Monday, 7 March 2022

'द ऑरिजिनल फेमिनिस्ट्स'

झाँक रही

क्षितिज से 

अँजोर  में, उषा के।


खोल अर्गला 

इतिहास की,

पंचकन्याएँ!


लाल भुभुक्का हो गया है

लजा कर निर्लज्ज

'सूरज'!


सिहुर रहा है 

सहमा शर्म से

'समीर'!


पीला फक्क!

पाण्डु-सा, पड़ा 

'यम'!


मुँह लुकाये बैठा है

अलकापुरी का भोगी

'सहस्त्रभगी' !


जम गया है हिम में 

प्रस्तर बन पाखण्डी, अन्यायी!

बुदबुदाता-सा,


न्याय दर्शन को,

आत्मग्लानि में,

'तम'!


टेढा किये,

लटका है,

औंधे मुँह!


खूंटी से गगन की।

गवाक्ष का गवाह,

'अत्रिज'!


मधुकरी-सी परोसी गयी,

पाँच जुआरियों में

निक्षा भोग के लिए।


मर्यादा की गलियों में,

गूंजती गाली।

पांचाली!


अंगद पाँव 

जमाये कूटनीति, 

किष्किंधा की।


ऋष्यमुख पर,

तार-तार बेबस,

तारा!


दसों दिशाओं,

 खोले मुँह, 

भीषण अट्टहास!


मंद-मंद,

सिसकती हया,

मयतनया!


नरनपुंसक नाद, 

पंचेंद्रिय आह्लाद,

पौरुष पतित डंक।

 

नग्न, शमीत, ध्वस्त, 

होते अस्त, 

अनुसूया के अंक!



 पुरुष-प्रताड़ित,

जीने को  अभिशप्त, 

छद्म मूल्यों की धाह।

 

पकती, परितप्त, 

कंचन नारी मन,

बन कुंदन!


देती आभा,

कनक कुंडल को, 

नारी उद्धारक।


शिपिविष्ट पुरुषोत्तम,

चीर  प्रदायक, 

घनश्याम!  


प्रात: स्मरणीय, 

कांत-कमनीय,

वामा अग्रगण्या।


पिलाती संजीवनी सुधा,  

सृष्टि के सूत्र को, पंचकन्याएँ।

‘द ऑरिजिनल फेमिनिस्ट्स!’

32 comments:

  1. आदरनीय विश्वमोहन जी, आजकल महिला सशक्तीकरण और नारीवाद के बुलन्द शोर के बीच कहीं न कहीं , ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि में झांकने पर ,प्रातःस्मरणीय पंच कन्याओं का स्मरण अपने आप हो जाता है। इन जीवट नारियों ने,पुरुषों द्वारा शोषित होते हुए भी, पुरुष के अहंकार और दम्भ को नकारते हुए अपनी अस्मिता और गरिमा को अखण्ड रखते हुए नारीवाद और नारी चेतना की नयी परिभाषा लिखी। अहल्या,मंदोदरी,कुन्ती,तारा और अनुसुइया जैसी नारियों ने अपनी मेधा-शक्ति और चारित्रिक बल के स्वरुप भावी नारी को चिन्तन और सशक्तीकरण की नई राह दिखाई।पर पुरुषों द्वारा छ्ल-बल से छ्ली गई इन नारियों का दैदीप्यमान व्यक्तित्व अपनी पूर्णरूपेण आभा के साथ युगों-युगों तक भावी पीढियों का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।अत्यंत आभार पंच कन्याओं के संदर्भ को नवीन दृष्टि से आँकने के लिए।🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, आपकी सारगर्भित समीक्षा का हार्दिक आभार और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!

      Delete
  2. Well timed, well written and admirably expressed.
    A reminder that we shouldn't look westward for inspiration.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks a lot! Hope the theme 'the gender equality today for a sustainable tomorrow' will gain currency this women's day! Congratulations on IWD!

      Delete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!!

      Delete
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-3-22) को "महिला दिवस-मौखिक जोड़-घटाव" (चर्चा अंक 4363)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!!

      Delete
  5. मित्र, तुम्हारी कविता पढ़ कर अभिभूत हो गया हूँ.
    तुमने पौराणिक युग में पंच-कन्याओं के साथ हुए अन्याय का उल्लेख किया है. इस से एक बात तो सिद्ध होती है कि हमारा तथाकथित स्वर्णिम अतीत भी नारी-शोषण के बदनुमा दागों से कलंकित था.
    आज की सशक्त नारी अपने साथ हुए अन्याय का प्रतिकार करने के लिए द्रौपदी की तरह किसी भीम का सहारा नहीं लेती है और न ही उसे कोई कान्हा चाहिए जो उसकी हर संकट में सहायता कर सके.
    आज की नारी स्वयंसिद्धा है और शक्तिस्वरूपा है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह! युग के साथ बदलते नारी स्वरूप का सशक्त चित्रण। अत्यंत आभार!!!

      Delete
  6. निःशब्द करती सारगर्भित और सार्थक रचना ।
    अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🌷🌷

    ReplyDelete
  7. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार और साधुवाद
    पुरुष की दृष्टि से सम्मानित होती स्त्रियाँ तो अच्छा लगता है

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!

      Delete
  8. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-03-2022) को चर्चा मंच       "नारी  का  सम्मान"   (चर्चा अंक-4364)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!

      Delete
  9. अद्भुत सिमित शब्दों में आपने पंचकन्याओं की दुखती रग को
    लिख लिया और सृजन से पढ़ने वालों के हृदय को झकझोर दिया ।
    निशब्द लेखन निशब्द शब्द चयन ।
    शब्दों की जादूगरी तो आपकी सदैव अद्वितीय है ।
    बहुत बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
  10. अद्भुत सृजन।

    ReplyDelete
  11. लाजवाब सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!

      Delete
  12. पंचकन्याओं को विवाहिता होने पर भी कुमारी कन्याओं सम पवित्र एवं उनके स्मरण मात्र से महापातकों के नष्ट होने का वरदान मिला, मगर कब ? पहले नारियों के साथ अन्याय करो, फिर उसे देवी का दर्जा दे दो, यही हमारे देश की सनातन परंपरा रही है।
    पंचकन्याओं को लेकर जिस तरह से आपने स्त्री जाति की दुखती रग को छुआ है, वह इस रचना को अति विशेष बनाता है। फिर एक बार अपने अद्भुत सृजन से चमत्कृत कर दिया आपने।

    ReplyDelete
    Replies
    1. यहीं तो वेदोत्तर भारतीय संस्कृति की विडंबना रही कि नारियों को देवी का दर्जा देकर उन्हें सामान्य जीवन से बेदख़ल कर दिया और बता दिया कि तुम या तो देवी या दासी या फिर देवदासी! सामंती समाज की इसी विकृत पुरुष या पोंगा पंडित मानसिकता में नारी पीसाती और सिसकती रही। मध्यकाल से आगे बढ़कर मुग़ल काल के अंत तक मूल्य पतन के गर्त में गिर चुके थे। पंचकन्यायों का दृष्टांत समाज की इसी नपुंसक पौरुष वृत्ति से दो दो हाथ करने की कहानी है जहाँ नारित्व न केवल अपने उत्कर्ष का स्पर्श करता है, बल्कि अपने पुरुष को भी प्रतिशोध के बदले सहारा देते ही दिखता है।
      आपकी प्रखर समीक्षा दृष्टि को साधुवाद और हार्दिक आभार।

      Delete
  13. अद्भुत सृजन

    ReplyDelete
  14. बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति | आज कल पिछले कई दिन से आपका संकलन कासे कहूं पढ़ रहा हूँ | लगभग आधा पढ़ा है अभी |सभी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं ? पर कुछ ने मन को बहुत भीतर तक छुआ है |बहुत अच्छा लिखते हैं आप |सबसे बड़ी बात जो कुछ भी लिखते हैं उसमें कुछ न कुछ नया और मन को छूने वाला होता है | सदा ऐसे ही लिखते रहिये | शुभ कामनाएं |

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका यह अमूल्य आशीष अत्यंत उत्साहवर्धक और आह्लादक है। यूँ ही आप विद्वतजनों का आशीष मिलता रहे और उस आशीष की छाया में स्याही अनवरत और अविरल बहती रहे!!!! हार्दिक आभार।

      Delete
  15. स्त्रियों को देवी, दासी या देवदासी बनाने में में भी सामंती समाज का अपना डर व छल है इतिहास गवाह है स्त्रियों के साथ अन्याय का और साथ ही नारी शक्ति का भी....परन्तु स्त्री अपने इन तथाकथित रूपों से बाहर निकल सामान्य नारी के व्यवहार में आये और अपने साथ हुए अन्याय का प्रतिशोध ले तो शायद समानता के स्तर पर पहुँच भी जाय । परन्तु उसे भी तो युगों-युगों से मिली पहचान ढ़ोनी है
    सही कहा
    पिलाती संजीवनी सुधा
    सृष्टि के सूत्र को, पंचकन्याए
    दि ऑरिजिनल फेमिनिस्ट्स।
    सम्भवतः कि स्त्री को देवी बनाने वाला समाज या स्वयं पुरुष ही उन्हें इस सोच से बाहर निकाल सकता है इस सच से अवगत कराकर...और इसमें पहल कर चुके अब उम्मीद हरी है...सादर नमन आभार एवं साधुवाद🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार इस वैदुष्यपूर्ण विवेचना का।

      Delete
  16. पौराणिक पात्रों के माध्यम से आज भी स्त्रियों की वैसी ही दशा पर विचारणीय रचना .....

    ReplyDelete
  17. स्वप्नों के सम्मोहन में उलझे
    अक्सर
    यथार्थ से-
    परे हो जाते हैं और
    हतप्रभता की
    नीरवता में
    खो जाते हैं....अति उत्तम

    ReplyDelete