Sunday, 31 July 2022

धनपत

 (आज प्रेमचंद जयंती पर लेखनी के धनी धनपत राय को याद करते हुए)


ताप उदर का जब लहके,

मन की पीड़ा सह-सह के।

ज्वार विचार का उठता है,

शब्द-शब्द वह गहता है।


शोषण, दमन व अत्याचार के,

दंभ, आडंबर,  कुविचार के।

दुर्ग दलन वह करता है,

धर्म धीर का धरता है।



करुणा का कातर कतरा,

कुछ अनकहा-सा कहता है।

ऊष्मा से आहत अंतस के,

तप्त तरल-सा बहता है।


स्व की कुक्षी से बाहर आ,

अखिल अलख जगाता है।

तब रचना का प्रथम बीज,

मन-मरू में अंकुराता है।


भोग-विलास, धन कांटे जो,

बालुकूट में पलते हैं।

तप्त धरा पड़ते पावों के,

छालों को भी छलते हैं।


तभी वेदना की वीथी से,

जज़्बात का ज़मज़म जगता है।

डरे ईमान न कभी बिगाड़ से,

पंच परमेश्वर पगता है।


पांचजन्य के क्रांति नाद में,

विषमता खो जाती है।

धन्य-धन्य 'धनपत' की लेखनी

लहालोट हो जाती है।

38 comments:

  1. प्रेमचंद मेरे प्रिय लेखक रहे हैं । उनका लिखा अधिकांश साहित्य पढा हुआ है । आने एक एक बात उनके बारे में सटीक उजागर कर दी है । बहुत सुंदर रचना ।

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  2. जन-मन कथा सम्राट तुम
    जीवन का कटु यथार्थ तुम
    साहित्य की साँसों को लेकर
    जाने कहाँ तुम खो गये?
    क़लम के सिपाही
    जाने कहाँ तुम खो गये?
    -------
    हिंदी साहित्य के महान शिरोमणि को शत-शत नमन।
    अत्यंत सारगर्भित अभिव्यक्ति मुख्य बिंदुओं को रेखांकित रकती हुई
    अनुपम शब्द विन्यास से गूँथी सुंदर कृति।
    प्रणाम
    सादर।

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    1. जी, बहुत सुंदर काव्यात्मक श्रद्धांजलि। बहुत आभार आपका।

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  3. कौन प्रेमचन्द?
    अच्छा, वो जो 'गोदान' के होरी की तरह अपने अधूरे ही सपने ले कर स्वर्ग सिधार गए थे.

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    1. जितनी तेजी से समाज उन आदर्श मूल्यों और मानदंडों को बिसार रहा है, जिसकी स्थापना और निर्मिति प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में की थी, उस दुखद परिदृश्य को बेधती आपकी यह व्यंग्यात्मक टिप्पणी आज का सबसे बड़ा सच है। बहुत आभार आपका।

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    2. प्रेमचंद, नाम पर तो शायद कुछ भवें सिकुड़ें,पर धनपत राय पर तो अधिकांश चेहरे सपाट रह जाते हैं !

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    3. विश्वमोहन जी, बहुत ही सुंदर धनपत जी की रचना। परंतु साहित्य जगत के अद्वितीय रचनाकार के लिए ऐसे शब्द लिखना उचित है क्या?

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    4. @Rupa Singh जी, उद्देश्य पाठकों की स्मृति को जगाना था कि इस महान साहित्यकार का असली नाम धनपत राय ही था। प्रेमचंद उनका साहित्यिक नाम था। नागार्जुन, फ़िराक़ गोरखपुरी सरीखे अन्य साहित्यकारों के ऐसे अनेक दृष्टांत हैं। अत्यंत आभार आपकी जिज्ञासा और आपके सुंदर शब्दों का।

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  4. प्रेमचंद के लगभग सभी उपन्यास_कहानी पढ़ चुका हूं। साहित्य जगत में अद्वितीय है...एक अलग ही बात है इनके रचनाओं की.. नमन ❤️🌻🙏

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  5. आपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    ReplyDelete
  6. आपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  7. बहुत ही सुंदर ❣️

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  8. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०१-०८ -२०२२ ) को 'अंश और अंशी का द्वंद्व'(चर्चा अंक--४५०८ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  9. आपने सही मायने में श्रद्धांजलि दी है ।🙏

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  10. अपनी लेखनी से एक कालखंड को अक्षरशः जीवंत करने वाले, शब्दों के कुशल चितेरे
    साहित्य सम्राट मुन्शी प्रेमचन्द जी को एक सुन्दर और भावपूर्ण रचना के माध्यम से अनूठी श्रद्धांजलि!। मानव मन की थाह हो या समाज की विकृतियों की मनोवैज्ञानिक पड़ताल, सब में आज भी उनकी लेखनी का कोई सानी नहीं है।अमर रचनाकार की पुण्य स्मृति को सादर नमन 🙏🙏

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  11. मुन्शी प्रेमचन्द जी को श्रद्धांजलि देने यह उपक्रम ह्रदयस्पर्शी है। बहुत धन्यवाद ।

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  12. महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद जी को श्रद्धांजलि स्वरूप उच्चकोटि की रचना का सृजन किया है आपने । साधुवाद आपको ।

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  13. बहुत सुंदर, मुंशी प्रेमचंद जी को अप्रतिम श्रद्धांजलि

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  14. स्व की कुक्षी से बाहर आ,

    अखिल अलख जगाता है।

    तब रचना का प्रथम बीज,

    मन-मरू में अंकुराता है।

    स्व की कुक्षी से बाहर समाज के प्रति संवेदनशील होकर निष्पक्ष और निस्वार्थ विश्लेषण व गहन चिंतन से ही निर्मित होती हैं पंच परमेश्वर जैसी रचनाएं।
    साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर बहुत ही लाजवाबसृजन आपका ।

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  15. बहुत सुन्दर…आपने सच्ची श्रद्धांजलि दी है …मुंशी प्रेमचन्द जी को नमन 🙏

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  16. डॉ विभा नायक3 August 2022 at 14:51

    प्रेमचंद लेखक तो हैं ही महान। पर उन्हें पढ़ते हुए एक फाँस सी चुभती है। उनकी पत्नी कमला उसके लिये उनका क्या प्रायश्चित था कुछ! खैर व्यक्ति और लेखक को अलग करके ही पढ़ना चाहिये, शायद।
    रही आपके लेखन की बात तो हमेशा की तरह सुन्दर। भाषा बहुत बढ़िया है आपकी।
    सादर,

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  17. वाह , बहुत ख़ूब!

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