Thursday 24 August 2017

ब्रह्म योग

सपनों की सतरंगी सिंदूरी,
सुघड़ नयन घट घोले .
छन-छन छाया छवि की
क्षण-क्षण, मन-पनघट में डोले.

अभिसार-आँचल-अनुराग,
आरोह-अनंत अवनि का,
अंग-अनंग , अम्बर-सतरंग
अनावृत    यवनिका.

छाये क्षितिज अवनि और अम्बर,
अनहद आनंद आलिंगन.
सनन सनन कण पवन मदन बन,
चटक चाँदनी चन्दन .

दुग्ध-धवल अंतरिक्ष समंदर,
चारु चंद्र चिर चंचल चहके.
चपल चकोरी चातक चितवन,
प्रीत परायण पूनम महके .

नवनिहारिका नशा नयन मद,
प्रेम अगन सघन वन दहके .
सुभग सुहागन अवनि अम्बर,
बिहँस विवश बस विश्व भी बहके.

क्रीड़ा-कंदर्प कण-कण-प्रतिकम्पन,
उदान  अपान  समान .
व्यान परम पुरुष प्रकृति भाषे,
ब्रह्म योग  चिर प्राण .


14 comments:

  1. आदरणीय विश्वमोहन जी ----- भले ही मैं सरल हिन्दी की पक्षधर हूँ पर आपकी अलंकारों के प्रयोग की अनुपम शैली की प्रशंसक भी हूँ | आज जहाँ लोग जिनमे मैं भी हूँ -- इस हुनर से अनजान हैं वही आप बड़ी सरलता से अलंकारों से सजा रचना को मनमोहक रूप देने का हुनर रखते है | अनुप्रास सदैव से ही साहित्यकरों और कवियों की आँख का तारा रहा है | हिन्दी साहित्य का कोई भी विद्यार्थी ''' चारू चन्द्र की चंचल किरनें खेल रही थी जल थल में '' से नावाकिफ नहीं है | इसी अनुप्रास को यदा -- कदा अपनी रचनाओं में सम्मिलित कर आपने इसके अस्तित्व को नया जीवन दिया है | आपकी रचना में भाव तो हैसुंदर हैं ही -- ये अलंकृत शैली मन को भाव विभोर कर देती है | कलिष्ट शब्दावली होने के बावजूद रचना बहुत ही मोहक और सरस है | माँ सरस्वती आपके लेखन की प्रांजलता बनाये रखे |

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    1. अत्यंत आभार आपकी स्नेहिल सरस प्रतिक्रिया का!!!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. अलंकृत,परिष्कृत,मधुर अनुप्रासों से समृद्ध भाषाशैली में गूँथी गयी अत्यंत भावपूर्ण हृदयग्राही सृजन।
    बधाई सुंदर कृति के लिए।

    प्रणाम
    सादर

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  4. बहुत सुंदर शब्द - संयोजन । अलंकारों की छटा निराली है ।
    अनुप्रास अलंकार के साथ ही पुरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग देखते ही बनता है ।
    काव्य का एक बहुमूल्य मोती है ये रचना ।

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  5. दुग्ध-धवल अंतरिक्ष समंदर,
    चारु चंद्र चिर चंचल चहके.
    चपल चकोरी चातक चितवन,
    प्रीत परायण पूनम महके .
    नवनिहारिका नशा नयन मद,
    प्रेम अगन सघन वन दहके .
    सुभग सुहागन अवनि अम्बर,
    बिहँस विवश बस विश्व भी बहके.////
    अच्छा लगा फिर से पढ़कर!!!!!
    हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🙏🙏

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  6. अभिसार-आँचल-अनुराग,
    आरोह-अनंत अवनि का,
    अंग-अनंग , अम्बर-सतरंग
    अनावृत यवनिका.

    छाये क्षितिज अवनि और अम्बर,
    अनहद आनंद आलिंगन.
    सनन सनन कण पवन मदन बन,
    चटक चाँदनी चन्दन .
    वाह!!!
    अद्भुत शब्द संयोजन एवं अनुप्रास आदि अलंकारों से अलंकृत लाजवाब सृजन

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  7. वाह!बहुत ही खूबसूरत ,अलंकारिक रचना ने मन मोह लिया ।

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