Saturday, 13 April 2019

काठमांडू, पशुपति-निवास हूँ!


सद्यःजात, तत्पुरुष, वामदेव
अघोर चतुर्दिश महाकाश हूँ।
शीर्ष ईशान हूँ निराकार-सा,
काठमांडू, पशुपति निवास हूँ।

धड़ केदार, सर डोलेश्वर मैं,
हिम-किरीट है सागरमाथा।
चंद्रह्रास-खड्ग रिक्त सरोवर
स्वयंभू-पुराण, मंजुश्री-गाथा।

कांति-विलास के  महत-अंश में।
'काष्ठमंडप' का अपभ्रंश 'यें'।
गुणकामदेव-दीप्त विश्व-धरोहर।
'कांतिपुर' अक्षय, अजर-अमर।

प्रहरी अनथक आठो पहर का,
शैल-शक्तिपीठ, अष्ठ-मात्रिका।
छलके अमृत तीन दिशा में,
टुकचा, विष्णु-बागमती का।

पुलकित 'येंला' चन्द्र-पूनम का,
'येंया पुन्हि', इंद्रजात्रा।
प्रफुल्लित, पुलुकिसी-ऐरावत
थिरकी ललना लाखोजात्रा।

नेपामी मैं, मल्ल-काल का,
तंत्र वास्तु का, चैत्याकार हूँ।
हनुमान-ढोका, आकाश-भैरव,
गोर्खली का सिंह-दरबार हूँ।

बागमती की लहरों में मैं,
छंद मोक्ष के लहराता हूँ।
माँ गुह्येश्वरी की गोदी में,
मुक्ति की लोरी गाता हूँ।

मैं प्रकृति का अमर पालना,
पौरुष का मैं उच्छवास हूँ।
खंड-खंड प्रचंड भूकंप से,
नवनिर्माण, अखंड उल्लास हूँ।

आशा का मैं अमर उजास हूँ।
सृष्टि का सुरभित सुवास हूँ।
सृजन का शाश्वत इतिहास हूँ।
काठमांडू, पशुपति-निवास हूँ।

इस कविता का नेपाली अनुवाद हमारे नेपाली कवि मित्र डी पी जैशी ने किया जो नेपाली पत्रिका सेतोपाटी में प्रकाशित हुई .लिंक है 
https://setopati.com/literature/178714?fbclid=IwAR1qomleZMOOtSDUMxxx7-3Mw20FR2z8PImNRrknEZi0g5yvrPzfG7s-1Vs
रुडकी विश्वविद्यालयका हाम्रा सहपाठी मित्र विश्वमोहन जी ले काठमाडौं को बारेमा हिन्दीमा लेखेको कविताको नेपाली अनुवाद गर्न अनुरोध गर्नु भएकोले उक्त कविताको नेपाली अनुवाद गरी वहाँकै सल्लाह बमोजिम यहाँ राखेको छु ।
काठमाण्डौँ, पशुपति-निवास हुँ !
नवजात, तत्पुरुष, वामदेव
अघोर चतुर्दिश महाकाश हुँ ।
शीर्ष ईशान हुँ, निराकार जस्तै,
काठमाण्डौँ, पशुपति निवास हुँ ।
शरिर केदार, शिर डोलेश्वर,
हिम-किरीट हो सगरमाथा ।
चन्द्रह्रास-खड्ग रिक्त सरोवर
स्वयंभू पूराण, मंजुश्री गाथा ।
कांति-विलास को महत-अंश मा
काष्ठमाण्डप को अपभ्रँस ‘येँ’ हुँ ।
गुणकामदेव-दीप्त विश्व-धरोहर,
‘कान्तिपुर’ अक्षय, अजर-अमर ।
आठै प्रहरका अथक प्रहरी,
शैल-शक्तिपीठ, अष्ठ-मात्रिका ।
छल्किन्छ अमृत तीनै दिशामा
टुकुचा, बिष्णु-बागमती को ।
पुलकित ‘येँला’ चन्द्र-पूनम को
‘येँया पुन्हि’ इन्द्रजात्रा ।
प्रफुल्लित, पुलुकिसी-ऐरावत
नाच्छन् ललना लाखौँ जात्रा ।
‘नेपामी’ म, मल्ल-कालका,
तंत्र वास्तु को चैत्याकार हुँ ।
हनुमान-ढोका, आकाश-भैरव
गोर्खाली को सिँह-दरबार हुँ ।
बागमती को लहरमा म,
छन्द मोक्ष लहराउँछु ।
आमा गुहेश्वरी को काखमा,
म मुक्ती को गित गाउँछु ।
म प्रकृतिको अमर पालना,
पौरुष को म उच्छ्वास हुँ ।
प्रचण्ड भूकम्पले खण्ड खण्ड,
म नवनिर्माण, अखण्ड उल्लास हुँ ।
म आशाको अमर उज्यालो हुँ,
सृष्टिको सुरभित सुवास हुँ ।
सृजनको शाश्वत इतिहास हुँ
काठमाण्डौँ पशुपति-निवास हुँ ।


29 comments:

  1. वाहह्हह... वाहह्हह.. वाहह्हह... अद्भुत.. अलौकिक.. अति सुंदर बहुमूल्य साहित्यिक सृजन..👌👌👌
    आभार..और अशेष शुभकामनाएँ विश्वमोहन जी।

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    1. अप्रतिम आभार, ह्रदयतल से!!!!

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  2. पर्यटन, तीर्थाटन और अब अद्भुत साहित्यिक दर्शन।
    प्रणाम।

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  3. बहुत सुंदर आदरणीय विश्वमोहन जी | काठमांडू , हिमालय और नेपाल -- साथमें पशुपति नाथ !!!! सभी कुछ सजीव और सराहना से परे | शुभकामनायें इस अद्रभुत सृजन के लिए | सादर --

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका, हृदय तल से।

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  4. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  5. वाह!!!!
    बहुत ही अद्भुत ...अविस्मरणीय...
    लाजवाब बस लाजवाब...
    बहुत शुभकामनाएं एवं सादर नमन..

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    1. जी, अत्यंत आभार, हृदय तल से।

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  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" l में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/117.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  7. महादेव पशुपतिनाथ की स्तुति अतुलनीय है। काठमांडू के सौंदर्य एवं पौराणिक महत्त्व का आलंकारिक वर्णन वाचन का अपरिमित आनंद दे गया।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  8. महादेव की अनुपम स्तुति !! अद्भुत सृजन ।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  9. पशुपतिनाथ जी की इतनी सुंदर स्तुति से मन प्रफुलित हो गया ,मुझे भी उनके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं ,सादर नमस्कार आप को

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  10. जी बधाई विश्वमोहन जी। यू्ँँ ही दिग्दिगंत यशस्वी हों यही कामना है।
    सादर।
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १६ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. इस अनुपम आशीष का अनहद आभार!!!

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  11. बहुत ही सुंदर व रोचक लेखन हेतु बधाई आदरणीय विश्वमोहन जी।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  12. वाह ...
    बहुत ही सुंदर रचना जैसे शिव साक्षात आपके शब्दों में उतार आए ...
    सागर माथा ... धड़ केदार सर डोलेश्वर ...
    आपकी ये रचना शिव उपासकों के लिए संजो कर रखने वाली है ... अरी सुंदर ...

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    1. इस अनुपम आशीष का अनहद आभार!!!

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  13. अनुपम स्तुति। संग्रहणीय योग्य रचना।
    शुभकामनाएँ।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपका।

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  14. प्रकृति का अमर पालना,

    पौरुष का मैं उच्छवास हूँ.

    खंड-खंड प्रचंड भूकंप से,

    नवनिर्माण, अखंड उल्लास हूँ

    प्रकृति के सर्वोच्च शिखर और पशुपति निवास की महिमा गाती माधुर्यपूर्ण , अनुपम रचना जिसका नेपाली में अनुवाद होना इसकी सार्थकता को कई गुणा कर देता है | अनुपम सृजन जो मन के तारों को अध्यात्मिक ऊर्जा का उपहार देता है | आपकी लेखनी के अमर प्रवाह की कामना करती हूँ | सादर🙏🙏🙏

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    1. जी, आपके आशीष की धारा भी यूँ ही प्रवहमान बनी रहे।

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