अब भला, क्या सूखेंगे?
भीगे थे, जो कोर नयन के!
ये आँखें भी तभी जगी थीं,
प्रहर तेरे महाशयन के।
काश! जो उस दिन भरपेट रोता!
आज शून्य में यूँ न खोता।
दृग-कोष में आँसू बँध गए,
और कंठ के स्वर भी रुँध गए।
तब से हर रोज का सूरज,
तमस शीत पिंड लगता है।
इससे भला तो चंदा मामा,
याद में तेरी जगता है।
लिए कटोरा दूध हाथ में,
हमको रोज बुलाता है।
'बउआ के मुँह में घुटुक'
लोरी की याद दिलाता है।
यादें कण-कण घुली हुई हैं,
रुधिर जो बहता मेरी नस-नस।
मन में माँ और माँ में मन!
चाहे राका, या अमावस।
मित्र, जब दिल को छू लेने वाली रचना पढ़ो तो गला रुंध जाता है और उँगलियाँ कांपने लगती हैं.
ReplyDeleteतुम्हारी तारीफ़ या तुम्हारी कविता की प्रशंसा करने से पहले उस माँ को नमन जिसने हमको ऐसा संवेदनशील इंसान और ऐसा बहुमुखी प्रतिभा का कवि-लेखक दिया.
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteदिवंगता विलक्षणा विभूति मां के महाशयन की मर्मांतक स्मृति और बचपन की वात्सल्य से परिपूर्ण स्मृतियों को संजोती अत्यन्त हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय विश्वमोहन जी। उनके विराट व्यक्तित्व का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि उनके सनिग्ध और प्रगाढ़ वात्सल्य के अनुपम सानिध्य ने अपने सुपुत्र को अत्यन्त संवेदनशील और उदारमना बनाया। जब मां सदा के लिए बिछुड़ती होगी क्या उस पीड़ा को कोई शब्दों में बांध सकता है? वह वेदना तो ह्वदयकोष की अनमोल पूंजी होती है। सबसे कीमती चीज खोने की अनुभूति इन्सान को इन्सान बनाए रखती है। मातृशक्ति की अभ्यर्थना में आपकी एक और अनमोल रचना के लिए साधुवाद। दिवंगत आत्मा की पुण्य स्मृति को सादर नमन 🙏🙏🌷🙏🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteयादें कण-कण घुली हुई हैं,
ReplyDeleteरुधिर जो बहता मेरी नस-नस।
मन में माँ और माँ में मन
चाहे राका या अमावस।
- अमोल माँ को याद करती हुई अनमोल रचना। उस मांँ को नमन।।।।।
इस विलक्षण रचना हेतु बधाई व शुभकामनाएं आदरणीय विश्वमोहन जी।
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteमन में माँ और माँ में मन
ReplyDeleteइस पंक्ति में संपूर्ण जीवन का सार निहित है।हृदय के भावों को उद्वेलित कर दिया आपकी इस रचना ने । आपकी लेखनी ने मातृ महिमा को कितनी सहजता से चित्रित कर दिया है।चिर स्मृति में बसी ममतामयी दिवंगत माता को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteमन में माँ और माँ में मन रचना संवेदनशीलता को दर्शा रही है ।माँ की पुण्यतिथि पर मेरा नमन भी स्वीकार हो । 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteअत्यंत मार्मिक... 🙏
ReplyDeleteमाँ की पुण्यतिथि पर नमन्🙏🙏🙏🙏 🙏
अच्छा है न, चांद से हमारा संबंध मामा का है!माँ का स्नेह सदा बना रहेगा।
ReplyDeleteभाव विभोर करती रचना।
माँ की स्मृति को नमन।
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteनमन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteअंतस भीगा गया रचना का हर शब्द।
ReplyDeleteमाँ की चिर स्मृतियों को सादर आदरांजलि।
नमन।
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अनुभूतियों का लयबद्ध ज्वार
माँ की स्मृतियाँ नरम अंकवार
जबतक श्वासों का स्पंदन है
हृदय मंजूषा से रिसेगा इत्र-सा
माँ तेरी लोरी,आशीष और दुलार।
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प्रणाम
सादर।
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनमन
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteदिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, विश्वमोहन भाई। जिस माँ का लाल उसे इतना याद कर रहा है, वो माँ वास्तव में कितनी महान होगी।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-1-22) को "पथ के अनुगामी"(चर्चा अंक 4319)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
हृदयस्पर्शी अतुल्य रचना।
ReplyDeleteमाँ की चिर स्मृतियो को श्रद्धाजंली।🙏
अंतस को भिगो गई आपकी ये रचना! शब्द शब्द में बिछोह का दर्द समेटे, माँ के व्योम से ऊंचे व्यक्तित्व का जीवन में क्या स्थान है हर संवेदशील बच्चे (चाहे वो साठ का भी क्यों न हो)के लिए,को दर्शाता प्यार।
ReplyDeleteअभिनव अनुपम।
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteबहुत बहुत सुन्दर हृदय स्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteकाश! जो उस दिन भरपेट रोता!
ReplyDeleteआज शून्य में यूँ न खोता।
दृग-कोष में आँसू बँध गए,
और कंठ के स्वर भी रुँध गए।
बहुत सुंदर रचना
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteमां ...जिसे सिर्फ शब्दों में नहीं समेटा जा सकता फिर भी आपने हर पहलू छुआ है ..वाह विश्वमोहन जी, इतनी अच्छी रचना कि तारीफ भी कम पड़ जाए ...लिए कटोरा दूध हाथ में,
ReplyDeleteहमको रोज बुलाता है।
'बउआ के मुँह में घुटुक'
लोरी की याद दिलाता है।
वाह वाह वाह
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteकाश! जो उस दिन भरपेट रोता!
ReplyDeleteआज शून्य में यूँ न खोता।
दृग-कोष में आँसू बँध गए,
और कंठ के स्वर भी रुँध गए... हृदयस्पर्श सृजन अंतस भीग गया।
नमन
माँ की स्मृतियों से मन को भिंगोती सुंदर भावाभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteसर्वप्रथम मां को मेरा सादर नमन 👏👏
ReplyDeleteहर पंक्ति में मां के लिए आत्मीय और भावुक उद्बोधन👌👌
हो क्यों न मां होती ही ऐसी है, मां के बिना तो बालक बिना संदर्भ का जीवन जीता है, बचपन और लड़कपन में जो महसूस करता है, शायद वो उसके जीवन में ताउम्र असर डालता है, ये मेरा अपना अनुभव है ।
आप बड़े भाग्यशाली हैं जो मां का प्यार मिला । उस प्यार को आत्मीयता को बड़ी सुंदरता से सहेजा है आपने कि आपकी रचना में प्रस्फुटित हो रहा है.. मेरी ये पंक्तियां मां को समर्पित हैं 👏
जग का, मन का औ जीवन का
अवरुद्ध विषम हर मार्ग दिखे
फिर मातुपिता के चरणों में
जाकर झुक जाना जीवन है ।।
..सुंदर रचना के लिए बधाई आपको आदरणीय विश्वमोहन जी👏💐
जी, अत्यंत आभार🙏🙏
Deleteमाँ की अनुपम स्मृति को किस तरह सहेज़ कर रखा है आपने इस दिल को छूने वाली रचना में!
ReplyDeleteदिल में सीधी उतर गई ये रचना ...
ReplyDeleteमाँ से जुड़े प्रसंग कितने साझा होते हैं ... कई बार लगता है माँ बनने के बाद बातें कितना साझा हो जाती हैं ... नमन है मेरा ...
जी, अत्यंत आभार!!!
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