Tuesday, 17 January 2023

गंगा को सागर होना है।

 काल चक्र के महा नृत्य में,

नहीं चला है किसी का जोर।

जितना नाचें उतना जाने,

जहाँ ओर थी, वहीं है छोर।


 जिस बिंदु से शुरू सड़क थी,

है पथ का अवसान वही।

अभी निकले थे, अभी पहुंच गए,

होता तनिक भी भान नहीं।


यात्रा के अगणित चरणों में

इस योनि का चरण भी आता।

पथ अनंत पर जब निकले थे,

जन्मदिवस है याद दिलाता,


पथ वृत पर पथिक भ्रमित है,

गुंजित गगन, ये कैसा शोर!

बजे बधाई, मंगल वाणी,

संगी साथी मची है होड़।


सत्य यही, इस गतानुगतिक का,

जड़ चेतन सब काल के दास।

एक बरस पथ छोटा होकर,

गंतव्य और सरका पास।


अब तक मन है बहुत ही भटका,

अब न और भ्रमित होना है।

सच जीवन का समझ में आया,

गंगा को सागर होना है।





24 comments:

  1. आदरनीय विश्वमोहन जी , सर्वप्रथम जन्म दिन की बधाई और शुभकामनाएं।आपके उत्तम स्वास्थ्य और यश की सदैव कामना करती हूँ।प्रस्तुत रचना समस्त जीवन चक्कर को दर्शाती हुई आईना दिखाती है कि जहाँ से यात्रा शुरु होती है अन्ततः मानव के पैर जाकर वहीं थमते हैं।कहते हैं समय का पहिया गोल घूमता हुआ बार-बार उसी एक ही जगह से गुजरता है।और जीवन के शुरु से अवसान तक वही नियत गन्तव्य है अर्थात जीवन गंगा को अनंत सागर में विलीन होना ही है । आपकी सुदक्ष लेखनी से मार्मिक और सार्वभौम सत्य को उद्घाटित करती रचना के लिए बधाई स्वीकारें।सादर 🙏🙏

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    1. जी, आपके आशीर्वचनों का हृदयतल से आभार!!!!

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  2. बहुत खूबसूरत सृजन

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  3. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ । जीवन के सत्य को कहती सुंदर रचना ।

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    1. जी, आपके आशीर्वचनों का हृदयतल से आभार!!!!

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  4. जीवन का सार लिए भावपूर्ण रचना।

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 18 जनवरी 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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  5. पथ यह जन्म-मरण का
    नभ से धरा तक भरम का
    जीवन का यह सार तत्व
    क्यों आज समझ में आया
    व्यर्थ उमर की गिनती
    कर्म करे यही विनती
    पथिक तू बहता चलता चल
    हर क्षण में स्वयं को मलता चल
    बचकर मोह-माया से बोलो
    इस जगत में कौन रह पाया?
    -------
    उत्कृष्ट रचना।

    आदरणीय विश्वमोहन जी, जन्मदिन की अशेष शुभेच्छा। ईश्वर आपको स्वस्थ एवं दीर्घायु होने का आशीष दें और आप का यश तथा मान दिशाओं में गुंजित हो ।
    -----
    प्रणाम सादर

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    1. सुता शारदा श्वेता,
      जीवन दर्शनवेत्ता।
      जीवन मर्म व्याख्याता,
      और अध्यात्म उदगाता।
      लिया वचन तेरा थाम,
      स्वीकारो प्रणाम!!!
      आपके आशीर्वचनों का हृदय तल से आभार🙏🙏🙏

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  6. शुभकामनाओं के संग साधुवाद
    सुन्दर रचना

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  7. गंगा को सागर तक पहुँचने तक में धारा अविरल और निर्बाध रहे।जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके आशीष का!

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  8. विषमोहन जी! सालगिरह की अनंत शुभकामनाएं। जीवन के हर मोड़ पर आपको खुशियां मिले और आपकी लेखनी ऐसे ही चलती रहे।

    बहुत सुंदर रचना!!

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके आशीष का!

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  9. काल के चक्र में सभी हैं ... भटकते हैं या मंजिल के करीब जाते हैं ... भविष्य बताता है ...
    पर सच है एक दिन गंगा सागर हो जाती है ...

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  10. सत्य यही, इस गतानुगतिक का,
    जड़ चेतन सब काल के दास।
    एक बरस पथ छोटा होकर,
    गंतव्य और सरका पास।
    यही जीवन का शाश्वत रूप है । अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  11. आदरणीय सर, सादर चरण-स्पर्श। आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बर्फ आना हुआ, परीक्षाएं चल रही थीं। ये परीक्षा भी, एक खत्म होती है और दूसरी सर पर आ जाती है। 😂 परंतु आपका जन्मदिवस रह गया मुझ से , देर से ही सही पर आपको जन्मदिन की खूब सारी बधाइयाँ। आपकी यह रचना बहुत हो मार्मिक, अध्यात्मभाव को सहेजी हुई, मुझे श्रीमद भागवत महापुराण और भगवद्गीता की याद दिला दी। कब श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अंत में हर जीव को मिझे में ही लीन होना है। आपकी सभी रचनाएँ बहुत सुंदर लगती हैं मुझे और सदैव प्रेरित करतीं हैं। पुनः प्रणाम आपको। अपनी डायरी में एक नया लेख डाला है, आ कर अपना आशीष दीजिये।

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  12. ढेर सारा आशीष आपको, अनंता! आप खूब पढ़ें और खूब लिखें। यही मेरी शुभकामना है आपको!

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