तेरे आँचल से भी छोटा,
चाहे जितना फैले अंबर।
सारी सृष्टि से भी संकुल
माँ घनियारा तेरा आँचर।
सात समुंदर भी डूब जाते,
नील नयन माँ तेरे घट में।
बेचारी नदियाँ बंध जाती,
मैया तेरे नेह के तट में।
पवन प्रकंपित थम जाता माँं!
लट में तेरे अलकों के।
और दहकती अग्नि ठंडी,
तेरी शीतल पलकों में।
ब्रह्मा-विष्णु-शिव शिशु-से,
अनुसूया के आँगन में।
माँ के कान पकड़ते मिट्टी,
विश्व मोहन के आनन में।
अब दुनिया ये छोड़ गई तुम,
नेह से नाता तोड़ गई तुम।
ममता से मुँह मोड़ गई तुम,
मन का घट हिलोड़ गई तुम।
माँ, शव मैने ढोया तेरा,
शोक नहीं ढो पता।
नहीं मयस्सर आँचल तेरा,
पल भर को खो जाता!