शब्द-भँवर में मन भर भटका,
पर भाषा को भाव न भाया।
अक्षर टेढ़े-मेढे सज गए,
वाक्य विवश! विन्यास न पाया।
भाव भी भारी, अंतर्मुख हैं,
बाहर भी वे निकल न पाते।
लटके-अटके गले में रहते,
वापस उनको निगल न पाते।
मूक है वाणी, मौन मुख पर,
होठ का थरथर छाता है।
मन के उन गुमसुम नगमों का,
नयन कोश से नाता है।
दिल की बातें दरिया बनकर,
दृग-द्वार से दहती हैं।
जीवन के उत्थान-पतन के
भाव गहन वह गहती हैं।
मौन नाद में लोचन जल के
भावनाओं की भविता है।
ताल, तुक, लय, भास मुक्त
छंद हीन यह कविता है।
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!!
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteछंद हीन इस कविता में
ReplyDeleteहर भाव आपने भर डाला
दिल की बातों को
अपनी लेखनी से कह डाला..
बहुत सुंदर प्रस्तुति 👌👌
जी, इस सुंदर काव्यात्मक टिप्पणी का आभार।
Deleteमन भावों से इतना भर जाता है कि शब्दों के माध्यम से सारा भर निकाल देना चाहता है । हर कोई तो छंदबद्ध नहीं लिख पाता बस भावों का सम्प्रेषण करने के लिए छंदमुक्त कविता ही सहारा है । कम से कम मुझ जैसों के लिए । 😄😄
ReplyDeleteसुंदर सृजन
जी, बहुत सुंदर। अत्यंत आभार।
Deleteबहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 29 अगस्त 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी, अत्यंत आभार!!!!
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२९-०८ -२०२२ ) को 'जो तुम दर्द दोगे'(चर्चा अंक -४५३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी, अत्यंत आभार।
Deleteमित्र, तुम्हारी छन्दहीन कविता हमारे दिल में समा गयी है. तुमने हमारी सुबह ख़ूबसूरत बना दी है.
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार हमारा पूरा दिन बनाने के लिए अपने इस अनुपम आशीष से!
Deleteभावनाओं को छंदों की बैसाखी नहीं चाहिए। बिना बंदिश के और भी थिरकती हैं।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति !👌👌
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteभावनाओं को छंदों की बैसाखी नहीं चाहिए। बिना बंदिश के और भी थिरकती हैं।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति !
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteवाह..बहुत सुन्दर भाव। आपकी रचना जबरदस्त है।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteमौन नाद में लोण जल के,मौसम की भविता है।//
ReplyDeleteताल, तुक, लय, भास मुक्त,छंद हीन यह कविता।////
बहुत सुन्दर और मनभावन रचना आदरनीय विश्वमोहन जी।कविता में भले औपचारिक छ्न्द ना हों,उसके भाव उसे समृद्ध करते हैं।एक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई और शुभकामनाएं।सादर 🙏🙏
जी, अत्यंत आभार!
Deleteजो तू ना होती जग में कविते!
ReplyDeleteप्रीत का राग सुनाता कौन?
पलकों में अनायास उपजे
सपनों के साज सजाता कौन?
अनकही पीर मीरा की तू ,
गोपी का तू ही भ्रमर गीत!
तुलसी के हिय जो ना बसती
जन -जन के राम को गाता कौन?
🙏🙏
इतनी सुंदर काव्यात्मक टिप्पणी का सादर आभार!
Deleteएक एक शब्द सुंदर ।
ReplyDeleteछंदहीन कविता पर बहुत ही सराहनीय अभिव्यक्ति।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteछन्दहीन कविता की विशेषता में छन्दयुक्त गीत .बहुत खूब
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteभाव भी भारी, अंतर्मुख हैं,
ReplyDeleteबाहर भी वे निकल न पाते।
लटके-अटके गले में रहते,
वापस उनको निगल न पाते।
अंतर्मुखी मन के भाव भला छंदबद्ध कैसे बँधे...
छंदहीन कविता की बात ही अलग होती है छोटी मोटी टूटी फूटी आधी अधूरीसब कह देती है ये कविता ...बहुत ही लाजवाब सृजन छन्दमुक्त कविता पर।
वाह!!!
बहुत सही। अत्यंत आभार।
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!!
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सुगठित सरस रचना | बधाई भी शुभ कामनाएं भी | --- पता नहीं जाने क्यों अब काफी दिन से मेरी मेल आई डी पर किसी की भी रचनाएँ नहीं आ रही हैं | आज जब आपके ब्लॉग पर गया तब यह सुन्दर रचना पढने को मिली |
ReplyDeleteहमको तो आखिर आपका आशीष मिल ही गया। जी, बहुत आभार आपका।
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