लमहे-दर-लमहे, कहे अनकहे
फलित अफलित, घटित अघटित
सत्व-तमस, तत्व-रजस
छूये अनछूये,दहे ढ़हे
हद-अनहद, गरल वेदना का,
प्रेम तरल, सृष्टि-प्रवाह बन
बूँद-दर-बूँद,
गटकते रहे
नीलकंठ मैं !
अपलक नयन, योग शयन
गुच्छ-दर-गुच्छ विचारों की जटायें
लपेटती भावनाओं की भागीरथी
उठती गिरती, सृजन विसर्जन
चंचल लहरें घुलाती
चाँदनी की शांत मीठास
जगन्नाथ की ज्योत्स्ना
से जगमग
चन्द्रशेखर मैं !
स्थावर जंगम, तुच्छ विहंगम
कोमल कठोर, गोधूली भोर
साकार निराकार, शून्य विस्तार
अवनि अम्बर, श्वेताम्बर दिगम्बर
ग्रह विग्रह, शाप अनुग्रह
प्रकृष्ट प्रचंड, प्रगल्भ अखंड
परिव्राजक संत, अनादि अनंत
पाथर कंकड़
शिवशंकर मैं !
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ReplyDeleteIndira Gupta
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+1
अप्रतिम अप्रतिम ...विश्व मोहन जी आपकी काव्य शैली और शब्दो का चयन ....लाज़वाब
👏👏👏👏👏👏👏
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Vishwa Mohan
आभार!!!
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NITU THAKUR's profile photo
NITU THAKUR
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+1
बहुत खूबसूरत रचना
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Vishwa Mohan
+Nitu Thakur हार्दिक आभार!!!
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ReplyDeleteIndira Gupta
+1
सुंदर सरस काव्य रचना ...👌👌👌👌
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Vishwa Mohan
आभार!!!
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Kusum Kothari's profile photo
Kusum Kothari
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+1
वाह!!
जय जय भोले शिव शंकर
हर पाथर हर कंकर। 🙏
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Vishwa Mohan
+Kusum Kothari आभार!!!
अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
ReplyDeleteअमित जैन 'मौलिक'
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+1
वाह वाह वाह।।। निशब्द हूँ। अद्भुत। नमन कविवर आपको।
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Jul 24, 2017
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Vishwa Mohan
आपका बहुत आभार!
Jul 25, 2017
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Indira Gupta
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+1
अद्भुत ,अनुपम ओघड बाबा शिव सी
अहर्निश नाद करती सी रचना
नमन विश्व मोहन जी
अद्भुत शव्दो का चयन और गुँथन ...
अप्रतिम मान्यवर अप्रतिम 🙏
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Jul 25, 2017
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Vishwa Mohan
+Indira Gupta आपका बहुत आभार!
स्थावर जंगम, तुच्छ विहंगम
ReplyDeleteकोमल कठोर, गोधूली भोर
साकार निराकार, शून्य विस्तार
अवनि अम्बर, श्वेताम्बर दिगम्बर
ग्रह विग्रह, शाप अनुग्रह
प्रकृष्ट प्रचंड, प्रगल्भ अखंड
परिव्राजक संत, अनादि अनंत
पाथर कंकड़
शिवशंकर मैं !
👌👌👌👌👌🙏🙏🙏🙏🙏
जी, बहुत आभार।
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