Tuesday, 24 July 2018

'मैं'


देह स्थूल जंगम नश्वर 'मैं',
रहा पसरता अहंकार में.
सूक्ष्म आत्मा तू प्रेयसी सी,
स्थावर थी, निर्विचार से.

तत्व पञ्च प्रपंच देह 'मैं',
रहा धड़कता साँसों में.
जीता मरता 'मैं' माया घट,
फँसा फंतासी फांसों में.

भरम-भ्रान्ति 'मैं' भूल-भुलैया,
मायावी, छल, जीवन-मेला
लिप्त लास में 'मैं' ललचाया
आँख मिचौली यूँ खेला !

त्यक्ता 'मैं', रीता प्रीता से,
मरणासन्न मरुस्थल में.
नि:सृत नीर नयन नम मेरे,
फलक पलक 'मैं' पल पल में.

सिंचित सैकत कर उर उर्वर,
प्रस्थित प्रीता, अपरा प्रियवर.
विरह विषण्ण विकल वेला 'मैं'!
महोच्छ्वास, निःशब्द, नि:स्वर!


Tuesday, 17 July 2018

मरू में क्यों!


देखा, जो तूने कचरो पर,
सपने बच्चों के पलते हैं.
सीसी बोतल की कतरन पर,
तकदीर सलोने चलते हैं.

जब जर जर जननी छाती,
दहक दूध जम जाता है.
और उजड़ती देख आबरू,
पल! दो पल थम जाता है.

ढेरों पर फेंके दोनों में,
अमरत्व जीव का फलता है.
नयन मटक्का शिशुओं का,
शावक श्वान संग चलता है.

लेकर कर, कुत्तों के कौर,
दाने अन्न के बीनता है.
भाग्यहीन है, भरत वीर यह!
दांत, शेर की गिनता है.

झोपड़ पट्टी की शकुन्तला,
परित्यक्ता सी घुटती है
थामे पानी आँखों में,
बस सरम पीसती, कुटती है

तोभी बेधरमी धिक् धिक् तुम!
लाज सरम घोर पी गए.
कविता के चंद छंदों में,
बेसरमी अपनी सी गए!

काली करनी के कूड़ों को,
क्यों न कलम से कोड़ दिया!
मरू में क्यों! मरे मनुजों पर ही,
एटम बम न फोड़ दिया!!!


Wednesday, 11 July 2018

चतुर्मास संग जीव प्रिये.



मै तथागत ठूंठ ज्ञान का,
आम्रपाली छतनार तू छाई.
बौद्ध वृक्ष मैं, मन मंजरी तू,
मन मकरंद मंद मंद महकायी.

सन्यासी मैं, शुष्क सरोवर,
साधक सत्य शोध समज्ञान.
सौन्दर्य श्रृंगार, हे सिन्धु धार!
प्रेम पीयूष पथ प्रवहमान.

मै मूढ़ मति मत्सर मरा,
तू प्रीत अक्षय यशोधरा.
मैं पथिक अथक संधान का,
तू पात पीपल ज्ञान का.

तू आसक्ति, मैं आकर्षण,
असहज असंजन लघु घर्षण.
हे प्रीत नुपुर नव राग क्वणन,
माया मदिरा मदमस्त स्त्रवण.

वाचाल वसंत चंचल स्वच्छंद,
मैं निर्वाक निश्छल निष्पंद.
पथिक ज्ञान पय पीव पीये,
बस चतुर्मास संग जीव प्रिये.

Tuesday, 3 July 2018

वज़ूद (अमीर खुसरो को समर्पित उनके उर्स पर)

'शदूद'-ए-एहसास
'होने' का तुम्हारे
कर गया है घर
बन कर 'नूर'
आँखों मे मेरी

हुआ है 'इल्म' अब
इस वाकया का
और होने लगा है
एहसास
अपने 'वजूद' का!