झाँक रही
क्षितिज से
अँजोर में, उषा के।
खोल अर्गला
इतिहास की,
पंचकन्याएँ!
लाल भुभुक्का हो गया है
लजा कर निर्लज्ज
'सूरज'!
सिहुर रहा है
सहमा शर्म से
'समीर'!
पीला फक्क!
पाण्डु-सा, पड़ा
'यम'!
मुँह लुकाये बैठा है
अलकापुरी का भोगी
'सहस्त्रभगी' !
जम गया है हिम में
प्रस्तर बन पाखण्डी, अन्यायी!
बुदबुदाता-सा,
न्याय दर्शन को,
आत्मग्लानि में,
'तम'!
टेढा किये,
लटका है,
औंधे मुँह!
खूंटी से गगन की।
गवाक्ष का गवाह,
'अत्रिज'!
मधुकरी-सी परोसी गयी,
पाँच जुआरियों में
निक्षा भोग के लिए।
मर्यादा की गलियों में,
गूंजती गाली।
पांचाली!
अंगद पाँव
जमाये कूटनीति,
किष्किंधा की।
ऋष्यमुख पर,
तार-तार बेबस,
तारा!
दसों दिशाओं,
खोले मुँह,
भीषण अट्टहास!
मंद-मंद,
सिसकती हया,
मयतनया!
नरनपुंसक नाद,
पंचेंद्रिय आह्लाद,
पौरुष पतित डंक।
नग्न, शमीत, ध्वस्त,
होते अस्त,
अनुसूया के अंक!
पुरुष-प्रताड़ित,
जीने को अभिशप्त,
छद्म मूल्यों की धाह।
पकती, परितप्त,
कंचन नारी मन,
बन कुंदन!
देती आभा,
कनक कुंडल को,
नारी उद्धारक।
शिपिविष्ट पुरुषोत्तम,
चीर प्रदायक,
घनश्याम!
प्रात: स्मरणीय,
कांत-कमनीय,
वामा अग्रगण्या।
पिलाती संजीवनी सुधा,
सृष्टि के सूत्र को, पंचकन्याएँ।
‘द ऑरिजिनल फेमिनिस्ट्स!’
आदरनीय विश्वमोहन जी, आजकल महिला सशक्तीकरण और नारीवाद के बुलन्द शोर के बीच कहीं न कहीं , ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि में झांकने पर ,प्रातःस्मरणीय पंच कन्याओं का स्मरण अपने आप हो जाता है। इन जीवट नारियों ने,पुरुषों द्वारा शोषित होते हुए भी, पुरुष के अहंकार और दम्भ को नकारते हुए अपनी अस्मिता और गरिमा को अखण्ड रखते हुए नारीवाद और नारी चेतना की नयी परिभाषा लिखी। अहल्या,मंदोदरी,कुन्ती,तारा और अनुसुइया जैसी नारियों ने अपनी मेधा-शक्ति और चारित्रिक बल के स्वरुप भावी नारी को चिन्तन और सशक्तीकरण की नई राह दिखाई।पर पुरुषों द्वारा छ्ल-बल से छ्ली गई इन नारियों का दैदीप्यमान व्यक्तित्व अपनी पूर्णरूपेण आभा के साथ युगों-युगों तक भावी पीढियों का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।अत्यंत आभार पंच कन्याओं के संदर्भ को नवीन दृष्टि से आँकने के लिए।🙏🙏
ReplyDeleteजी, आपकी सारगर्भित समीक्षा का हार्दिक आभार और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!
DeleteWell timed, well written and admirably expressed.
ReplyDeleteA reminder that we shouldn't look westward for inspiration.
Thanks a lot! Hope the theme 'the gender equality today for a sustainable tomorrow' will gain currency this women's day! Congratulations on IWD!
Deleteवाह लाजवाब
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार ८ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!!
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-3-22) को "महिला दिवस-मौखिक जोड़-घटाव" (चर्चा अंक 4363)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
जी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!!
Deleteमित्र, तुम्हारी कविता पढ़ कर अभिभूत हो गया हूँ.
ReplyDeleteतुमने पौराणिक युग में पंच-कन्याओं के साथ हुए अन्याय का उल्लेख किया है. इस से एक बात तो सिद्ध होती है कि हमारा तथाकथित स्वर्णिम अतीत भी नारी-शोषण के बदनुमा दागों से कलंकित था.
आज की सशक्त नारी अपने साथ हुए अन्याय का प्रतिकार करने के लिए द्रौपदी की तरह किसी भीम का सहारा नहीं लेती है और न ही उसे कोई कान्हा चाहिए जो उसकी हर संकट में सहायता कर सके.
आज की नारी स्वयंसिद्धा है और शक्तिस्वरूपा है.
वाह! युग के साथ बदलते नारी स्वरूप का सशक्त चित्रण। अत्यंत आभार!!!
Deleteनिःशब्द करती सारगर्भित और सार्थक रचना ।
ReplyDeleteअंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🌷🌷
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार और साधुवाद
ReplyDeleteपुरुष की दृष्टि से सम्मानित होती स्त्रियाँ तो अच्छा लगता है
जी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-03-2022) को चर्चा मंच "नारी का सम्मान" (चर्चा अंक-4364) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!
Deleteअद्भुत सिमित शब्दों में आपने पंचकन्याओं की दुखती रग को
ReplyDeleteलिख लिया और सृजन से पढ़ने वालों के हृदय को झकझोर दिया ।
निशब्द लेखन निशब्द शब्द चयन ।
शब्दों की जादूगरी तो आपकी सदैव अद्वितीय है ।
बहुत बहुत सुंदर।
अद्भुत सृजन।
ReplyDeleteलाजवाब सृजन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई!!!
Deleteपंचकन्याओं को विवाहिता होने पर भी कुमारी कन्याओं सम पवित्र एवं उनके स्मरण मात्र से महापातकों के नष्ट होने का वरदान मिला, मगर कब ? पहले नारियों के साथ अन्याय करो, फिर उसे देवी का दर्जा दे दो, यही हमारे देश की सनातन परंपरा रही है।
ReplyDeleteपंचकन्याओं को लेकर जिस तरह से आपने स्त्री जाति की दुखती रग को छुआ है, वह इस रचना को अति विशेष बनाता है। फिर एक बार अपने अद्भुत सृजन से चमत्कृत कर दिया आपने।
यहीं तो वेदोत्तर भारतीय संस्कृति की विडंबना रही कि नारियों को देवी का दर्जा देकर उन्हें सामान्य जीवन से बेदख़ल कर दिया और बता दिया कि तुम या तो देवी या दासी या फिर देवदासी! सामंती समाज की इसी विकृत पुरुष या पोंगा पंडित मानसिकता में नारी पीसाती और सिसकती रही। मध्यकाल से आगे बढ़कर मुग़ल काल के अंत तक मूल्य पतन के गर्त में गिर चुके थे। पंचकन्यायों का दृष्टांत समाज की इसी नपुंसक पौरुष वृत्ति से दो दो हाथ करने की कहानी है जहाँ नारित्व न केवल अपने उत्कर्ष का स्पर्श करता है, बल्कि अपने पुरुष को भी प्रतिशोध के बदले सहारा देते ही दिखता है।
Deleteआपकी प्रखर समीक्षा दृष्टि को साधुवाद और हार्दिक आभार।
अद्भुत सृजन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteबहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति | आज कल पिछले कई दिन से आपका संकलन कासे कहूं पढ़ रहा हूँ | लगभग आधा पढ़ा है अभी |सभी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं ? पर कुछ ने मन को बहुत भीतर तक छुआ है |बहुत अच्छा लिखते हैं आप |सबसे बड़ी बात जो कुछ भी लिखते हैं उसमें कुछ न कुछ नया और मन को छूने वाला होता है | सदा ऐसे ही लिखते रहिये | शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteआपका यह अमूल्य आशीष अत्यंत उत्साहवर्धक और आह्लादक है। यूँ ही आप विद्वतजनों का आशीष मिलता रहे और उस आशीष की छाया में स्याही अनवरत और अविरल बहती रहे!!!! हार्दिक आभार।
Deleteस्त्रियों को देवी, दासी या देवदासी बनाने में में भी सामंती समाज का अपना डर व छल है इतिहास गवाह है स्त्रियों के साथ अन्याय का और साथ ही नारी शक्ति का भी....परन्तु स्त्री अपने इन तथाकथित रूपों से बाहर निकल सामान्य नारी के व्यवहार में आये और अपने साथ हुए अन्याय का प्रतिशोध ले तो शायद समानता के स्तर पर पहुँच भी जाय । परन्तु उसे भी तो युगों-युगों से मिली पहचान ढ़ोनी है
ReplyDeleteसही कहा
पिलाती संजीवनी सुधा
सृष्टि के सूत्र को, पंचकन्याए
दि ऑरिजिनल फेमिनिस्ट्स।
सम्भवतः कि स्त्री को देवी बनाने वाला समाज या स्वयं पुरुष ही उन्हें इस सोच से बाहर निकाल सकता है इस सच से अवगत कराकर...और इसमें पहल कर चुके अब उम्मीद हरी है...सादर नमन आभार एवं साधुवाद🙏🙏🙏🙏
जी, अत्यंत आभार इस वैदुष्यपूर्ण विवेचना का।
Deleteपौराणिक पात्रों के माध्यम से आज भी स्त्रियों की वैसी ही दशा पर विचारणीय रचना .....
ReplyDeleteस्वप्नों के सम्मोहन में उलझे
ReplyDeleteअक्सर
यथार्थ से-
परे हो जाते हैं और
हतप्रभता की
नीरवता में
खो जाते हैं....अति उत्तम
जी, अत्यंत आभार!!!
Delete