सुर सरोवर में
मानस के,
जीव हंस-सा
हँसता है।
माया-मत्सर
पंकिल जग के,
मोह-पाश में
फँसता है।
लहकी लहरी
ललित लिप्सा-सी,
मन भरमन
भरमाया है।
लाल चमकता
गुदड़ी अंदर,
ऊपर से
भ्रम छाया है।
कंचन काया
काम की छाया
प्रेम सुधा
लहराती।
अभिसार की
मादक गंध
मकरंद मिलिंद
संग लाती।
किंतु बनती
जननी ज्योंही,
मनोयोग नारी
निष्काम-सा।
पर लोभी नर,
निरे चाम का,
नहीं जीव में
रमे राम का!
रत्ना रंजित
प्रीत की सीढ़ी
शरण सियावर
राम की।
बजरंगी
बलशाली बाँहें ,
तीरथ
तुलसी धाम की।
बड़े जतन से
मानुस तन-मन,
इस जीवन
जन पाया है।
चल मानुष तू
राम अटारी,
यह जग तो
बस माया है।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
दुनियादारी की विसंगतियों से आध्यात्म की ओर अग्रसर हृदय के उद्गार 👌👌 हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय विश्वमोहन जी 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर, सराहनीय भी।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteवाह
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteराम में मन लग जाये तो सब मिथ्या है ।
ReplyDeleteसहज शब्दों में भ्रम को समझाया है। बेमिसाल रचना ।
अद्भुत सृजन।
ReplyDeleteयह जग तो बस माया है ...
ReplyDeleteऔर मायावी अंदाज़ का भान अंत आते आते ट्क हो ही जाता है आपकी रचना में ...
लाजवाब सृजन ...
सत्यधृति ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteग़ज़ब का सृजन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति सर
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबड़े जतन से
ReplyDeleteमानुस तन-मन,
इस जीवन
जन पाया है।
चल मानुष तू
राम अटारी,
यह जग तो
बस माया है. सुंदर जीवन दर्शन । सराहनीय अभिव्यक्ति 👌👌
जी, अत्यंत आभार!
DeleteJude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
ReplyDeletePub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers
जी, अत्यंत आभार!
Deleteबड़े जतन से
ReplyDeleteमानुस तन-मन,
इस जीवन
जन पाया है।
चल मानुष तू
राम अटारी,
यह जग तो
बस माया है।
मानव के मोह पाश में फँसने नर नारी के मन में होते परिवर्तन के साथ अन्त तक जीवन दर्शन का बोध कराती लाजवाब अभिव्यक्ति।
वाह!!!
जी, अत्यंत आभार आपका!!!
Deleteकमाल का सृजन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteमहाकवि तुलसीदास एवं उनकी पत्नी रत्ना के जीवन में घटित वह प्रसंग, जिसने तुलसीदासजी को चाम से राम की ओर उन्मुख कर दिया, उस प्रसंग की प्रासंगिकता तो हर मनुष्य के जीवन में हर समय है। बस, किसी निमित्त भर की कमी होती है। तुलसीदासजी के जीवन में वह निमित्त रत्ना बनी। वह निमित्त जीवन में जितना जल्दी आ जाए, उतना बेहतर !!!
ReplyDelete'मानस का हंस' में नागर जी ने रत्ना को एक प्रेरक और सकारात्मक ऊर्जा के स्रोत के रूप में बड़े जीवंत ढंग से चित्रित किया है जहां तुलसी का यह निमित्त उनके राम के रास्ते का बाधक नहीं, प्रत्युत नियामक ही बनता है। आपकी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार!!!
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteचंद पंक्ति में मानव जीवन के सार को जिस ढंग से आपने अभिव्यक्त किया है, वो काबिलेतारीफ है। सादर प्रणाम
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार। अपना नाम भी लिखते तो अच्छा रहता। नाम की महिमा अपरंपार है😀🙏
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