दोनों के अंदर की कड़वाहट अब उबलकर बाहर आने लगी थी। अब न पत्नी शब्दों को चलनी में चालती, न ही पति उन्हे छनौते में छानता। पत्नी की जुबान पर कैंची और पति के मुख पर आत्मदर्प का तेज कुछ ज्यादा ही था।
आज फिर कैंची चल गई थी। रक्त की ऊष्मा भी आत्मदर्प में दमकने लगी। 'देखो जी, थोड़ी जुबान पर कंट्रोल करो।'
कैंची फिर छिटकी, '' ये तो तब कंट्रोल करना था न, जब तुम्हारा सौदा चार लाख में अरेंज कर दिया था, तुम्हारे बाप ने।''
'फिर तो कैंची वहीं चलाओ जहाँ भुगतान किया था। मुझे तो तुम्हारे फादर से एक रेजगारी भी नहीं मिली थी।'
कामवाली बाई बड़ी रस लेकर किचेन में यह आँखों देखा हाल पड़ोसन की उस नई नवेली बहू को सुना रही थी, जिसे उसका खसम इसी खरमास में भगा के ले आया था।
'सुनो, ये चार लाख वाली बात माँ जी के सामने मत बकना। मुँह पर ताला लगा लो अब! और, यह भी गठरी बांध लो कि हमारा अरेंज नहीं, लव मैरेज है।'
'भगवान आपका लभ 'मिरेज' बनाए रखे', यह कहते हुए बाई तेजी से निकल गई।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2022) को चर्चा मंच "ग़ज़ल लिखने के सलीके" (चर्चा-अंक 4485) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी, अत्यंत आभार।
Deleteवाह😅 क्या खूब लिखा है आपने।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteसही कहा,कुछ समय पश्चात love का mirage भर ही रह जाता है , चाहे arranged हो या love marriage !!😁
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार(०९-०७ -२०२२ ) को "ग़ज़ल लिखने के सलीके" (चर्चा-अंक-४४८५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी, अत्यंत आभार।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार(०९-०७ -२०२२ ) को "ग़ज़ल लिखने के सलीके" (चर्चा-अंक-४४८५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
शादी ही रह जाती है एडजस्ट करती हुई ,बढ़िया कहानी
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteसुन्दर भी सत्य भी
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteप्रिय विश्वामोहन जी, बहुत अच्छी लघुकथा! हार्दिक साधुवाद!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत बढ़िया कहा जीवंत शब्द चित्र आँखों के सामने उभर आया।
ReplyDeleteसमय क्या क्या करवाता है इंसान से।
सादर
सुन्दर
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteएक तीर से कई निशाने साधती लघुकथा!! विवाह में सौदेबाजी से दांपत्य जीवन में प्रेम की उष्मा का ह्वास निश्चित है तो प्रेम विवाह के अपने जोखिम।और घर के भेदियों का अपना यही चरित्र रहा है सदियों से।सादर 🙏🙏
ReplyDeleteऔर आपकी यह पारदर्शी और सार्थक समीक्षा भी नुकीले तीर की तरह लघुकथा के आर पार को बेधती हुई! जी, अत्यंत आभार आपके अवलोकन की तीक्ष्णता का।
Delete'सुनो जी', अभी भी कहा जा रहा है तो बात बिगड़ी नहीं है, प्रेम तो हरेक के भीतर शाश्वत है, बस कभी-कभी नश्वर क्रोध जीत जाता है
ReplyDeleteवाह! प्रेम अपने शाश्वत स्वरूप में सदैव जीवित रहता है। अत्यंत आभार।
Deleteवाह ज़बर्दस्त👌👌भाषा बहुत खूब👌 व्यंग्य ज़बर्दस्त। बहुत बधाई
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteवाह!! शैलीगत कटाक्ष करतीं लघुकथा।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार.
Deleteबहुत अच्छी लघुकथा
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteगज्जब
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