जीव, तू क्यों मरता जीता है?
गत कर्मों का बीज अधम ही,
बन प्रारब्ध पनपा करता है।
क्रियमाण के करम-धरम में,
जो करता है , वो भरता है।
उपनिषद व वेद-ऋचा में,
ज्ञान-गंगा गुंजित-व्यंजित है।
संरक्षण हो कर्मफल का,
जनम-चकर में जो संचित है।
आसक्ति के बंधपाश में,
लोभ, मोह और दम्भ-त्रास में।
भ्रूण-भंवर और काल-ग्रास में,
रहे सरकता चक्र-फाँस में।
सिक्त-परिग्रह, रिक्त और टूटन,
कुंठा, कुटिल-छल, घर्षण-घुटन।
काम, क्रोध, मोह, मद-मत्सर में,
जड़ जंतु तम भव-सागर में।
भ्रमित जीव कबतक भटकेगा,
जगत-गरल जबतक गटकेगा।
आओ रागी, बन वीतरागी,
फल-बंधन, तू छोड़ बड़भागी!
तन-मनुज प्रसाद में पाया,
योग-निमित्त ये सुंदर काया।
उठ परंतप, त्याजो संशय,
हा, धनुर्धर! कण-कण
ब्रह्ममय।
अनासक्ति का भाव जगा ले,
ईश-भक्ति में नेह लगा ले।
छोड़ सब गुण, गुन मुरली की धुन,
कहे कन्हैया, सुन गीता है।
जीव, तू क्यों मरता- जीता है?
Pushpendra Dwivedi: रोचक अविस्मरणीय कृति
ReplyDeleteVishwa Mohan: +Pushpendra Dwivedi आभार आदरणीय!
Pushpendra Dwivedi: +Vishwa Mohan सुस्वागतम
NITU THAKUR: bahot badhiya...man ke bhav ujagar karti rachna
ReplyDeleteVishwa Mohan: +Nitu Thakur बहुत आभार आपका!!
NITU THAKUR's profile photo
ReplyDeleteNITU THAKUR
+1
very nice
Oct 25, 2017
Kusum Kothari's profile photo
Kusum Kothari
Moderator
+1
क्यों लख चौरासी मे भ्रमत फिरे बदल बदल कर चोला
सत्य शील संतोष अहिंसा मेवे खाले बैठ के भोला।
फिर चल पड़ तू लम्बी सफर को आवागमन नही है जहाँ,
नश्वर संसार और भव भ्रमण के कारणों पर प्रकाश डालती सुंदर आध्यात्मिक रचना।
शुभ दिवस ।
Translate
Oct 25, 2017
Vishwa Mohan's profile photo
Vishwa Mohan
आपके स्नेहिल शब्दों का आभार!!!
Oct 25, 2017
Indira Gupta's profile photo
Indira Gupta
+1
सुंदर सहज दार्शनिक चर्चा
कविवर सुंदर पंक्तियों मै
जीव क्यो मरता जीता है
सोच इस क्षण भंगुर जीवन मै !
Translate
Oct 26, 2017
Vishwa Mohan's profile photo
Vishwa Mohan
जी आभार !!!
आपकी लिखी रचना सोमवार 19 सितम्बर ,2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteआध्यात्मिक चिंतन से परिपूर्ण सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteगत कर्मों का बीज अधम ही,
ReplyDeleteबन प्रारब्ध पनपा करता है।
क्रियमाण के करम-धरम में,
जो करता है , वो भरता है।
वाह!!!
बहुत सटीक एवं सार्थक..
गीता ज्ञान सी बहुत ही लाजवाब चिंतनपरक रचना ।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteजग जीवन का औचित्य है क्या?
ReplyDeleteमनु जन्म, मोक्ष,सुकृत्य है क्या?
आना-जाना फेरा क्यूँ है?
मन मूढ़ मति मेरा क्यूँ है?
राग-विराग मय पी-पीकर
धागे भावों के न सुलझे
मन उलझन में पड़ जाता है।
----
सृष्टि के रहस्यों के गूढ़ मर्म को तलाशती दार्शनिक रचना।
हमेशा की तरह अति सुंदर रचना।
प्रणाम
सादर।
आभार!!!
Deleteभ्रमित जीव कबतक भटकेगा,
Deleteजगत-गरल जबतक गटकेगा।
आओ रागी, बन वीतरागी,
फल-बंधन, तू छोड़ बड़भागी!
...आपका जीवन दर्शन उच्चकोटि का है, गूढ़ चिंतन से नकली सुंदर रचना ।
जी, आभार!
Deleteजीवन के आवागमन से इतर मोक्ष की कामना को उद्घाटित करती सशक्त रचना आदरनीय विश्वमोहन जी।हार्दिक बधाई और प्रणाम 🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteसुख- दुःख का ताना बाना है ,
ReplyDeleteकहीं गुलशन कहीं वीराना है ;
तन , मन और जीवन ,
पल - पल बदले इनका मौसम ;
हँसी कहीं रोदन बिखरे
नियत जन्म के साथ मरण ;
नित गतिमान यायावर का
जाने कहाँ ठौर ठिकाना है ?
🙏🙏
वाह! नित गतिमान यायावर का, जाने कहाँ ठौर ठिकाना है! बहुत सुंदर!!!
Delete