Sunday, 19 June 2022

पत्नीटॉप


(छवि - साभार पत्नी)



 दिन ओदे आषाढ़ के,

बादल ऊपर चढ़ आए।

मानों यक्षी की पाती का,

हर हर्फ  वे पढ़ आए।


पर्वत बुत बन अड़े खड़े,

सड़कें सर्पीली लेटी हैं।

वायु शीतलता से सिहुरी,

ज्यों पर्जन्य की चेटी हैं।


बदरी भी छाकर छतरी,

छूती नीले अंबर को।

धोती अधोवस्त्रहीन वह,

देवदार दिगंबर को।


चीड़ ताने शंकु सी चूनर,

चिर यौवना बहकी है।

चमन चतुर्दिक चूँ-चूँ, चींचीं,

चिड़िया चकई चहकी है।


उनिंदी-सी सोई शांत चित्त,

सानासर की झील झिलमिल है।

नत्था टॉप से टिप टिप टीपती,

जलधाराओं की हिलमिल है।


पत्नी टॉप, ये हसीन वादियाँ!

हमदम मेरे! एतबार है।

हसरतों की हँसी  खुशी का,

पावस का पहिलौटा प्यार है।



(पत्नीटॉप - जम्मू कश्मीर का एक रमणीक पर्वतीय स्थान।

नत्था टॉप - वहां की सबसे ऊंची पर्वत चोटी)

सानासर झील - नत्था टॉप से थोड़ी दूरी पर एक मनोरम झील!)




Monday, 13 June 2022

न ब्रुयात, सत्यं अप्रियम

सत्यं ब्रुयात, ब्रुयात प्रियम,

कभी साँच को आँच नहीं।

न ब्रुयात, सत्यं अप्रियम,

भले ख़िलाफ़त, बाँच सही।


बड़ा ताप है, इन बातों में,

कहना कोई खेल नहीं है।

ढोंगी, पोंगी वाजश्रवा का,

नचिकेता से मेल नहीं है।


भले लोक परधाम गया,

पर आख़िर तक सच बोला।

ज्ञान-स्नात शिशु के सच से,

यमराज का मन डोला।


भले प्रताड़ित होता पल को,

नहीं पराजित होता है।

भू, द्यौ  और अंतरिक्ष में,

कालजयी यह होता है।


सत्य ढका हो, कनक कवच से,

उसे अनावृत करना है।

परम तत्व से सज्जित होकर,

भव-सागर को तरना है।


सत्यमेव जयते की लय पर,

मृत्यु देव ने किया समर्पण।

जुग-जुग से यह गूँजे जग में,

सत्य नूपुर के सुर की खन-खन।


Thursday, 2 June 2022

आइस पाइस

खिलना चाहूँ जब फूलों में,

काँटों ने नजर गड़ाई।

झूमूँ  तनिक तरु लता संग,

मौसम  की कड़ी कड़ाई।


घोलूँ  मलय सुगंध पवन में,

हो गई, हवा हवाई।

मिले मिलिंद मकरंद चमन में,

हमको मिली तन्हाई।


आफताब भी तनहा-तनहा

आसमान में घूमे।

तन्हाई की ज्वाला जलती,

किरणें धरती को चूमें।


तरणि से तपती धरती की,

जर्जर, जीर्ण - सी काया।

उबड़ - खाबड़ जीवन पथ पर,

कहीं धूप,  कहीं छाया।


ताके तृषित, नयन गगन घन,

दंभ दामिनी दमकी।

मन की लहरें दूर व्योम में

चंद्रप्रभा - सी चमकी।


चाँद - से चंचल मन उपवन में,

कभी ज्वार, कभी भाटा।

भाव -भँवर - जाल से भड़के

अराजक सन्नाटा!


आफरीन में मेहताब की,

मायूसी घुलती मन में।

अमा-राका की आइस-पाइस,

चेतन-अवचेतन  में।