Sunday, 28 August 2022

छंदहीन कविता

 शब्द-भँवर  में मन भर भटका,

पर भाषा को भाव न भाया।

अक्षर टेढ़े-मेढे सज गए,

वाक्य विवश! विन्यास न पाया।


भाव भी भारी, अंतर्मुख हैं,

बाहर भी  वे निकल न पाते।

लटके-अटके गले में रहते,

वापस उनको निगल न पाते।


मूक है वाणी, मौन मुख पर,

होठ का थरथर छाता है।

मन के उन गुमसुम नगमों का,

नयन कोश से नाता है।


दिल की बातें दरिया बनकर,

दृग-द्वार से दहती हैं।

जीवन के उत्थान-पतन के

भाव गहन वह गहती हैं।


मौन नाद में लोचन जल के

भावनाओं की भविता है।

ताल, तुक, लय, भास मुक्त

 छंद हीन यह कविता है।








40 comments:

  1. छंद हीन इस कविता में
    हर भाव आपने भर डाला
    दिल की बातों को
    अपनी लेखनी से कह डाला..

    बहुत सुंदर प्रस्तुति 👌👌

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    1. जी, इस सुंदर काव्यात्मक टिप्पणी का आभार।

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  2. मन भावों से इतना भर जाता है कि शब्दों के माध्यम से सारा भर निकाल देना चाहता है । हर कोई तो छंदबद्ध नहीं लिख पाता बस भावों का सम्प्रेषण करने के लिए छंदमुक्त कविता ही सहारा है । कम से कम मुझ जैसों के लिए । 😄😄
    सुंदर सृजन

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    1. जी, बहुत सुंदर। अत्यंत आभार।

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  3. बहुत सुंदर भाव

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  4. आपकी लिखी रचना सोमवार 29 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२९-०८ -२०२२ ) को 'जो तुम दर्द दोगे'(चर्चा अंक -४५३६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  6. मित्र, तुम्हारी छन्दहीन कविता हमारे दिल में समा गयी है. तुमने हमारी सुबह ख़ूबसूरत बना दी है.

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    1. जी, अत्यंत आभार हमारा पूरा दिन बनाने के लिए अपने इस अनुपम आशीष से!

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  7. भावनाओं को छंदों की बैसाखी नहीं चाहिए। बिना बंदिश के और भी थिरकती हैं।
    सुंदर प्रस्तुति !👌👌

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  8. भावनाओं को छंदों की बैसाखी नहीं चाहिए। बिना बंदिश के और भी थिरकती हैं।
    सुंदर प्रस्तुति !

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  9. वाह..बहुत सुन्दर भाव। आपकी रचना जबरदस्त है।

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  10. सुंदर प्रस्तुति

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  11. बहुत सुंदर रचना

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  12. मौन नाद में लोण जल के,मौसम की भविता है।//
    ताल, तुक, लय, भास मुक्त,छंद हीन यह कविता।////
    बहुत सुन्दर और मनभावन रचना आदरनीय विश्वमोहन जी।कविता में भले औपचारिक छ्न्द ना हों,उसके भाव उसे समृद्ध करते हैं।एक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई और शुभकामनाएं।सादर 🙏🙏

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  13. जो तू ना होती जग में कविते!
    प्रीत का राग सुनाता कौन?
    पलकों में अनायास उपजे
    सपनों के साज सजाता कौन?

    अनकही पीर मीरा की तू ,
    गोपी का तू ही भ्रमर गीत!
    तुलसी के हिय जो ना बसती
    जन -जन के राम को गाता कौन?
    🙏🙏

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    1. इतनी सुंदर काव्यात्मक टिप्पणी का सादर आभार!

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  14. एक एक शब्द सुंदर ।
    छंदहीन कविता पर बहुत ही सराहनीय अभिव्यक्ति।

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  15. छन्दहीन कविता की विशेषता में छन्दयुक्त गीत .बहुत खूब

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  16. भाव भी भारी, अंतर्मुख हैं,

    बाहर भी वे निकल न पाते।

    लटके-अटके गले में रहते,

    वापस उनको निगल न पाते।

    अंतर्मुखी मन के भाव भला छंदबद्ध कैसे बँधे...
    छंदहीन कविता की बात ही अलग होती है छोटी मोटी टूटी फूटी आधी अधूरीसब कह देती है ये कविता ...बहुत ही लाजवाब सृजन छन्दमुक्त कविता पर।
    वाह!!!

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    1. बहुत सही। अत्यंत आभार।

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  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  18. बहुत बहुत सुन्दर सुगठित सरस रचना | बधाई भी शुभ कामनाएं भी | --- पता नहीं जाने क्यों अब काफी दिन से मेरी मेल आई डी पर किसी की भी रचनाएँ नहीं आ रही हैं | आज जब आपके ब्लॉग पर गया तब यह सुन्दर रचना पढने को मिली |

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    1. हमको तो आखिर आपका आशीष मिल ही गया। जी, बहुत आभार आपका।

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