समय की सांकल पर
संसरती सियासत
फांस मे फँसी रियासत
बाज़ीगर और ज़म्हूरे
रु-ब-रु होते हैं
हर पाँचवे साल !
लावण्यमयी ललना
क्रूर दमन दामिनी
शासन यामिनी
लहू से मुँह लाल
दलित महादलित
पदमर्दित फटेहाल !
छलना चुनाव मदिरा
गिरता मधुरस
उदर के छालों पर
निवाले की तरह
जठराग्नि के फफोले
अनारदानों से लाल,विकराल !
होती है गुदगुदाहट
झिनझिनाती नशों में
उठता है मादक नशा
छाता दिलो दिमाग पर
जम्हुरियत का जयकारा
जनता जनार्दन की जय !
मद्धिम-सा होता
भविष्य का भोर
जनता! अभागन प्रेयसी
नेता, कुटील चितचोर!
फिर से रचा लिया है रास
अपनी भ्रम-लीला में फाँस !
भोली भाली आत्माओं को
आत्म मुग्धावस्था में खोने को
तन्द्रिल सा सोता जनमानस
तत्पर हिप्टोनाइज़ होने को
पाँच साल को तय
जनता जनार्दन की जय !
नागपंचमी ! चुनाव की
प्रजातंत्र पय-पावन पर्व
डँसने को आतुर तत्पर
फन काढ़े विषधर
गूँजे फुफकारों की लय
जनता जनार्दन की जय !