Monday, 20 March 2017

सपनों के साज

दुःख की कजरी बदरी करती , 
मन अम्बर को काला . 
क्रूर काल ने मन में तेरे , 
गरल पीर का डाला . 
ढलका सजनी, ले प्याला , 
वो तिक्त हलाहल हाला// 

मुख शुद्धि करूं ,तप्त तरल 
गटक गला नहलाऊं , 
पीकर सारा दर्द तुम्हारा , 
नीलकंठ बन जाऊं . 
खोलूं जटा से चंदा को, 
पूनम से रास रचाऊं // 

चटक चाँदनी की चमचम 
चन्दन का लेप लगाऊं , 
हर लूँ हर व्यथा थारी 
मन प्रांतर सहलाऊं . 
आ पथिक, पथ में पग पग 
सपनों के साज सजाऊं //

11 comments:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना गुरुवार २५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति 👌
    ऐसा लग रहा है की इस रचना को और लिखने का आग्रह करू और पढ़ती ही जाऊ |
    लाजबाब
    सादर

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके इस आशीष विशेष का !!!

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  3. चटक चाँदनी की चमचम
    चन्दन का लेप लगाऊं ,
    हर लूँ हर व्यथा थारी
    मन प्रांतर सहलाऊं .
    बहुत ही सुन्दर... लाजवाब प्रस्तुति।
    वाह!!!

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  4. वाह बेहद शानदार रचना

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका!

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  5. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  6. Unforgetable saga of love👌👌👌🙏🙏👌

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  7. मुख शुद्धि करूं ,तप्त तरल
    गटक गला नहलाऊं ,
    पीकर सारा दर्द तुम्हारा ,
    नीलकंठ बन जाऊं .
    खोलूं जटा से चंदा को,
    पूनम से रास रचाऊं //
    👌👌👌👌👌👌
    प्रेम का सरस अनुपम मधुर गीत जिसमें अनुराग की सादगी का कोई जवाब नहीं! हार्दिक शुभकामनाएँ और प्रणाम आदरणीय विश्व मोहन जी 🙏🙏

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