Saturday 12 November 2016

आह नाज़िर और बाह नाज़िर!!

थी अर्थनीति जब भरमाई,
ली कौटिल्य ने अंगड़ाई ।

पञ्च शतक सह सहस्त्र एक
अब रहे खेत, लकुटिया टेक।

जहां राजनीति का कीड़ा है,
बस वहीं भयंकर पीड़ा है ।

जनता  खुश,खड़ी कतारों में,
मायूसी मरघट सी, मक्कारो में ।

वो काले बाजार के चीते थे
काले धन में दंभी जीते थे।

धन कुबेर छल बलबूते वे,
भर लब लबना लहू पीते थे।

मची हाहाकर उन महलो में,
लग गए दहले उन नहलों पे।

हैं तिलमिलाए वो चोटों से,
जल अगन मगन है नोटों से।

भारत भाल भारतेंदु भाई,
दुरजन  देखि हाल न जाइ।

जय भारत, जय भाग्य विधाता,
जनगण मनधन खुल गया खाता।

तुग़लक़! बोले तो कोई  शाह नादिर!
कोई 'आह नाज़िर'! कोई  ' वाह नाज़ीर '!

आह नाज़िर! और बाह नाज़ीर !!










9 comments:

  1. Kusum Kothari's profile photo
    Kusum Kothari
    Moderator
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    बहुत सुंदर।
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    13w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    शुक्रिया!
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    Indira Gupta's profile photo
    Indira Gupta
    +1
    सटीक ! .....👍👍👍👍👍👍
    नीति राजनीति की
    बड़ी अजब सी बात
    नीति बिन राजनीति का
    अब तो बना स्वभाव !
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    13w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    वाह! बहुत खूब! अत्यंत आभार आपका!!!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. राजनीति पर लिखी रचनाएँ कम समझ आती है।
    आपकी रचना का शब्द विन्यास और अनुप्रास का प्रयोग अत्यंत सराहनीय है।
    तात्कालिक नोटबंदी के घटनाक्रम पर आधारित आपकी रचना सराहनीय है।
    प्रणाम
    सादर।

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    1. जी, अत्यंत आभार!!! ऐसे आपको आता सब कुछ है। :)

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  4. राजनीति पर आपकी ये रचना गंभीर प्रश्न कर रही है ।
    कभी कभी कुछ अच्छा करने की ख्वाहिश में परिणाम पर ध्यान नहीं रहता और बाकी तो लोग भ्रम भी बहुत फैलाते हैं । बस हर बार परेशान होता है तो आम आदमी ।
    जय भारत, जय भाग्य विधाता,
    जनगण मनधन खुल गया खाता।
    जनधन खाते का कैसे दुरुपयोग होगा सोचा भी न होगा ।
    असल में हम भारतीयों की खासियत है कि कानून बाद में बनता है उसके तोड़ हम पहले निकाल लेते हैं ।
    बड़ी मारक रचना ।000

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  5. जहां राजनीति का कीड़ा है,
    बस वहीं भयंकर पीड़ा है ।
    बिल्कुल सटीक... और ये कीड़ा अब सभी जगह फैल चुका...
    सही कहा आ.संगीता जी ने कानून बाद में बनता है और उसके तोड़ पहले निकल जाते हैं...
    तब भी अब भी और शायद हमेशा ही हालातों पर फिप बैठती लाजवाब कृति।

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  6. वाह!क्या बात है 👌शानदार ।

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