(१)
चटकीली चाँदनी की
दुधिया धार में धुलाई,
बांस की ओरी में टंगी सुतली.
हवा की सान पर
झुलती, डोलती
रात भर खोलती,
भ्रम की पोटली
मेरी अधजगी आँखों में.
किसी कृशकाय कजराती
धामिन सी धुक धुकाकर,
बँसवारी सिसकारती रही
मायावी फन की फुफकार.
(२)
कुतूहल, अचरज, भय, विस्मय
की गठरी में ठिठका मेरा 'मैं'.
बदस्तूर उलझा रहा,
माया चित्र में, होने तक भोर.
उषा के अंजोर ने
उसे फिर से, जब
सुतली बना दिया.
सोचता है मेरा 'मैं'
इस भ्रम भोर में,
वो सुतली कहीं
मेरे होने का
वजूद ही तो नहीं?
(३)
दृश्यमान जगत
की बँसवारी में
मन की बांस
से लटकी सुतली
अहंकार की.
सांय सांय सिहरन
प्राणवंत पवन
बुद्धि की दुधिया चांदनी
में सद्धःस्नात,
भर विभावरी
भरती रही भ्रम से
जीवन की गगरी.
(४)
परमात्मा प्रकीर्ण प्रत्युष
चमकीली किरण
की पहली रेख
मिटा वजूद, प्रतिभास सा,
जो सच नहीं!
शाश्वत सत्य का
सूरज चमक रहा था
साफ साफ दिख रहे थे
बिम्ब अनेक,
ज्ञाता,ज्ञान और ज्ञेय
हो गए थे किन्तु
सिमटकर एक!
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ReplyDeleteKusum Kothari
+1
वाह!
भरती रही भ्रम से
जीवन गगरी...
आध्यात्मिक भावों की और मुडती, आत्म चेतना जगाती स्वय का अवलोकन करती , सच ज्ञाता ज्ञान और ज्ञेय एक हो दृश्य हो रहे हैं।
आपकी लेखनी को नमन नमन नमन।
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Aug 4, 2017
अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
अमित जैन 'मौलिक'
Owner
चटकीली चाँदनी की
दुधिया धार में धुलाई,
बांस की ओरी में टंगी सुतली
हवा की सान पर
झुलती, डोलती
रात भर खोलती,
भ्रम की पोटली
मेरी अधजगी आँखों में
किसी कृशकाय कजराती
धामिन सी धुक धुकाकर,
बँसवारी सिसकारती रही
मायावी फन की फुफकार।
हम तो निशब्द हो गये आदरणीय मोहन जी। आपको पढ़कर लगता है कि शुरू से शुरू करें लिखना। सीखें आपसे।
मानो शाब्दिक लालित्य का पियानो सा बजा देते हैं आप। भावों का विस्तार गूढ़ से वृहत्तर ऐसे होता है जैसे एकताल में ध्रुपद की तानें चल रहीं हों। आपकी संगत रचनाकारों के लिये सत्संग बने ऐसी शुभेक्षायें। नमन आपको
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Aug 4, 2017
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Vishwa Mohan
आभार!!!
27w
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Vishwa Mohan
आभार!!!
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत खूब आदरणीय ..... लाजवाब !
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteबहुत गहरी बात कह गए मित्र ! हम अपना आधा जीवन - रस्सी को सांप समझ कर भय खाते हैं और शेष आधे जीवन में सांप को रस्सी समझकर निश्चिन्त रहने की भूल करते हैं. सत्य तक पहुँचने में हम सदैव असफल रहते हैं.
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteअलग ही शब्द लालित्य के साथ भावों का प्रवाह..
ReplyDeleteउम्दा।
जी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteसर निशब्द करती है आपकी लेखनी। आप से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
ReplyDeleteआशीष का आभार। लेकिन जादे झाड़ पर चढ़ना मेरे लिए ठीक नहीं :)
Deleteबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
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