देखा, जो
तूने कचरो पर,
सपने
बच्चों के पलते हैं.
सीसी
बोतल की कतरन पर,
तकदीर
सलोने चलते हैं.
जब जर जर जननी छाती,
दहक दूध जम जाता है.
और उजड़ती
देख आबरू,
पल! दो
पल थम जाता है.
ढेरों पर
फेंके दोनों में,
अमरत्व
जीव का फलता है.
नयन
मटक्का शिशुओं का,
शावक
श्वान संग चलता है.
लेकर कर, कुत्तों के कौर,
दाने
अन्न के बीनता है.
भाग्यहीन
है, भरत वीर यह!
दांत, शेर
की गिनता है.
झोपड़ पट्टी
की शकुन्तला,
परित्यक्ता
सी घुटती है
थामे
पानी आँखों में,
बस सरम
पीसती, कुटती है
तोभी
बेधरमी धिक् धिक् तुम!
लाज सरम घोर
पी गए.
कविता के
चंद छंदों में,
बेसरमी
अपनी सी गए!
काली
करनी के कूड़ों को,
क्यों न
कलम से कोड़ दिया!
मरू में
क्यों! मरे मनुजों पर ही,
एटम बम न
फोड़ दिया!!!
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ReplyDeleteNITU THAKUR
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बहुत सार्थक रचना। एक एक शब्द सत्य लिखा।
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Meena Gulyani
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bahut sunder
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Deepalee Thakur
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बहुत सुंदर
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Vishwa Mohan
+NITU THAKUR आपके उत्साह वर्द्धन का अत्यधिक आभार!!!!
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Vishwa Mohan
+Meena Gulyani आपके उत्साह वर्द्धन का अत्यधिक आभार!!!!
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Vishwa Mohan
+Deepalee Thakur आपके उत्साह वर्द्धन का अत्यधिक आभार!!!!
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ReplyDeleteAbhilasha Chauhan
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अति उत्तम
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Indira Gupta
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👏👏👏👏👏अप्रतिम कवि राज अप्रतिम ....
काव्य रचा या रची मार्मिकता
शब्दों मैं तीखे बाण चले
बम से उड़ा क्यों नहीं देते
शब्द चाबुक की मार लगे !
नमन विश्व मोहन जी ..🙏
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anuradha chauhan
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सुंदर रचना
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Vishwa Mohan
+Abhilasha Chauhan आपके उत्साह वर्द्धन का अत्यधिक आभार!!!!
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Vishwa Mohan
+Indira Gupta आपके उत्साह वर्द्धन का अत्यधिक आभार!!!!
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Vishwa Mohan
+anuradha chauhan आपके उत्साह वर्द्धन का अत्यधिक आभार!!!!
Great reading your blogg
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!
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