Friday, 9 October 2015

दो पथिक किनारे !


  

शोणित-सागर में सिंदूरी,
सोने-सा सूरज ढ़लका।
नील गगन ललित अम्बर में,
लाल रंग है छलका।
                                       
चिरई-चिरगुन नीड़ चले,
अब चकवा-चकई आ रे।
प्रेम सुधा दृग अंचल धारे,
राही राह निहारे।

दो पथिक किनारे !


अस्ताचल,लहरें चंचल,
कलकल है किल्लोलें।
श्याम सलोनी, सन्ध्यारानी,
मदन मगन, पट खोले।

शनैः-शनैः सरकाये घूंघट,
राग अनंत सिंगार की चूनट।
प्रणय-पाग का नीर नयन में धारे,
राही राह निहारे

 दो पथिक किनारे!


सनन-सनन पागल है पवन,
अब मीठी बतियाँ बोले।
बाउर-बयार, बिहँस-बिहँस कर
नशा भंग का घोले।

द्रुम-लता पुलककर डोले
मतवाले,अब आ सागर में खो लें।
उछली ऊर्मि, चाँद पलक में धारे,
राही राह निहारे।

दो पथिक किनारे !
  

सागर-से वक्षस्थल पर,
पसरा  चिर  सन्नाटा।
उर-अंतर्मन के स्पन्दन ने,
रचा ज्वार और भाटा।

पुरुष-प्रकृति प्रीत परायण,
प्रवृत्त नर, निवृत्त नारायण।
मिलन-चिरंतन का मन, मंगल-गीत उचारे,
राही राह निहारे

दो पथिक किनारे !  
  

6 comments:

  1. Shubha Mehta: वाह!!वाह!!
    Vishwa Mohan: अत्यंत आभार आपका!!!

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  2. Kusum Kothari's profile photo
    Kusum Kothari
    +1
    छाया वादी कवियों की शैली, विहंगम दृष्टि विशेषकर पंतजी की याद दिलाती अंलकृत कोमल शब्द सौष्ठव से सजी सांगोपाग रचना।
    प्रकृति और विशेष तहः ढलती शाम सागर का तट, और उठती मनोवृत्तियां।
    अप्रतिम अद्भुत सुंदर।
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    Oct 5, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Kusum Kothari
    सादर आभार!!!
    Oct 5, 2017
    अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
    अमित जैन 'मौलिक'
    Owner
    +2
    सागर से वक्षस्थल पर
    पसरा चिर सन्नाटा,
    उर-अंतर्मन के स्पन्दन ने
    रचा ज्वार और भाटा...

    वाह वाह कविवर। अपकी लेखनी तरोताज़ा कर देती है। ख़ूब भालो

    मन मेरा यही विचारे
    हैं अनुपम कवि हमारे।
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    Oct 6, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +अमित जैन 'मौलिक' सादर आभार !

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  3. पुरुष-प्रकृति प्रीत परायण
    प्रवृत्त नर निवृत्त नारायण
    मिलन-चिरंतन का मन मंगल-गीत उचारे
    राही राह निहारे
    दो पथिक किनारे !
    वाह ! प्रकृति और प्रेम के मनभावन रंगों से सजा बहुत प्यारा जीवंत शब्दचित्र ! हार्दिक शुभकामनाएं विश्वमोहन जी |

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    1. जी, आपके अनुपम आशीष का आभार!!!

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  4. You have wielded a paint brush instead of a pen in your opening lines. Splendid!
    The last stanza, however compelled me to poke my grey cells.
    Am wondering who could be "दो पथिक किनारे".
    Just mute spectators,or Man &Woman or the duality within a human itself,or the earthling and the Divine???!

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    1. The adage is 'जहां न जाये रवि, वहां जाए कवि' but it often happens that the wisdom of a more enlightened critique supersedes the ethereal imagination of the poet and transcends beyond that. You look a classic example of that. Deep gratitude and profound thanks!!!

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