सत्यं ब्रुयात, ब्रुयात प्रियम,
कभी साँच को आँच नहीं।
न ब्रुयात, सत्यं अप्रियम,
भले ख़िलाफ़त, बाँच सही।
बड़ा ताप है, इन बातों में,
कहना कोई खेल नहीं है।
ढोंगी, पोंगी वाजश्रवा का,
नचिकेता से मेल नहीं है।
भले लोक परधाम गया,
पर आख़िर तक सच बोला।
ज्ञान-स्नात शिशु के सच से,
यमराज का मन डोला।
भले प्रताड़ित होता पल को,
नहीं पराजित होता है।
भू, द्यौ और अंतरिक्ष में,
कालजयी यह होता है।
सत्य ढका हो, कनक कवच से,
उसे अनावृत करना है।
परम तत्व से सज्जित होकर,
भव-सागर को तरना है।
सत्यमेव जयते की लय पर,
मृत्यु देव ने किया समर्पण।
जुग-जुग से यह गूँजे जग में,
सत्य नूपुर के सुर की खन-खन।
पौराणिक पात्रों और घटनाओं को ले कर समझाने का प्रयास सराहनीय है ।।
ReplyDeleteसत्य अधिकतर कड़वा ही होता है । भला किसे पसंद आएगा ।। फिर भी सत्य कभी छुपता नहीं है । बहुत सुंदर रचना ।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(14-6-22) को "वो तो सूरज है"(चर्चा अंक-4461) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteसत्य कहने को प्रेरित करती प्रभावी रचना |
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteसकारात्मक संदेश वाली प्रासंगिक कविता।
ReplyDeleteबहुत खूब !👌👌
जी, अत्यंत आभार।
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteसत्यमेव जयते !! अति सुन्दर !!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteअब चाहे सर फूटे या माथा, मैंने सच (अप्रिय सत्य) की राह पकड़ ली.
ReplyDeleteसच का महत्व प्रतिपादित करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteवाह! क्या शैली है!🌹आपको को तो अध्यापक होना चाहिये🙏लाजवाब
ReplyDeleteफ़िलहाल तो शिष्य ही हूँ।बस आप गुरुओं का आशीष बना रहे। अत्यंत आभार।
Deleteसच बोलने और सुनने के लिए बहुत बड़ा जिगरा चाहिए आजकल
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!
Deleteसत्यं शिवं सुन्दरम!!!!!
ReplyDeleteहालांकि प्रिय सत्य के साथ अप्रिय सत्य को ना बोलने की ताकीद भी है।यूँ सत्य को जीना एक तपस्या है,पर हर सीख, कथा या प्रवचन का ध्येय सत्य मार्ग के लिए ही प्रेरित करना है।परमसत्ता का पर्याय ही सत्य है।सत्य की महिमा बढ़ाती अनमोल रचना ।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरनीय विश्वमोहन जी 🙏🙏
जी, अत्यंत आभार!!!!
Deleteसत्यमार्गी का पथ कहाँ सरल है
ReplyDeleteजो इसे जीता,शिव बन पीता गरल है!
पर सत्य का विकल्प कहाँ
इस जैसा कोई संकल्प कहाँ !!
🙏🙏
वाह! सुंदर काव्यात्मक टिप्पणी!!
Deleteवाह!गज़ब कहा सर 👌
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका!!!
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Delete
ReplyDeleteसत्य ढका हो, कनक कवच से,
उसे अनावृत करना है।
परम तत्व से सज्जित होकर,
भव-सागर को तरना है। सत्य के आलोक को दिग्दिगंत करती सुंदर शब्द शिल्प से भरी गहन रचना ।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteओह ,
ReplyDeleteगज़ब !!
जी, अत्यंत आभार।
Deleteउपनिषदों का सत्य आज भी सत्य है।
ReplyDeleteबस चलने वाले कहां गये।
अप्रतिम।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteनमनीय सत्य द्रष्टा!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Delete