Tuesday, 7 October 2014

जीव, तू क्यों मरता जीता है?

जीव, तू क्यों मरता जीता है?

गत कर्मों का बीज अधम ही,
बन प्रारब्ध पनपा करता है।
क्रियमाण के करम-धरम में,
जो करता है , वो भरता है।

उपनिषद  व  वेद-ऋचा में,
ज्ञान-गंगा गुंजित-व्यंजित है।
संरक्षण हो कर्मफल का,
जनम-चकर में जो संचित है।

आसक्ति के बंधपाश में,
लोभ, मोह और दम्भ-त्रास में।
भ्रूण-भंवर और काल-ग्रास में,
रहे सरकता चक्र-फाँस में।

सिक्त-परिग्रह, रिक्त और टूटन,
कुंठा, कुटिल-छल, घर्षण-घुटन।
काम, क्रोध, मोह, मद-मत्सर में,
जड़ जंतु तम भव-सागर में।

भ्रमित जीव कबतक भटकेगा,
जगत-गरल जबतक गटकेगा।
आओ रागी, बन वीतरागी,
फल-बंधन, तू छोड़ बड़भागी!

तन-मनुज प्रसाद में पाया,
योग-निमित्त ये सुंदर काया।
उठ परंतप, त्याजो संशय,
हा, धनुर्धर! कण-कण ब्रह्ममय।

अनासक्ति का भाव जगा ले,
ईश-भक्ति में नेह लगा ले।
छोड़ सब गुण, गुन मुरली की धुन,
कहे कन्हैया, सुन गीता है।

जीव, तू क्यों मरता- जीता है?


17 comments:

  1. Pushpendra Dwivedi: रोचक अविस्मरणीय कृति
    Vishwa Mohan: +Pushpendra Dwivedi आभार आदरणीय!
    Pushpendra Dwivedi: +Vishwa Mohan सुस्वागतम

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  2. NITU THAKUR: bahot badhiya...man ke bhav ujagar karti rachna
    Vishwa Mohan: +Nitu Thakur बहुत आभार आपका!!

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  3. NITU THAKUR's profile photo
    NITU THAKUR
    +1
    very nice
    Oct 25, 2017
    Kusum Kothari's profile photo
    Kusum Kothari
    Moderator
    +1
    क्यों लख चौरासी मे भ्रमत फिरे बदल बदल कर चोला
    सत्य शील संतोष अहिंसा मेवे खाले बैठ के भोला।

    फिर चल पड़ तू लम्बी सफर को आवागमन नही है जहाँ,
    नश्वर संसार और भव भ्रमण के कारणों पर प्रकाश डालती सुंदर आध्यात्मिक रचना।
    शुभ दिवस ।

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    Oct 25, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    आपके स्नेहिल शब्दों का आभार!!!
    Oct 25, 2017
    Indira Gupta's profile photo
    Indira Gupta
    +1
    सुंदर सहज दार्शनिक चर्चा
    कविवर सुंदर पंक्तियों मै
    जीव क्यो मरता जीता है
    सोच इस क्षण भंगुर जीवन मै !
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    Oct 26, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    जी आभार !!!

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  4. आपकी लिखी रचना सोमवार 19 सितम्बर ,2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  5. आध्यात्मिक चिंतन से परिपूर्ण सुन्दर सृजन ।

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  6. गत कर्मों का बीज अधम ही,
    बन प्रारब्ध पनपा करता है।
    क्रियमाण के करम-धरम में,
    जो करता है , वो भरता है।
    वाह!!!
    बहुत सटीक एवं सार्थक..
    गीता ज्ञान सी बहुत ही लाजवाब चिंतनपरक रचना ।

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  7. जग जीवन का औचित्य है क्या?
    मनु जन्म, मोक्ष,सुकृत्य है क्या?
    आना-जाना फेरा क्यूँ है?
    मन मूढ़ मति मेरा क्यूँ है?
    राग-विराग मय पी-पीकर
    धागे भावों के न सुलझे
    मन उलझन में पड़ जाता है।
    ----
    सृष्टि के रहस्यों के गूढ़ मर्म को तलाशती दार्शनिक रचना।
    हमेशा की तरह अति सुंदर रचना।
    प्रणाम
    सादर।

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    1. भ्रमित जीव कबतक भटकेगा,
      जगत-गरल जबतक गटकेगा।
      आओ रागी, बन वीतरागी,
      फल-बंधन, तू छोड़ बड़भागी!
      ...आपका जीवन दर्शन उच्चकोटि का है, गूढ़ चिंतन से नकली सुंदर रचना ।

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  8. जीवन के आवागमन से इतर मोक्ष की कामना को उद्घाटित करती सशक्त रचना आदरनीय विश्वमोहन जी।हार्दिक बधाई और प्रणाम 🙏

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  9. सुख- दुःख का ताना बाना है ,
    कहीं गुलशन कहीं वीराना है ;
    तन , मन और जीवन ,
    पल - पल बदले इनका मौसम ;
    हँसी कहीं रोदन बिखरे
    नियत जन्म के साथ मरण ;
    नित गतिमान यायावर का
    जाने कहाँ ठौर ठिकाना है ?
    🙏🙏

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    1. वाह! नित गतिमान यायावर का, जाने कहाँ ठौर ठिकाना है! बहुत सुंदर!!!

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