दुःख की कजरी बदरी करती ,
मन अम्बर को काला .
क्रूर काल ने मन में तेरे ,
गरल पीर का डाला .
ढलका सजनी, ले प्याला ,
वो तिक्त हलाहल हाला//
मुख शुद्धि करूं ,तप्त तरल
गटक गला नहलाऊं ,
पीकर सारा दर्द तुम्हारा ,
नीलकंठ बन जाऊं .
खोलूं जटा से चंदा को,
पूनम से रास रचाऊं //
चटक चाँदनी की चमचम
चन्दन का लेप लगाऊं ,
हर लूँ हर व्यथा थारी
मन प्रांतर सहलाऊं .
आ पथिक, पथ में पग पग
सपनों के साज सजाऊं //
मन अम्बर को काला .
क्रूर काल ने मन में तेरे ,
गरल पीर का डाला .
ढलका सजनी, ले प्याला ,
वो तिक्त हलाहल हाला//
मुख शुद्धि करूं ,तप्त तरल
गटक गला नहलाऊं ,
पीकर सारा दर्द तुम्हारा ,
नीलकंठ बन जाऊं .
खोलूं जटा से चंदा को,
पूनम से रास रचाऊं //
चटक चाँदनी की चमचम
चन्दन का लेप लगाऊं ,
हर लूँ हर व्यथा थारी
मन प्रांतर सहलाऊं .
आ पथिक, पथ में पग पग
सपनों के साज सजाऊं //
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना गुरुवार २५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बेहतरीन प्रस्तुति 👌
ReplyDeleteऐसा लग रहा है की इस रचना को और लिखने का आग्रह करू और पढ़ती ही जाऊ |
लाजबाब
सादर
जी, अत्यंत आभार आपके इस आशीष विशेष का !!!
Deleteचटक चाँदनी की चमचम
ReplyDeleteचन्दन का लेप लगाऊं ,
हर लूँ हर व्यथा थारी
मन प्रांतर सहलाऊं .
बहुत ही सुन्दर... लाजवाब प्रस्तुति।
वाह!!!
वाह बेहद शानदार रचना
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका!
Deleteजी, अत्यंत आभार आपका।
ReplyDeleteUnforgetable saga of love👌👌👌🙏🙏👌
ReplyDeleteअत्यंत आभार आपका!!!
Deleteमुख शुद्धि करूं ,तप्त तरल
ReplyDeleteगटक गला नहलाऊं ,
पीकर सारा दर्द तुम्हारा ,
नीलकंठ बन जाऊं .
खोलूं जटा से चंदा को,
पूनम से रास रचाऊं //
👌👌👌👌👌👌
प्रेम का सरस अनुपम मधुर गीत जिसमें अनुराग की सादगी का कोई जवाब नहीं! हार्दिक शुभकामनाएँ और प्रणाम आदरणीय विश्व मोहन जी 🙏🙏
हार्दिक आभार🙏🙏
Delete