभ्यर्थना में आपकी एक और अनमोल रचना के लिए साधुवाद। दिवंगत आत्मा की पुण्य स्मृति को सादर नमन 🙏🙏🌷🙏🙏

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  3. यादें कण-कण घुली हुई हैं,
    रुधिर जो बहता मेरी नस-नस।
    मन में माँ और माँ में मन
    चाहे राका या अमावस।
    - अमोल माँ को याद करती हुई अनमोल रचना। उस मांँ को नमन।।।।।
    इस विलक्षण रचना हेतु बधाई व शुभकामनाएं आदरणीय विश्वमोहन जी।

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  4. मन में माँ और माँ में मन
    इस पंक्ति में संपूर्ण जीवन का सार निहित है।हृदय के भावों को उद्वेलित कर दिया आपकी इस रचना ने । आपकी लेखनी ने मातृ महिमा को कितनी सहजता से चित्रित कर दिया है।चिर स्मृति में बसी ममतामयी दिवंगत माता को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏

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  5. मन में माँ और माँ में मन रचना संवेदनशीलता को दर्शा रही है ।माँ की पुण्यतिथि पर मेरा नमन भी स्वीकार हो । 🙏🙏🙏🙏

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  6. अत्यंत मार्मिक... 🙏
    माँ की पुण्यतिथि पर नमन्🙏🙏🙏🙏 🙏

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  7. अच्छा है न, चांद से हमारा संबंध मामा का है!माँ का स्नेह सदा बना रहेगा।
    भाव विभोर करती रचना।
    माँ की स्मृति को नमन।

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  8. अंतस भीगा गया रचना का हर शब्द।
    माँ की चिर स्मृतियों को सादर आदरांजलि।
    नमन।
    ----
    अनुभूतियों का लयबद्ध ज्वार
    माँ की स्मृतियाँ नरम अंकवार
    जबतक श्वासों का स्पंदन है
    हृदय मंजूषा से रिसेगा इत्र-सा
    माँ तेरी लोरी,आशीष और दुलार।
    ----
    प्रणाम
    सादर।

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  9. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
    नमन

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  10. दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, विश्वमोहन भाई। जिस माँ का लाल उसे इतना याद कर रहा है, वो माँ वास्तव में कितनी महान होगी।

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  11. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-1-22) को "पथ के अनुगामी"(चर्चा अंक 4319)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  12. हृदयस्पर्शी अतुल्य रचना।
    माँ की चिर स्मृतियो को श्रद्धाजंली।🙏

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  13. अंतस को भिगो गई आपकी ये रचना! शब्द शब्द में बिछोह का दर्द समेटे, माँ के व्योम से ऊंचे व्यक्तित्व का जीवन में क्या स्थान है हर संवेदशील बच्चे (चाहे वो साठ का भी क्यों न हो)के लिए,को दर्शाता प्यार।
    अभिनव अनुपम।

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  14. बहुत बहुत सुन्दर हृदय स्पर्शी रचना ।

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  15. काश! जो उस दिन भरपेट रोता!

    आज शून्य में यूँ न खोता।

    दृग-कोष में आँसू बँध गए,

    और कंठ के स्वर भी रुँध गए।

    बहुत सुंदर रचना

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  16. मां ...जिसे सिर्फ शब्‍दों में नहीं समेटा जा सकता फिर भी आपने हर पहलू छुआ है ..वाह विश्‍वमोहन जी, इतनी अच्‍छी रचना कि तारीफ भी कम पड़ जाए ...लिए कटोरा दूध हाथ में,

    हमको रोज बुलाता है।

    'बउआ के मुँह में घुटुक'

    लोरी की याद दिलाता है।

    वाह वाह वाह

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  17. काश! जो उस दिन भरपेट रोता!

    आज शून्य में यूँ न खोता।

    दृग-कोष में आँसू बँध गए,

    और कंठ के स्वर भी रुँध गए... हृदयस्पर्श सृजन अंतस भीग गया।
    नमन

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  18. माँ की स्मृतियों से मन को भिंगोती सुंदर भावाभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ

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  19. सर्वप्रथम मां को मेरा सादर नमन 👏👏
    हर पंक्ति में मां के लिए आत्मीय और भावुक उद्बोधन👌👌
    हो क्यों न मां होती ही ऐसी है, मां के बिना तो बालक बिना संदर्भ का जीवन जीता है, बचपन और लड़कपन में जो महसूस करता है, शायद वो उसके जीवन में ताउम्र असर डालता है, ये मेरा अपना अनुभव है ।
    आप बड़े भाग्यशाली हैं जो मां का प्यार मिला । उस प्यार को आत्मीयता को बड़ी सुंदरता से सहेजा है आपने कि आपकी रचना में प्रस्फुटित हो रहा है.. मेरी ये पंक्तियां मां को समर्पित हैं 👏

    जग का, मन का औ जीवन का
    अवरुद्ध विषम हर मार्ग दिखे
    फिर मातुपिता के चरणों में
    जाकर झुक जाना जीवन है ।।
    ..सुंदर रचना के लिए बधाई आपको आदरणीय विश्वमोहन जी👏💐

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  20. माँ की अनुपम स्मृति को किस तरह सहेज़ कर रखा है आपने इस दिल को छूने वाली रचना में!

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  21. दिल में सीधी उतर गई ये रचना ...
    माँ से जुड़े प्रसंग कितने साझा होते हैं ... कई बार लगता है माँ बनने के बाद बातें कितना साझा हो जाती हैं ... नमन है मेरा ...

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