Tuesday, 7 February 2017

सजीव अहंकार

मेरी उचाट आत्मा
भर नींद जागती रही.
सपनों में ही सही!
और ये बुद्धिमान मन
जागे जागे सोया रहा.
अहंकार फिर भी सजीव था!

एक रात की नींद में जगना
खोये में जागना
न हो के होना
अभाव में भाव
और मौन में संवाद,
जहां स्थूल से सूक्ष्म सरक जाता है!

दूसरा, दिन का सपना
जगे जगे खोना
हो के न होना
भाव में अभाव
और आलाप में मौन  
जहां सूक्ष्म स्थूल में समा जाता है!

1 comment:

  1. Indira Gupta's profile photo
    Indira Gupta
    Moderator
    वाह
    आध्यात्मिक भाव लिये रचना
    स्व मै स्व को ही ढूंढ़ती और साक्षात्कार कराती रचना आत्मा का बोध कराती रचना !
    नमन रचना
    Translate
    Jul 25, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Indira Gupta
    शुक्रिया !!!
    Jul 26, 2017
    Kusum Kothari's profile photo
    Kusum Kothari
    +1
    वाह सुंदर भाव!
    जागे जागे सोना यानि भ्रांति तंद्रा
    नीद मे सजग याने सम्यक दृष्टि
    अद्भुत।
    उच्च भाव लिये रचना सुंदर अतिसुन्दर।
    Translate
    Jul 26, 2017
    अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
    अमित जैन 'मौलिक'
    Owner
    +1
    अहंकार फिर भी सजीव था!

    अद्भुत अद्भुत। स्तरीय कैसे रचा जाता है। आपसे सीखना चाहिए। शुभ रात्रि।
    Translate
    Jul 26, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    अत्यंत आभार!!!
    Aug 2, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    वाह! हौसलाफजाई का नायाब अंदाज़! अत्यंत आभार, अमितजी।
    Aug 2, 2017

    ReplyDelete