काश ! अतीत मेरा भी होता
काश! अतीत मेरा भी होता
विपिन विहार विरासत वीथि
मैं सुरमई सपनों में खोता
चाहे खट्टे , चाहे मीठे
स्वाद तो कुछ जीवन का होता
भूतकाल के महासागर में
कुछ पल को लग जाता गोता
काश! अतीत मेरा भी होता
वर्त्तमान की फटी पोटली
में अतीत के तन्डुल भरता
भर उदर तनिक तिनके से
फिर भविष्य के पथ पर चलता
आशा के बुने ताने बाने
मन मेरा मदमस्त मचलता
काश! अतीत मेरा भी होता
कहते जहाँ इतिहास नहीं है
जीवन का उल्लास नहीं है
जहाँ भूत की रास नहीं है
वर्त्तमान की फाँस वही है
रथ कुपथ! पथिक हो लथपथ
जीवन शकट सड़क को खोता
काश! अतीत मेरा भी होता
भटका योनि के मकड़–जाल में
मैं अनादि हूँ, मैं अनंत हूँ
ना उपसर्ग और ना मैं प्रत्यय
जीवन शब्द का सिर्फ हलंत हूँ
मीत जो मेरा भी मिल जाता
ठौर हीन मैं यूँ ना होता
काश! अतीत मेरा भी होता
पाकर नरम ऊष्मा उषा की
मार्त्तंड के ताप को सहता
चढ़ प्रत्युष की प्रत्यंचा पर
पूनम की गंगा में बहता
चखे जो पावन अमृत जीवन
चेतन मन चिर योग में सोता
काश! अतीत मेरा भी होता