Thursday, 2 June 2022

आइस पाइस

खिलना चाहूँ जब फूलों में,

काँटों ने नजर गड़ाई।

झूमूँ  तनिक तरु लता संग,

मौसम  की कड़ी कड़ाई।


घोलूँ  मलय सुगंध पवन में,

हो गई, हवा हवाई।

मिले मिलिंद मकरंद चमन में,

हमको मिली तन्हाई।


आफताब भी तनहा-तनहा

आसमान में घूमे।

तन्हाई की ज्वाला जलती,

किरणें धरती को चूमें।


तरणि से तपती धरती की,

जर्जर, जीर्ण - सी काया।

उबड़ - खाबड़ जीवन पथ पर,

कहीं धूप,  कहीं छाया।


ताके तृषित, नयन गगन घन,

दंभ दामिनी दमकी।

मन की लहरें दूर व्योम में

चंद्रप्रभा - सी चमकी।


चाँद - से चंचल मन उपवन में,

कभी ज्वार, कभी भाटा।

भाव -भँवर - जाल से भड़के

अराजक सन्नाटा!


आफरीन में मेहताब की,

मायूसी घुलती मन में।

अमा-राका की आइस-पाइस,

चेतन-अवचेतन  में।




39 comments:

  1. बहुत सुंदर भाव और चाँद और अमावस्या की आइस पाइस ( आयी स्पाई ) भी ज़ोरदार रही । लाजवाब सृजन ।

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  2. एकाकी मन के प्रलाप के माध्यम से जीवन-दर्शन का सुन्दर काव्यांकन आदरनीय विश्वमोहन जी। एकान्त में अक्सर हर प्राणी सृष्टि के दोनों रंगों के बारे में व्यापक चिंतन करता है।सदैव की भाँति रचना में यत्र-तत्र अनुप्रास मनभावन है।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏

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    1. जी, कविता के कथ्य की मीमांसा का आभार!!!

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  3. प्रभावी पंक्तियाँ----तरणि से तपती धरती की,
    जर्जर, जीर्ण - सी काया।
    उबड़ - खाबड़ जीवन पथ पर,
    कहीं धूप, कहीं छाया।
    👌👌👌👌👌🙏🙏

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  4. ज़िंदगी "आइस पाइस" का खेल ही है...कभी खुशी, कभी ग़म।👌👌

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    1. कविता के मर्म के स्पर्श का अत्यंत आभार!!!!

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(४-०६-२०२२ ) को
    'आइस पाइस'(चर्चा अंक- ४४५१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  6. Wah ! Beautifully expressed ! Loved the caption ' Aais Pais' , is title me hi kitna bachpana chupa hai 🤗 Chand sooraj bhi enjoy kartein hai ye game khelna...😀 Life indeed is a game of hide and seek, nothing is permanent or even predictable... situations keep changing but every cloud has a silver lining...har raat ki subah hoti hai ...aur din bhi dhoop chav ke kashmakash me guzar jaata hai ...

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    1. बेहद उम्दा तफसील जिंदगी की हकीकत की। बहुत आभार।

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  7. बेहद खूबसूरत रचना
    वाह

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  8. चाँद - से चंचल मन उपवन में,

    कभी ज्वार, कभी भाटा।

    भाव -भँवर - जाल से भड़के

    अराजक सन्नाटा!... जीवन संदर्भ के यथार्थ को परिभाषित करती मन को छूती सुंदर रचना ।

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  9. वाह कविराज ! गंगा-जमुनी ज़ुबान में, चंद पंक्तियों में ही तुमने तो पूरा जीवन-दर्शन बयान कर दिया !

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  10. घोलूँ मलय सुगंध पवन में,

    हो गई, हवा हवाई।

    मिले मिलिंद मकरंद चमन में,

    हमको मिली तन्हाई।

    वाह!!!

    आफरीन में मेहताब की,

    मायूसी घुलती मन में।

    अमा राका की आइस पाइस,

    चेतन-अवचेतन में।

    मन में उठते इस ज्वार भाटे में लाजवाब आत्मचिंतन एवं जीवन दर्शन ।

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  11. डॉ विभा नायक4 June 2022 at 16:05

    शिकायत करने का खूबसूरत तरीका। बहुत सुंदर 👌

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  12. बहुत सुन्दर।

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  13. वाह!! प्रकृति के बिंबों से जीवन को समझना और समझाना ! सुंदर सृजन

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  14. बड़ी मधुरता से आपने ज़िंदगी के रंग और ऋतु की आपा झापी को समझाया है। चलो अपना लेते हैं कुहराम के साथ सन्नाटा भी। सबीना

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    1. जी, शुक्रिया तहे दिल से🙏

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  15. वाह बहुत सुंदर रचना

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  16. बढिया रचना

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  17. बचपन के इस खेल के माध्यम से मन के एकाकी भाव और कप्लानाओं की मधुर उड़ान का विस्तृत गगन ... बेमिसाल है ...

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  18. This comment has been removed by the author.

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