पल-पल पुलकित पलकों में,
जो, प्रीत तू अबतक पाली।
नित नयनों में तेरे उतराए,
वह बिम्ब कौन री व्याली!
उर की धडकन में धक-धक,
जो धड़क-धड़क कर बोले।
चतुर-चितेरा, चहक-चहक,
मन वेणी, तेरी खोले।
कूल-कालिंदी से कलकल,
कलरव करती किल्लोलें।
हिय वह हौले-हौले तेरे,
नेह मधुर रस घोले।
मूंदे दृग-पट अपना तू,
करता वह नैन बसेरा।
आँखों के आँगन में,
तेरे, डाला उसने डेरा।
चमके चिर चितवन चंचल,
वह, तेरे कपोल की लाली।
कौन! कहाँ? वह कृष्ण-कन्हैया!
तू, किस हारिल की डाली!
वैलेंटाइन सप्ताह
11.2.2021
पटना
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 12-02-2021) को
"प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है" (चर्चा अंक- 3975) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteवाह!वाह!
ReplyDeleteमूंदे दृग-पट अपना तू,
करता वह नैन बसेरा।
आँखों के आँगन में,
तेरे, डाला उसने डेरा।
क्या बात...।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteचमके चिर चितवन चंचल,
ReplyDeleteवह, तेरे कपोल की लाली।
कौन! कहाँ? वह कृष्ण-कन्हैया!
तू, किस हारिल की डाली!..बहुत सुन्दर मनमोहक रचना.. आज के समय में बहुत ही प्रासंगिक है, जब पश्चिमी सभ्यता को नयी पीढ़ी अपनाने को आतुर है..
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteकौन! कहाँ? वह कृष्ण-कन्हैया!
ReplyDeleteतू, किस हारिल की डाली!
बहुत खूब भावाभिव्यक्ति आदरणीय विश्वमोहन जी।
किसी के मन में बसे हारिल की डाली सेकृष्ण- कन्हैया को कौन दूसरा जान पाया है जिसके अनुराग की आभा किसी व्यक्तित्व में दिव्य आभा भरती है।
प्रेमिल भावों से भरी रचना। और हमेशा की तरह लाजवाब। हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteअनुप्रास तो कमाल है 👌👌
ReplyDeleteआपका आशीष!!🙏🙏
Deleteअनुप्रास अलंकार के चमत्कारिक सौंदर्य से लेकर अभिसारिका के अनुपम सौंदर्य तक,अद्भुत !!! .... इतने सुकोमल शब्दों में पूछने से तो शायद उस रहस्य को प्रकट कर भी देगी वह सखी !
ReplyDeleteपल-पल पुलकित पलकों में,
जो, प्रीत तू अबतक पाली।
नित नयनों में तेरे उतराए,
वह बिम्ब कौन री व्याली
जी, आपके इस अनुपम आशीष का अत्यंत आभार!!!
Deleteशानदार सृजन..
ReplyDeleteसादर प्रणाम..
जी, अत्यंत आभार।
Deleteबहुत खूबसूरत श्रृंगारित, सुकोमलता की गागर से भरी रचना।
ReplyDeleteबधाई।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteवैलेंटाइन सप्ताह में ऐसी अद्भुत रचना...वाह विश्वमोहन जी, गोपिकाओं और राधा के मन की गति बताती ...वह भी कालिंंदी के कूल पै... कृष्ण ..वाह
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपके सुंदर शब्दों का!!!
Deleteवाह! बेहद सुन्दर रचना। मन को भा गई।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
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Thanks!
Deleteवाह विश्वमोहन जी ! क्या कहना है इस गीत का ! भाव-विभोर हो गया हूँ इसे पढ़कर ।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपके इन सुंदर शब्दों का।
Deleteकृष्णमय इस सुंदर कविता के लिए साधुवाद 🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteप्रेम-रस में पगी बहुत सुन्दर कविता !
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteवाह
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
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