Sunday, 22 January 2023

आँचल

तेरे आँचल से भी छोटा,

चाहे जितना फैले अंबर।

सारी सृष्टि से भी संकुल

माँ घनियारा तेरा आँचर।


सात समुंदर भी डूब जाते,

नील नयन माँ तेरे घट में।

बेचारी नदियाँ  बंध जाती,

मैया तेरे नेह के तट में।


पवन प्रकंपित थम जाता माँं!

लट में तेरे अलकों के।

और दहकती अग्नि ठंडी,

तेरी शीतल पलकों में।


ब्रह्मा-विष्णु-शिव शिशु-से,

अनुसूया के आँगन में।

माँ के कान पकड़ते मिट्टी,

विश्व मोहन के आनन में।


अब दुनिया ये छोड़ गई तुम,

नेह से नाता तोड़ गई तुम।

ममता से मुँह मोड़ गई तुम,

मन का घट हिलोड़ गई तुम।


माँ, शव  मैने ढोया तेरा,

शोक नहीं ढो पता।

नहीं मयस्सर आँचल तेरा,

पल भर को खो जाता!

Tuesday, 17 January 2023

गंगा को सागर होना है।

 काल चक्र के महा नृत्य में,

नहीं चला है किसी का जोर।

जितना नाचें उतना जाने,

जहाँ ओर थी, वहीं है छोर।


 जिस बिंदु से शुरू सड़क थी,

है पथ का अवसान वही।

अभी निकले थे, अभी पहुंच गए,

होता तनिक भी भान नहीं।


यात्रा के अगणित चरणों में

इस योनि का चरण भी आता।

पथ अनंत पर जब निकले थे,

जन्मदिवस है याद दिलाता,


पथ वृत पर पथिक भ्रमित है,

गुंजित गगन, ये कैसा शोर!

बजे बधाई, मंगल वाणी,

संगी साथी मची है होड़।


सत्य यही, इस गतानुगतिक का,

जड़ चेतन सब काल के दास।

एक बरस पथ छोटा होकर,

गंतव्य और सरका पास।


अब तक मन है बहुत ही भटका,

अब न और भ्रमित होना है।

सच जीवन का समझ में आया,

गंगा को सागर होना है।