देह
स्थूल जंगम नश्वर 'मैं',
रहा
पसरता अहंकार में.
सूक्ष्म
आत्मा तू प्रेयसी सी,
स्थावर
थी, निर्विचार से.
तत्व
पञ्च प्रपंच देह 'मैं',
रहा
धड़कता साँसों में.
जीता
मरता 'मैं' माया घट,
फँसा
फंतासी फांसों में.
भरम-भ्रान्ति
'मैं' भूल-भुलैया,
मायावी,
छल, जीवन-मेला
लिप्त
लास में 'मैं' ललचाया
आँख
मिचौली यूँ खेला !
त्यक्ता 'मैं',
रीता प्रीता से,
मरणासन्न
मरुस्थल में.
नि:सृत
नीर नयन नम मेरे,
फलक पलक 'मैं' पल पल में.
सिंचित
सैकत कर उर उर्वर,
प्रस्थित
प्रीता, अपरा प्रियवर.
विरह
विषण्ण विकल वेला 'मैं'!
महोच्छ्वास,
निःशब्द, नि:स्वर!