Thursday, 10 February 2022

राम अटारी

 सुर सरोवर में 

मानस के, 


जीव हंस-सा 

हँसता है।


माया-मत्सर 

पंकिल जग के,


मोह-पाश में 

फँसता है।



लहकी लहरी 

ललित लिप्सा-सी,


मन भरमन 

भरमाया है।


लाल चमकता 

गुदड़ी अंदर,


ऊपर से 

भ्रम छाया है।



कंचन काया 

काम की छाया 


प्रेम सुधा 

लहराती।


अभिसार की 

मादक गंध 


मकरंद मिलिंद 

संग लाती।



किंतु बनती 

जननी  ज्योंही,


मनोयोग नारी 

निष्काम-सा।


पर लोभी नर,  

निरे चाम का,


नहीं जीव में 

रमे राम का!



रत्ना रंजित  

प्रीत की सीढ़ी 


शरण  सियावर 

राम की।


बजरंगी 

बलशाली  बाँहें ,


तीरथ  

तुलसी धाम की।



बड़े जतन से 

मानुस तन-मन, 


इस जीवन 

जन पाया है।


चल मानुष तू 

राम अटारी,


यह जग तो 

बस माया है।




30 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. दुनियादारी की विसंगतियों से आध्यात्म की ओर अग्रसर हृदय के उद्गार 👌👌 हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय विश्वमोहन जी 🙏🙏

    ReplyDelete
  3. बहुत बहुत सुन्दर, सराहनीय भी।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  5. राम में मन लग जाये तो सब मिथ्या है ।
    सहज शब्दों में भ्रम को समझाया है। बेमिसाल रचना ।

    ReplyDelete
  6. यह जग तो बस माया है ...
    और मायावी अंदाज़ का भान अंत आते आते ट्क हो ही जाता है आपकी रचना में ...
    लाजवाब सृजन ...

    ReplyDelete
  7. ग़ज़ब का सृजन

    ReplyDelete
  8. बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति सर

    ReplyDelete
  9. बड़े जतन से
    मानुस तन-मन,

    इस जीवन
    जन पाया है।

    चल मानुष तू
    राम अटारी,

    यह जग तो
    बस माया है. सुंदर जीवन दर्शन । सराहनीय अभिव्यक्ति 👌👌

    ReplyDelete
  10. Jude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
    Pub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers



    ReplyDelete
  11. बड़े जतन से
    मानुस तन-मन,


    इस जीवन
    जन पाया है।


    चल मानुष तू
    राम अटारी,


    यह जग तो
    बस माया है।
    मानव के मोह पाश में फँसने नर नारी के मन में होते परिवर्तन के साथ अन्त तक जीवन दर्शन का बोध कराती लाजवाब अभिव्यक्ति।
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार आपका!!!

      Delete
  12. कमाल का सृजन

    ReplyDelete
  13. महाकवि तुलसीदास एवं उनकी पत्नी रत्ना के जीवन में घटित वह प्रसंग, जिसने तुलसीदासजी को चाम से राम की ओर उन्मुख कर दिया, उस प्रसंग की प्रासंगिकता तो हर मनुष्य के जीवन में हर समय है। बस, किसी निमित्त भर की कमी होती है। तुलसीदासजी के जीवन में वह निमित्त रत्ना बनी। वह निमित्त जीवन में जितना जल्दी आ जाए, उतना बेहतर !!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. 'मानस का हंस' में नागर जी ने रत्ना को एक प्रेरक और सकारात्मक ऊर्जा के स्रोत के रूप में बड़े जीवंत ढंग से चित्रित किया है जहां तुलसी का यह निमित्त उनके राम के रास्ते का बाधक नहीं, प्रत्युत नियामक ही बनता है। आपकी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार!!!

      Delete
  14. बहुत सुंदर सृजन।

    ReplyDelete
  15. चंद पंक्ति में मानव जीवन के सार को जिस ढंग से आपने अभिव्यक्त किया है, वो काबिलेतारीफ है। सादर प्रणाम

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, हार्दिक आभार। अपना नाम भी लिखते तो अच्छा रहता। नाम की महिमा अपरंपार है😀🙏

      Delete